मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को कृष्ण जन्मभूमि के रूप में मान्यता नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज की जनहित याचिका

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Pratibha Rana
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मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को कृष्ण जन्मभूमि के रूप में मान्यता नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज की जनहित याचिका

Prayagraj. मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद स्थल को कृष्ण जन्मभूमि के रूप में मान्यता देने की मांग वाली जनहित याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। बुधवार (11 अक्टूबर) को यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है। हाई कोर्ट ने 4 सितंबर को अंतिम सुनवाई करते हुए निर्णय सुरक्षित कर लिया था। इस फैसले को कृष्ण जन्मभूमि पक्ष के लिए झटका माना जा रहा है।

मथुरा का इतिहास रामायण काल से भी पहले का

सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता महक महेश्वरी इस मामले में याची थीं। उनकी तरफ से दलील दी गई थी कि विचाराधीन स्थल कृष्ण जन्मभूमि है। मथुरा का इतिहास रामायण काल से भी पहले का है और इस्लाम सिर्फ 1500 साल पहले आया था। इस्लामिक न्यायशास्त्र के अनुसार यह उचित मस्जिद नहीं है क्योंकि, जबरन अधिग्रहीत भूमि पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। हिंदू न्यायशास्त्र के अनुसार, मथुरा में यह मंदिर है। भले ही वह खंडहर हो, इसलिए जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए और उस भूमि पर मंदिर बनाने के लिए कृष्ण जन्मभूमि जन्म स्थान के लिए ट्रस्ट बनाया जाए।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे की मांग

याचिका में शाही ईदगाह स्थल की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) से अदालत की निगरानी में जीपीआरएस आधारित सर्वे कराने की मांग भी की गई थी। याचिका में कहा था कि श्रीकृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ था, जो शाही ईदगाह ट्रस्ट द्वारा निर्मित वर्तमान संरचना के नीचे है। यह भी कहा गया कि 1968 में सोसायटी श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन समिति के साथ समझौता किया, जिसमें भगवान की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा बाद में दे दिया गया।

तर्क : मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं

कुल 13.37 एकड़ जमीन में 11 एकड़ जन्मभूमि मंदिर तथा शेष 2.37 एकड़ ईदगाह को दी गई। यह तर्क भी दिया गया कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, इसलिए विवादित भूमि को अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास और प्रचार करने के उनके अधिकार के प्रयोग के लिए हिंदुओं को सौंपा जाना चाहिए।

धारा दो, तीन और चार को असंवैधानिक बताया था

पूजा स्थल अधिनियम 1991 की धारा दो, तीन और चार को असंवैधानिक बताते हुए रद करने का आग्रह भी याचिका में था। यह भी कहा गया कि यह प्रविधान हिंदू कानून के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं क्योंकि, मंदिर की संपत्ति कभी नहीं खोती। यहां तक कि राजा भी संपत्ति नहीं छीन सकता है।


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