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Delhi. द्रौपदी मुर्मू देश की नई राष्ट्रपति चुनी गईं हैं। आज उन्होंने पद और गोपनीयता की सलामी ली। पार्षद से राष्ट्रपति तय का सफर तय करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने शपथ गृहण समारोह में अपने संबोधन के दौरान कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है बल्कि हर गरीब वर्ग की उपलब्धि है। सादगी का जीवन जीने वाली द्रौपदी मुर्मू का जीवन अत्यंत संघर्ष भरा है। उनका व्यक्तितत्व वास्तव में प्रेरणादायक है। अत्यंत सादगी से रहने वाली द्रौपदी मुर्मू पूरी तरह से शाकाहारी हैं। शिव की भक्त द्रौपदी प्याज-लहसुन भी नहीं खातीं हैं। उन्हें राज्य का पारंपरिक भोजन पखाल और सजना करना पसंद है। अब राष्ट्रपति भवन की रसोई में पखाल और सजना पकेगा।
सावन के पहले सोमवार को वोटिंग और दूसरे सोमवार को शपथ
राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन के बाद ओडिशा के रायरंगपुर के एक मंदिर में द्रौपदी मुर्मू की झाड़ू लगाती हुई तस्वीर और वीडियो खूब वायरल हुआ। यह भी संयोग है कि सावन के पहले सोमवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग हुई और अब दूसरे सोमवार को शपथ ग्रहण। उनके गांव में जिससे पूछिए सब एक बात जरूर कहते हैं- द्रौपदी सब कुछ छोड़ सकती हैं, लेकिन अपने शिव बाबा का ध्यान नहीं। उनकी पोती सुनीता मांझी कहती हैं कि वह सुबह 3-4 बजे के बीच जाग जाती हैं। उनके रूटीन में मॉर्निंग वॉक, योग और शिव की पूजा शामिल है।
बेटे की मौत के बाद अध्यात्म का सहारा
साल 2013 में बड़े बेटे की मौत के बाद द्रौपदी डिप्रेशन में चली गई थीं। इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया और शिवभक्त बन गईं। इतना ही नहीं उन्होंने नॉनवेज खाना भी छोड़ दिया। अब तो वे लहसुन-प्याज भी नहीं खाती हैं। ऊपरवेड़ा गांव में रह रही उनकी पुत्रवधु कहती हैं, 'वह जब भी यहां आती हैं, पहले फोन कर देती हैं कि पखाल और सजना का साग बनाना।' पखाल यानी पानी का भात और सजना यानी सहजन का साग। कई राज्यों में इसे मुनगा का साग भी कहते हैं। आंगन में लगे एक पेड़ की तरफ इशारा करते हुए वो कहती हैं, 'यह सजना का पेड़ है। जब वह आती हैं, हम इसी पेड़ से साग तोड़कर बनाते हैं।'
देश की नई राष्ट्रपति क्या-क्या खाती हैं
द्रौपदी की भाभी शाक्य मुनी कहती हैं, 'वह वेजीटेरियन हैं। सुबह नाश्ते में जो भी घर में बनता है, खा लेती हैं। कुछ ड्राई फ्रूट्स उनके नाश्ते में जरूर रहते हैं। दोपहर में चावल, साग-सब्जी और रोटी खाती हैं। रात में कोई फ्रूट और हल्दी वाला दूध लेती हैं।'
राष्ट्रपति भवन में भी विराजेंगे निरंकार शिव
द्रौपदी को उनके दुख भरे दिनों में ब्रह्मकुमारी की मुखिया सुप्रिया ही अध्यात्म के रास्ते पर लेकर आईं। दरअसल द्रौपदी ने बड़े बेटे की मौत के बाद उन्हें घर बुलाया था और पूछा था कि इस मुश्किल वक्त से कैसे निकलूं? तब सुप्रिया ने उन्हें ध्यान सेंटर पर आने की सलाह दी थी। सुप्रिया कहती हैं, 'जहां-जहां, द्रौपदी वहां-वहां उनके शिव बाबा।'