गजब Coincidence : एक ही दिन पैदा हुए धीरूभाई, रतन टाटा और जेटली, जानें ऐसे मिली शोहरत

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गजब Coincidence : एक ही दिन पैदा हुए धीरूभाई, रतन टाटा और जेटली, जानें ऐसे मिली शोहरत

नई दिल्ली. किसी दिन पैदा होने से व्यक्ति की महानता का यूं तो लेना-देना नहीं होता। 2 अक्टूबर को लाखों लोग पैदा हो चुके होंगे, लेकिन ये दिन महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के लिए याद किया जाता है। आज 28 दिसंबर है और आज के दिन 3 अजीम शख्सियतों ने जन्म लिया। ये हैं- धीरूभाई अंबानी (28 दिसंबर 1932, गुजरात, चोरवाड), रतन टाटा (28 दिसंबर 1937, मुंबई) और अरुण जेटली (28 दिसंबर 1937, दिल्ली)। ये तीनों अपनी जिंदगी में शिखर पर रहे। इनमें से दो (धीरूभाई और जेटली) अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन तीनों ने देश-दुनिया पर असर डाला। आज हम आपको इन तीनों के बारे में बता रहे हैं।

धीरूभाई अंबानी

धीरूभाई का पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था। इन्होंने अपनी मेहनत से शून्य से शीर्ष तक का सफर तय किया है। धीरूभाई की घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। लिहाजा 17 साल की उम्र में पैसे कमाने के लिए वो साल 1949 में अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए। जहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर 300 रुपये प्रति माह सैलरी की नौकरी मिल गई। साल 1958 में वो भारत वापस चले आए। उन्हें बाजार की बखूबी पहचान थी इसलिए भारत में उन्होंने रिलायंस कॉरपोरेशन की शुरुआत की, जिसने भारत के मसाले विदेश में और विदेश में बने पॉलिस्टर को भारत में बेचा जाता था।

धीरूभाई ने साल 1966 में गुजरात के अहमदाबाद में एक कपड़ा मिल की शुरुआत की, जिसका नाम 'रिलायंस टैक्सटाइल्स' रखा। ये उनकी जिंदगी का सबसे निर्णायक मोड़ था, इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ते चले गए।साल 1977 में धीरूभाई अंबानी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना की।मीडिया रिपोर्टे के अनुसार जब उनकी मौत हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी। उनका निधन 6 जुलाई, 2002 को हुआ था।

रतन टाटा

रतन टाटा बिजनेस टायकून तो हैं ही लेकिन उनकी सादगी और दरियादिली ने लोगों को उनका कायल बनाया हुआ है। रतन टाटा का बचपन का सपना एक आर्किटेक्ट (Architect) बनने का था। लेकिन उनके पिता नवल टाटा चाहते थें कि वे इंजीनियर बने। रतन टाटा ने आईबीएम की नौकरी ठुकराकर टाटा ग्रुप के साथ 1961 में एक कर्मचारी के तौर पर अपने कैरियर की शुरूआत की थी। लेकिन वे 1991 आते-आते वो टाटा ग्रुप के अध्यक्ष बन गए। उन्होंने अपने 21 साल के राज में कंपनी को शिखर पर पहुंचा दिया और 2012 में वह रिटायर हुए।  

साल 1968 में एक छोटे से जिस कंपनी की शुरूआत हुई वो आज भारत की टॉप 5 कंपनियों में शुमार है। इतने बड़े बिजनेसमैन और देश के दिग्गज कारोबारी होने के बाद भी रतन टाटा बेहद सरल जीवन जीने में यकीन रखते हैं। उनका मानना है कि काम सबसे बड़ी पूजा है। रतन टाटा के मुताबिक अगर आप कोई काम नियमों में रहकर करते हैं तो हो सकता है आपको सपलता मिलने में समय लगे। लेकिन ये तय है कि सफलता मिलेगी जरुर और ये सब बातें उन्होंने अपनी दादी से सीखी हैं।

अरुण जेटली

अरुण जेटली अपने समय के एक प्रमुख नेता ही नहीं बल्कि देश के कुछ खास वित्त मंत्रियों में से एक के तौर पर याद किए जाते हैं। अरुण जेटली ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कभी कोई लोकसभा चुनाव नहीं जीता, बावजूद उन्हें राजनीति का पुरोधा माना जाता है। वकालत की पढ़ाई करने वाले अरुण जेटली के राजनीतिक जीवन की शुरूआत दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई थी। 1974 में वह डीयू के छात्र संगठन के अध्यक्ष रहे थे।

25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लगाया गया था तब अरुण जेटली दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। इसके अगले ही दिन उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के दफ़्तर के सामने 200 छात्रों को इकट्ठा कर भाषण दिया और इंदिरा गाँधी का एक पुतला जलाया था। जिसके बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। 19 महीने कैद रहने के बाद जब वे जेल से निकले तो उन्हें इस बात का साफ़ आभास हो गया कि आगे का उनका करियर राजनीति में है। 1980 में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ते ही अरुण जेटली उसके दिल्ली के यूथ विंग के अध्यक्ष बने। नोटबंदी, जीएसटी, देश भर में डिजिटल बैंकिंग जैसे कई बड़े और अहम फैसले जेटली के कार्यकाल में लिए गए थे।

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