आनंद पांडे. 20 जुलाई की सुबह दैनिक भास्कर के कई दफ्तरों में छापे की खबर देखते-देखते सुर्खियां बन गई। असल में दैनिक भास्कर और नरेंद्र मोदी के रिश्ते शुरू से ही खट्टे-मीठे रहे हैं। कहानी शुरू होती है 2003 से, जब दैनिक भास्कर गुजरात पहुंचा। दिव्य भास्कर के नाम से। उस वक्त गुजरात में सीएम थे नरेंद्र मोदी। इन रिश्तों पर बारीक नजर रखने वालों में शुमार मोदी के नजदीकी लोगों का दावा है कि मोदी ने हमेशा ही भास्कर का साथ दिया, लेकिन भास्कर ने कभी भी मोदी का सहयोग नहीं किया।
‘पाठक सबसे पहले’
वहीं, भास्कर का दावा है कि उसने हमेशा ही वो स्टैंड लिया है, जो पाठकों के हित में है। वैसे भी भास्कर हमेशा ही कहता रहा है कि उसके लिए पाठक सबसे पहले है। संपादकीय पर गजब की पकड़ रखने वाले दैनिक भास्कर के एमडी सुधीर अग्रवाल हमेशा कहते हैं कि सही को सही और गलत को गलत कहना ही सच्ची पत्रकारिता है। पिछले कुछ दिनों की तल्ख ग्राउंड रिपोर्टिंग ने भास्कर के इस दावे को सही भी साबित किया है।
मोदी ने भास्कर को इंटरव्यू नहीं दिया
मोदी के पीएम बनने के बाद भी दोनों के ये रिश्ते बहुते मधुर नहीं हो सके। 2019 के चुनाव के वक्त जब बीजेपी के मेनिफेस्टो जारी करने वाले दिन भास्कर ने हेडिंग लगाई- रोजगार मुक्त भारत...तो उसी दिन से इन रिश्तों का तनाव चरम पर पहुंच गया था। यही वजह थी कि उस वक्त मोदी ने तमाम छोटे-बड़े मीडिया संस्थानों को तो इंटरव्यू दिया, लेकिन 65 एडिशन निकालने वाले भास्कर से बात करना कतई जरूरी नहीं समझा। इसके बाद किसान आंदोलन के वक्त भी भास्कर ने बेहद आक्रामक रिपोर्टिंग कर केंद्र सरकार को निशाने पर ले लिया था। इसके बाद से ही केंद्र सरकार से मिलने वाले विज्ञापन भी बंद हो गए थे। रही-सही कसर कोरोना के वक्त पूरी हो गई।
आक्रामक पत्रकारिता भी करना है, पैसे भी चाहिए
कुछ मीडिया विश्लेषक ये भी कहते हैं कि भास्कर अच्छी और आक्रामक पत्रकारिता तो करता है, लेकिन साथ ही वो बेहद मुनाफे वाले तमाम व्यवसाय भी करना चाहता है। ये एक तरह से एक ही वक्त में गाल फुलाने और हंसने के समान मुश्किल है। वैसे यहां ये जानना रोचक होगा कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के हर बड़े शहर मसलन भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और रायपुर में भास्कर के शॉपिंग मॉल या टाउनशिप बनी हुई हैं। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में बड़ा पॉवर प्लांट भी है और जयपुर,अहमदाबाद जैसे कई बडे शहरों में रियल स्टेट के प्रोजेक्ट भी हैं। भोपाल में चलने वाले ग्रुप के स्कूल द संस्कार वैली की जमीन के आवंटन को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं चलती रहती हैं। इसके सिवाय भी विवादों से भास्कर का पुराना नाता तो रहा ही है। कुछ साल पहले एक स्टिंग ऑपरेशन में ग्रुप के डायरेक्टर पवन अग्रवाल खबरों को लेकर एक व्यक्ति से पैसा लेने की चर्चा करते हुए भी रिकॉर्ड कर लिए गए थे। बाद में इस मामले में भास्कर को कोर्ट की शरण में जाना पड़ा था। इसी तरह से नीरा राडिया कांड में भी भास्कर का नाम चर्चा में था।
शाह की नजरों का कांटा, इसलिए कहानी बिगड़ी
मोदी के साथ ही अमित शाह भी भास्कर को नापसंद करते हैं। शाह के नजदीकियों का कहना है कि भास्कर का मैनेजमेंट हमेशा रिश्तों का व्यावसायिक मुनाफा पाने की जुगत में रहता है और जब रिश्ता निभाने की बात आती है तो पीछे हट जाता है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इस घटना के बाद या तो भास्कर और ताकतवर बनकर जबर्दस्त तरीके से उभरेगा या बुरी तरह आर्थिक संकट में फंस जाएगा।