भोपाल. मोदी सरकार ने हाल इसी महीने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु परब यानी गुरु नानक जयंती के दिन बाकायदा सार्वजनिक रूप से किसानों से माफी मांगते हुए कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। एक साल से लगातार आंदोलन कर रहे किसानों के लिए इसे बड़ी जीत माना गया। फिलहाल आंदोलन खत्म हो गया है। 23 दिसंबर को प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन राष्ट्रीय किसान दिवस के तौर पर मनाया जाता है। चौधरी साहब ने अपने कार्यकाल में कृषि क्षेत्र के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई किसान-हितैषी नीतियों का मसौदा तैयार किया था। आज हम आपको देश के 5 प्रमुख किसान आंदोलनों के बारे मे बता रहे हैं...
1. जब राजीव सरकार को झुकना पड़ा
1988 में केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार थी। उस समय किसानों ने फसलों की कीमत को लेकर बड़ा आंदोलन किया था। किसान फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागत के आधार पर तय करने की मांग कर रहे थे। महेंद्र सिंह टिकैत (राकेश टिकैत के पिता) की अगुआई में हुए इस आंदोलन से मौजूदा केंद्र सरकार कांप गई थी। दिल्ली वोट क्लब में 25 अक्तूबर 1988 को बड़ी किसान पंचायत हुई। इस पंचायत में 14 राज्यों के किसान आए थे। करीब 5 लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था। 7 दिन चले इस किसान आंदोलन का असर ही कहिए कि कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई। आखिरकार प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पहल करनी पड़ी, तब जाकर किसानों की 35 मांगो पर फैसला लेने की बात पर धरना खत्म हुआ था।
2. 378 दिन चला किसान आंदोलन
5 जून 2020 को केंद्र ने 3 कृषि सुधार बिल संसद में रखे थे। इसके बाद 17 सितंबर को इन्हें पारित कर दिया गया। इसके बाद पंजाब में सबसे पहले इसका विरोध शुरू हुआ। 24 सितंबर को पंजाब से आंदोलन की शुरुआत हुई। इसके 3 दिन बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ तीनों बिल कानून बन गए। फिर 25 नवंबर को किसानों ने राकेश टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली कूच किया। 378 दिन चले इस आंदोलन ने सरकार को अपने तीनों कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। 19 नवंबर को प्रकाश पर्व पर पीएम नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। 29 नवंबर को इससे संबंधित बिल को लोकसभा और राज्यसभा से पास कर वापस ले लिया गया।
ये बदलाव करने पड़े
- MSP : केंद्र सरकार कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि लिए जाएंगे। अभी जिन फसलों पर MSP मिल रही है, वह जारी रहेगी। MSP पर जितनी खरीद होती है, उसे भी कम नहीं किया जाएगा।
- केस वापसी : हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार केस वापसी पर सहमत हो गई हैं। दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के साथ रेलवे द्वारा किसानों पर आंदोलन के दौरान दर्ज हुए केस भी तत्काल वापस होंगे।
- मुआवजा : मुआवजे पर भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में सहमति बन गई है। पंजाब सरकार की तरह ही यहां भी 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा। किसान आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों की मौत हुई है।
- बिजली बिल : बिजली संशोधन बिल को सरकार सीधे संसद में नहीं ले जाएगी। पहले उस पर किसानों के अलावा सभी संबंधित पक्षों से चर्चा होगी।
- पराली जलाना अपराध नहीं: कृषि कानून वापस लेने के अलावा केंद्र सरकार ने किसानों की एक और मांग को मान लिया है। जिसके तहत अब खेतों में पराली जलाना अपराध नही होगा।
3. तेलंगाना किसान आंदोलन
तेलंगाना किसान आंदोलन 1946 में शुरू हो चुका था, लेकिन इसने 1947 में जोर पकड़ा। यह किसान आंदोलन तत्कालीन ब्रिटिश शासन और आजाद भारत की पहली सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब रहा। आंध्र प्रदेश में यह आंदोलन जमींदारों और साहूकारों की शोषणवादी नीतियों और भ्रष्ट अधिकारियों (Corrupt Officers) के अत्याचार के खिलाफ प्रारंभ किया गया था। कम कीमत पर गल्ला वसूली इस आंदोलन के पीछे की मुख्य वजह थी। इस आंदोलन की मुख्य बात ये रही कि किसान बिना किसी मध्यस्थ के खुद ही अपनी लड़ाई लड़ने लगे थे। इनकी अधिकांश मांगें आर्थिक होती थीं।
4. किसानों ने 2 दिन तक भोपाल को बंधक बना लिया
2010 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल भी किसानों के एक आंदोलन का गवाह बनी। किसानों ने बिना किसी चेतावनी के यहां के चप्पे-चप्पे पर अपना हक जमा लिया था। हालत यह हो गई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी अपने निवास से वल्लभ भवन तक पहुंचने के लिए कई रास्ते बदलने पड़े। किसानों ने 2 दिन तक भोपाल के हर इलाके पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस दौरान प्रशासन को मजबूरी में स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े। परीक्षाएं स्थगित हो गईं।
आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ (BKU) की कुल 183 मांगें थीं। गांवों में कम से कम 12 घंटे बिजली और किसानों के खिलाफ बिजली चोरी के मामले वापस लेना उनकी प्रमुख मांगों में शामिल था। वे उद्योगों के लिए अधिग्रहण के मामलों में कंपनी में शेयर की भी मांग कर रहे थे। इस आंदोलन के सबसे बड़े नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी थे। कक्काजी उस समय भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष थे।
5. खुदकुशी कर चुके किसानों की खोपड़ियां साथ लाए किसान
2017 में तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया था। ये आंदोलन खासा चर्चा में रहा था, क्योंकि किसानों ने विरोध के लिए अलग तरीके अपनाए। किसानों अर्धनग्न प्रदर्शन से लेकर चूहे खाने और सांप को मुंह में रखने जैसे काम भी किए। वो आत्महत्या कर चुके किसानों की खोपड़ियां भी साथ लेकर आए थे। इन किसानों की मांगें थी कि सूखे की मार झेल रहे तमिलनाडु के किसानों को कर्ज माफी और राहत पैकेज मिले। बाद में किसानों ने तमिलनाडु सरकार के मदद के भरोसे के बाद अपना आंदोलन खत्म कर दिया था।
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