लखनऊ. उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड (UP Shia Waqf Board) के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी (Waseem Rizvi) 6 दिसंबर को इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म (Hindu Religion) ग्रहण कर लिया। वसीम का नया नामकरण भी हो गया। वे अब जितेंद्र नारायण त्यागी कहलाएंगे। हिंदू धर्म अपनाने के बाद उन्होंने कहा कि जब मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया तो फिर मेरी मर्जी है कि मैं कौन सा धर्म स्वीकार करूं। सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला धर्म है। उसमें जितनी अच्छाइयां हैं, और किसी धर्म में नहीं। आइए, जानते हैं कि कौन हैं वसीम रिजवी और उन्हें इस्लाम छोड़कर हिंदू बनने की क्या जरूरत आन पड़ी...
5 साल से चर्चा में
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के सत्ता में आने के बाद से वसीम (जितेंद्र नारायण) लगातार चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं। उन्होंने देश की 9 मस्जिदों को हिंदुओं को सौंपने की बात उठाई थी। कुतुब मीनार परिसर में स्थित मस्जिद को हिंदुस्तान की धरती पर कलंक बताया था। साथ ही मदरसों की तलीम को आतंकवाद से जोड़ा था। कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की थी, जिसके बाद शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमाओं ने फतवा देकर उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया। इस बात पर परिवार के लोग भी उनके खिलाफ हो गए थे। उनकी मां और भाई ने भी नाता तोड़ लिया था।
गाजियाबाद के देवी मंदिर में यति नरसिंहानंद सरस्वती ने रिजवी को हिंदू धर्म में शामिल कराया। वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी माथे पर त्रिपुंड लगाए, गले में भगवा बाना पहने भगवान शंकर का अभिषेक करते दिखे।
फैमिली बैकग्राउंड
रिजवी शिया परिवार में पैदा हुए थे। पिता रेलवे के कर्मचारी थे, लेकिन वसीम के छटवीं में रहने के दौरान उनके वालिद (Father) का इंतकाल हो गया। इसके बाद वसीम रिजवी और उनके भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। वसीम, भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और वे 12वीं की पढ़ाई के बाद सऊदी अरब में एक होटल में नौकरी करने चले गए। फिर बाद में जापान (Japan) और अमेरिका (US) में काम किया।
पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वसीम लखनऊ लौटे और खुद का काम शुरू किया। कई लोगों के साथ अच्छे रिश्ते बने तो उन्होंने नगर निगम का चुनाव लड़ने का फैसला किया। यहीं से उनके पॉलिटिकल करियर की शुरूआत हुई। इसके बाद रिजवी शिया मौलाना कल्बे जव्वाद के करीब आए और शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य बने। रिजवी ने दो शादियां कीं और दोनों ही लखनऊ में हुईं। रिजवी की पहली पत्नी से तीन बच्चे हैं, जिनमें दो बेटियां और एक बेटा है। तीनों ही बच्चों की शादियां हो चुकी है।
जिससे गहरा नाता, उसी से ठन गई
2003 में जब यूपी में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो वक्फ मंत्री आजम खान की सिफारिश पर सपा नेता मुख्तार अनीस को शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया। अनीस के कार्यकाल में लखनऊ के हजरतगंज में एक वक्फ संपत्ति को बेचे जाने का मौलाना कल्बे जव्वाद ने कड़ा विरोध किया था। मौलाना के तल्ख रुख पर मुख्तार अनीस को बोर्ड के चेयरमैन पद से हटना पड़ा। इसके बाद मुलायम ने 2004 में मौलाना कल्बे जव्वाद की सिफारिश पर वसीम रिजवी को शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बना दिया।
2007 में विधानसभा चुनाव के बाद मायावती के सत्ता में आने के बाद वसीम रिजवी ने सपा छोड़ बसपा में शामिल हो गए। 2009 में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद जब नए शिया बोर्ड का गठन हुआ तो मौलाना कल्बे जव्वाद की सहमति से उनके बहनोई जमालुद्दीन अकबर को चेयरमैन बनाया गया और इस बोर्ड में वसीम रिजवी सदस्य चुने गए। यहीं से वसीम रिजवी और मौलाना कल्बे जव्वाद के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ गई।
लड़ाई सड़क पर आई
2010 में शिया वक्फ बोर्ड पर भ्रष्टाचार (Corruption) के आरोप लगे तो तत्कालीन चेयरमैन जमालुद्दीन अकबर ने इस्तीफा दे दिया और इसके बाद वसीम रिजवी एक बार फिर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष पद पर काबिज हो गए। तीन साल के बाद 2012 में सत्ता परिवर्तन हुआ और सपा सरकार बनने के दो महीने बाद 28 मई को वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया गया। वसीम रिजवी ने आजम खान से करीबी नाते के चलते साल 2014 में वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बन गए, जिसे लेकर मौलाना कल्बे जव्वाद ने सपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
कल्बे जव्वाद ने अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन आजम खान के सियासी प्रभाव के चलते वसीम रिजवी वक्फ बोर्ड अध्यक्ष बने रहे। 2017 में सत्ता बदलने के बाद रिजवी ने अपने राजनीतिक तेवर भी पूरी तरह से बदल दिए। रिजवी ने अपना शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के तौर पर अपना कार्यकाल 18 मई 2020 को पूरा किया, लेकिन दोबारा से वापसी नहीं हो सकी।
रिजवी पर भ्रष्टाचार के आरोप
वसीम रिजवी पर कई वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे, जिसे लेकर तमाम FIR दर्ज कराई गई। कल्बे जव्वाद के प्रभाव में योगी सरकार ने वक्फ संपत्तियों पर हुए अवैध कब्जे की जांच CBCID के हवाले कर दी। अब यह मामला CBI के हवाले हैं। 5 जिलों में धांधली मामले में रिजवी समेत कुल 11 लोगों पर केस दर्ज किए हैं। सीबीआई ने शिया वक्फ संपत्तियों को गैर-कानूनी तरीके से बेचने, खरीदने और ट्रांसफर करने के आरोप में यह केस दर्ज किए हैं। अब वसीम (जितेंद्र नारायण त्यागी) इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म की शरण में हैं। यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में उनकी भूमिका क्या होगी, ये देखना दिलचस्प रहेगा।
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