CG की एडसमेटा मुठभेड़ की करीब 9 साल बाद रिपोर्ट; पुलिस ने गोलियां चलाईं, लेकिन..

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Atul Tiwari
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CG की एडसमेटा मुठभेड़ की करीब 9 साल बाद रिपोर्ट; पुलिस ने गोलियां चलाईं, लेकिन..

रायपुर. छत्तीसगढ़ सरकार ने करीब 8 साल 11 महीने और 28 दिन बाद एडसमेटा मुठभेड़ की न्यायिक जांच रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर सार्वजनिक कर दी है। न्यायिक जांच आयोग ने 30 जून 2021 को जांच पूरी कर ली थी, जिसे 29 जुलाई को सरकार को सौंपा गया। 8 सितंबर 2021 को सरकार ने इसे कैबिनेट में रखा था। न्यायिक जांच परिस्थितियजन्य साक्ष्यों और अभिलेखों के अध्ययन से नतीजे पर पहुंची। जांच आयोग ने सुरक्षाबल और शिकायतकर्ताओं के मौखिक साक्ष्य को विश्वसनीय नहीं मानते हुए नकार दिया। 



रिपोर्ट में यह माना गया कि गोलियां सुरक्षाबलों ने ही चलाईं, लेकिन घबराहट में। रिपोर्ट 99 पन्नों की है और सुझावों को मिला लें तो यह 122 बिंदुओं पर केंद्रित है। यह बीजापुर के एडसमेटा में घटित उस घटनाक्रम की न्यायिक जांच रिपोर्ट है, जिसमें कथित नक्सली मुठभेड़ में 8 व्यक्तियों की मौत हुई थी, 5 घायल हुए थे। इन घायलों में से एक की बाद में मौत हो गई थी। 



ये हुआ था: 17-18 मई 2013 की दरमियानी रात सशस्त्र बलों में सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन और राज्य पुलिस शामिल थी। उन्होंने एडसमेटा में नक्सली मुठभेड़ का दावा किया। इस मुठभेड़ में 8 की मौत हुई थी। पुलिस ने FIR में एक का शव बरामद बताते हुए उसे नक्सली करार दिया था। FIR में पुलिस ने घटनास्थल से नक्सली सामग्री और दो बंदूकों बरामदगी भी दर्शाई थी। साथ ही मुठभेड़ में सीआरपीएफ के एक जवान की भी मौत हुई थी। सुबह सशस्त्र बल फिर गांव पहुँचे और मृतकों के शवों के साथ साथ ग्रामीणों को भी पकड़ कर थाना ले आए। 



मामले में सीआरपीएफ और राज्य पुलिस का नक्सली मुठभेड़ का दावा अगले ही दिन विवादों में आ गया। ग्रामीण बड़ी संख्या में गंगालुर थाने पहुंचे और सुरक्षाबलों का दावा खारिज करते हुए शवों को लेने से इनकार कर दिया। ग्रामीणों जिनमें महिलाएं भी थीं। उनका कहना था कि पुलिस ने बीज पंडुम (स्थानीय उत्सव/पूजा) मना रहे निहत्थे ग्रामीणों पर गोलियां चलाईं, मारा-पीटा और हत्या कर दी। पुलिस ने तब दलील दी कि मारे गए नक्सली ही थे। नक्सलियों के बड़े नेता ग्रामीणों की बैठक ले रहे थे और ग्रामीणों की आड़ लेकर फायरिंग करते हुए भाग गए। 



मामला इस कदर हंगामाखेज हुआ कि कथित मुठभेड़ के 24 घंटे के भीतर याने 19 मई को तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया। इस आयोग के गठन के साथ ही साथ तत्कालीन सरकार ने मृतकों और घायलों को मुआवजा राशि भी दी, जिसे कुछ ने स्वीकारा, पर कइयों ने नहीं लिया।



 क्या कहा गया रिपोर्ट में: रिपोर्ट यह दावा करती है कि जांच शुरू होने के 4 साल तक कोई भी बयान देने नहीं आया। चार साल बाद कुल 14 शिकायतकर्ताओं ने (जिनमें तीन ने चश्मदीद होने का दावा किया) आवेदन पेश किए। इन आवेदनों के जवाब में सुरक्षाबलों की ओर से भी आवेदन पेश किए गए। जांच आयोग ने इन सभी के मौखिक साक्ष्य को बेहद संदेहास्पद और अविश्वसनीय मानते हुए पूरे मामले का परिस्थितियों के आधार पर निष्कर्ष निकाला। 



आयोग ने नतीजे में पाया कि जिस सीआरपीएफ जवान की मौत हुई, वह बंदूक की गोली से हुई और यह गोली उसे क्रॉस फायरिंग यानी उसी के साथी जवानों की ओर से हुई गोलीबारी की वजह से लगी। आयोग ने पुलिस के इस दावे को खारिज किया कि गोलियां ग्रामीणों के समूह को ढाल बनाकर नक्सलियों ने चलाईं। साथ ही जब्त दो भरमार बंदूकों के पुलिस दावे को भी संदेहास्पद माना है। आयोग ने माना है कि ग्रामीणों की भीड़ (जिसे आयोग ने जमाव शब्द से संबोधित किया है) के पास कोई हथियार नहीं था। रिपोर्ट उन मृत और जीवित ग्रामीणों के नक्सली होने को भी खारिज करती है।



मामले की CBI जांच भी जारी: एडसमेटा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 3 मई 2019 से मामले की पूरी जांच सीबीआई के हवाले हो चुकी है। केंद्रीय एजेंसी फिलहाल मामले की तफ्तीश कर रही है।


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