BHOPAL. पंद्रह अगस्त करीब है, पूरा देश इस समय आजादी के 75 साल के जश्न में रंगा हुआ है। देश में स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने के अवसर पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी ‘प्रोफाइल' तस्वीर पर तिरंगा लगाने की अपील की है।
12 अगस्त को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट की प्रोफाइल फोटो पर अपने पारंपरिक भगवा झंडे की जगह तिरंगे की फोटो लगा ली। यही नहीं, संघ प्रमुख (सरसंघचालक) मोहन भागवत ने भी अपने ट्विटर अकांउट पर तिरंगे की फोटो लगाई है।
संघ और भागवत का प्रोफाइल फोटो में तिरंगे को लगाने पर विवाद क्यों?
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल राष्ट्रध्वज को लेकर संघ के रुख को लेकर उसकी आलोचना करते रहे हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अगस्त की शुरुआत में संघ से सवाल किया था कि क्या नागपुर में अपने मुख्यालय पर 52 साल तक राष्ट्रध्वज नहीं फहराने वाला संगठन अपने सोशल मीडिया अकाउंट की प्रोफाइल फोटो पर तिरंगा लगाने के प्रधानमंत्री के आग्रह को मानेगा?
संघ ने दी सफाई
संघ के प्रचार विभाग के सह प्रभारी नरेंद्र ठाकुर ने 12 अगस्त को कहा कि संघ अपने सभी कार्यालयों में राष्ट्रध्वज फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाता आ रहा है। संघ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट की अपनी प्रोफाइल फोटो पर अपने संगठन के झंडे को हटाकर राष्ट्रध्वज लगाया। संघ का कार्यकर्ता ‘हर घर तिरंगा' मुहिम में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहे हैं।
केंद्र सरकार ने ‘हर घर तिरंगा' कार्यक्रम के तहत 13 से 15 अगस्त के दौरान लोगों से अपने घरों में राष्ट्रध्वज फहराने का आग्रह किया है। मामले में आरएसएस के प्रचार विभाग के प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा था कि इस तरह की चीजों का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।
गोलवलकर ने तिरंगे को लेकर ये कहा था
आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस के पूर्ण स्वराज प्रस्ताव का समर्थन करते हुए भगवा ध्वज को तिरंगे के समान माने जाने के लिए कोशिश की थी। दूसरे संघ प्रमुख रहे गोलवलकर ने बंच ऑफ थॉट्स में सवाल उठाया कि भारतीय झंडे को कैसे चुना गया? उन्होंने लिखा, ‘हमारे नेताओं ने हमारे देश के लिए एक नया झंडा तैयार किया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह सिर्फ बहकने और नकल करने का मामला है। यह झंडा कैसे अस्तित्व में आया? फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, फ्रांस ने ‘समानता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व’ के विचारों को व्यक्त करने के लिए अपने झंडे पर तीन पट्टियां लगाईं।’
‘अमेरिकी क्रांति ने भी उन्हीं सिद्धांतों से प्रेरित होकर कुछ बदलावों के साथ इसे अपनाया था। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए भी 3 धारियां एक तरह का आकर्षण ही था, इसलिए कांग्रेस ने इसे अपनाया। तब इसकी व्याख्या विभिन्न समुदायों की एकता को दर्शाने के रूप में की गई थी। भगवा रंग हिंदू के लिए, हरा मुस्लिम के लिए और सफेद अन्य सभी समुदायों के लिए। सभी ‘गैर-हिंदू समुदायों’ में से मुस्लिमों का नाम विशेष रूप से अलग रखा गया था, क्योंकि उन प्रमुख नेताओं में से अधिकांश के दिमाग में मुस्लिम हावी थे और उनका नाम लिए बिना हमारी राष्ट्रीयता पूरी हो सकती है, वो ऐसा सोच भी नहीं सकते थे।’
‘यह सिर्फ राजनेताओं की घपलेबाजी और एक राजनीतिक फायदे के लिए था। यह हमारे राष्ट्रीय इतिहास और विरासत पर आधारित किसी सच्चाई या राष्ट्रीयता की विचारधारा से प्रेरित नहीं था। उसी ध्वज को आज हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में केवल एक गौरवशाली अतीत के साथ लिया गया है तो क्या हमारा अपना कोई झंडा नहीं था? क्या इन हजारों सालों में हमारा कोई राष्ट्रीय चिन्ह नहीं था? निस्संदेह, हमारे पास था, फिर ये शून्यता क्यों? यह हमारे दिमाग में खलल डाल रहा है।’
एक अन्य किताब श्री गुरुजी समग्र दर्शन (हिंदी में गोलवलकर के कार्यों का संग्रह) में उन्होंने कहा, ‘वह भगवा ध्वज ही है, जो समग्र रूप से भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। यह भगवान का अवतार है। हमें पूरा विश्वास है कि अंत में पूरा देश इस भगवा ध्वज के आगे झुकेगा।’
हेडगेवार की अपील पर भागवत
हेडगेवार ने 21 जनवरी 1930 को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें सभी आरएसएस शाखाओं को संकल्प का समर्थन करने के लिए भगवा ध्वज फहराने के लिए कहा गया। हेडगेवार द्वारा लिखे गए पत्रों के एक संग्रह- पत्ररूप व्यक्तिदर्शन नामक पुस्तक में हिंदी में स्वयंसेवकों से कहा गया, ‘राष्ट्रीय ध्वज अर्थात भगवे ध्वज का वंदन करें।’
17 सितंबर 2018 को विज्ञान भवन में दिए गए अपने भाषण में भागवत ने तिरंगे के साथ आरएसएस के जुड़ाव का दावा करने के लिए हेडगेवार के उसी सर्कुलर का उल्लेख किया था। उन्होंने हेडगेवार की बातों को गलत तरीके से उद्धृत किया और बताया कि हेडगेवार ने शाखाओं में तिरंगे फहराने के लिए कहा था।
पटेल की इस शर्त से RSS पर से बैन हटा
भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1948-49 में आरएसएस पर से प्रतिबंध हटाते हुए कहा था कि संगठन ने राष्ट्रीय ध्वज को लेकर ‘स्पष्ट स्वीकृति’ जताई थी, यही उन पर से बैन हटाने की प्रमुख शर्तों में से एक थी। पीएन चोपड़ा और प्रभा चोपड़ा की एडिटेड ‘कलेक्टेड वर्क्स ऑफ सरदार वल्लभभाई पटेल- वॉल्यूम 8’ के मुताबिक, पटेल ने कांग्रेसियों से कहा कि उन्होंने गोलवलकर को बता दिया है कि राष्ट्रीय ध्वज को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार करना होगा। अगर किसी ने इसके विकल्प के बारे में सोचा, तो इसके लिए लड़ा जाएगा।
बुक में यह भी उल्लेख है कि तब गृह सचिव रहे एचवीआर आयंगर ने मई 1949 में गोलवलकर को लिखा था, ‘देश की खुशी के लिए राष्ट्रीय ध्वज (संघ के संगठनात्मक ध्वज के रूप में भगवा ध्वज के साथ) की स्पष्ट स्वीकृति आवश्यक होगी और देश के लिए निष्ठा को देखते हुए इसमें कोई आपत्ति भी नहीं है।’