New Delhi. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को अहम फैसला सुनाते हुए देशद्रोह कानून की धारा 124 ए पर रोक लगा दी। शीर्ष कोर्ट ने इसके तहत दायर सभी लंबित मामलों पर भी रोक लगा दी। कोर्ट ने कानून पर केंद्र सरकार को पुनर्विचार का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि इस धारा के तहत अब कोई नया केस दर्ज नहीं होगा और इसके तहत जेल में बंद लोग कोर्ट से जमानत मांग सकेंगे। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को IPC की धारा 124 ए के पुनरीक्षण की इजाजत देते हुए कहा कि जब यह काम पूरा न हो, कोई नया केस इस धारा में दर्ज नहीं किया जाए।
सुनवाई में सरकार ने दी दलीलें
इससे पहले देशद्रोह कानून (Sedition law) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 मई को भी सुनवाई हुई। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखा।अपनी दलीलें पेश करते हुए उन्होंने कहा कि एक संज्ञेय अपराध को दर्ज करने से रोकना सही नहीं होगा। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच से मेहता ने कहा कि 1962 में एक संविधान पीठ ने देशद्रोह कानून की वैधता को कायम रखा था। इसके प्रावधान संज्ञेय अपराधों के दायरे में आते हैं। हां, ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने की निगरानी की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी को दी जा सकती है।
तुषार मेहता ने शीर्ष कोर्ट से ये भी कहा कि जहां तक देशद्रोह के विचाराधीन मामलों का सवाल है, हर केस की गंभीरता अलग होती है। किसी मामले का आतंकी कनेक्शन तो किसी का मनी लॉन्ड्रिंग कनेक्शन हो सकता है। अंतत: लंबित केस अदालतों में विचाराधीन होते हैं और हमें कोर्ट पर भरोसा करना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से साफतौर पर कहा गया कि देशद्रोह के प्रावधानों पर रोक का कोई भी आदेश पारित करना सही नहीं होगा। इन्हें संविधान पीठ (कॉन्स्टीट्यूशनल बेंच) ने कायम रखा है।
केंद्र से 24 घंटे में मांगा था जवाब
10 मई को सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह देशद्रोह के लंबित मामलों को लेकर 24 घंटे में अपना मत स्पष्ट करे। कोर्ट ने पहले से दर्ज ऐसे मामलों में नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए ब्रिटिश दौर के इस कानून के तहत नए मामले दर्ज नहीं करने पर भी अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था।
दरअसल, IPC की धारा 124A, देशद्रोह या राजद्रोह को अपराध बनाती है, उसके गलत इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले निर्देशों के बाद मंत्रालय ने इस कानून के प्रावधानों पर विचार और जांच करने का फैसला लिया है।
2014 से 2019 के बीच देशद्रोह के 326 मामले दर्ज
2014 से 2019 के बीच देश में इस विवादित कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से केवल 6 लोगों को दोषी ठहराया गया। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कुल 326 मामलों में से सबसे ज्यादा 54 मामले असम में दर्ज किए गए थे।