नई दिल्ली. मध्य प्रदेश में सरकारी पदों पर प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को फैसला सुनाएगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 14 सितंबर को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश समेत सभी राज्यों का पक्ष सुनने के बाद कहा कि मामले में अब सुनवाई नहीं होगी। सभी राज्य 2 हफ्ते में अपना पक्ष लिखित में पेश करें। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 5 अक्टूबर से लगातार केंद्र और राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए आधा-आधा घंटा दिया जाएगा।
मामला लंबित है, इसलिए प्रमोशन नहीं मिल पा रहा
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय बेंच ने कहा कि कई साल से यह मामला लंबित है। इसकी वजह से कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा। लिहाजा, अब आगे तारीख नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले के फैसले में इंदिरा साहनी और नागराज के केस को शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में फैसला दे चुका है।
MP ने राज्य सरकारों की तरफ से लीड किया
मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से इस मामले की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मनोज गोरकेला ने एक अखबार को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में करीब 1 घंटे सुनवाई हुई, जिसमें सभी राज्य सरकारों की तरफ से MP ने लीड किया। MP सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आरएस सूरी, विशेष गुप्ता, संजय हेगड़े भी कोर्ट में उपस्थित हुए। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। 10 अक्टूबर को इस पर डिटेल ऑर्डर जारी होगा, जो केंद्र और देश के सभी राज्यों में लागू होगा। सुनवाई के दौरान पंजाब, बिहार, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा के वकील भी मौजूद रहे।
हाईकोर्ट ने पदोन्नति (Promotion) नियम में आरक्षण (Reservation), बैकलॉग के खाली पदों को कैरीफारवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान विरुद्ध मानते हुए इन पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, इस पर फैसला आना बाकी है।
2016 में हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
मध्य प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति होती थी, लेकिन 2016 में हाईकोर्ट (HC) ने इस पर रोक लगा दी। दरअसल, अनारक्षित वर्ग (Unreserved Class) की ओर से अनुसूचित जाति-जनजाति (SC-ST) को दिए जा रहे रिजर्वेशन की वजह से उनके हक प्रभावित होने को लेकर हाईकोर्ट में 2011 में 24 याचिकाएं (Petitions) दायर की गई थीं। इनमें सरकार द्वारा बनाए मप्र पब्लिक सर्विसेज (प्रमोशन) रूल्स 2002 में एससी-एसटी को दिए गए आरक्षण को कटघरे में रखा गया था।
हाईकोर्ट का क्या फैसला?
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को राज्य में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के नियम को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की बेंच ने कहा कि यह नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 335 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को दिए गए दिशा-निर्देश के खिलाफ है।
हाईकोर्ट के फैसले पर SC में अपील
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। ऐसे में अब पदोन्नति तभी हो सकती है, जब कोर्ट इसकी अनुमति दे। सरकार ने इसको लेकर कोर्ट से अनुरोध भी किया था पर अनुमति नहीं मिली। इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन कर्मचारियों और अधिकारियों को हुआ, जो पिछले 5 साल में रिटायर हो गए। इसकी संख्या करीब 1 लाख बताई जाती है।