मुंबई. आज मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी की 395वीं जयंती है। 19 फरवरी 1627 को शिवनेर के किले में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और मां का नाम जीजाबाई था। शाहजी अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई के पास रहते थे, इस कारण शिवाजी को लंबे समय तक पिता का प्यार नहीं मिल पाया। उनके व्यक्तित्व निर्माण में मां जीजाबाई का खासा योगदान था। यादव कुल की जीजाबाई असाधारण प्रतिभा संपन्न थीं। 1680 में शिवाजी का निधन हो गया, लेकिन महज 53 साल के जीवन में वे कई महान काम कर गए। आज हम आपको उन्हीं के बारे में बता रहे हैं....
गुरु का भी खासा प्रभाव: शिवाजी के चरित्र विकास में समर्थ गुरु रामदास का भी प्रभाव था। रामदास शिवाजी के आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक थे। रामदास ने मराठों को संगठित करने और जननी-जन्मभूमि की रक्षा करने का संदेश दिया था। उन्होंने धर्म, गाय और ब्राह्मण की रक्षा करने का आदेश दिया था। मां, संरक्षक (दादाजी कोंडदेव) और गुरु के आदर्शों से प्रेरणा लेकर शिवाजी गजब के साहसी योद्धा बन गए। 1641 में शिवाजी का विवाह सईबाई निंबालकर के साथ हुआ था।
परंपरागत शिक्षा नहीं मिली: शाहजी भोंसले ने दादाजी कोंडदेव को शिवाजी का संरक्षक नियुक्त किया था। शिवाजी की परंपरागत शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई थी, लेकिन कोंडदेव ने धार्मिक ग्रंथों, युद्ध कला और प्रशासन की ज्ञान दिया। शिवाजी ने समझ लिया था कि उनके पास ज्यादा सेना नहीं है, इसलिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध (छिपकर अचानक से हमले करना) लड़े।
शुरुआत में तीन किले जीते: शिवाजी ने 1645-47 के बीच तीन पहाड़ी किलों पर अधिकार कर लिया। 1656 में उन्होंने जावली (Jawali) पर विजय हासिल की। इस जीत के बाद शिवाजी के लिए अपने राज्य को दक्षिण-पश्चिम में फैलाना आसान हो गया। यहां से मिले सैनिक (मालवी सैनिक) उनके सबसे पहले सच्चे साथी और सबसे बड़े स्वामिभक्त साबित हुए। शिवाजी को बड़ा खजाना मिला, जिससे उन्होंने अपनी वित्तीय और सैनिक समस्याओं को हल किया। उन्होंने रायगढ़ में एक शक्तिशाली दुर्ग बनवाया, पुरंदर के किले जीत लिए और नए किले बनवाए।
पहले मुगलों से हाथ मिलाया: शिवाजी की गतिविधियों से नाराज होकर बीजापुर के शासक आदिल शाह ने शिवाजी के पिता शाहजी को कैद कर लिया। तब शिवाजी ने मुगल सम्राट शाहजहां को औरंगजेब के जरिए (औरंगजेब उस समय दक्षिण का सूबेदार था) निवेदन किया और उसके सहयोग से अपने पिता को कैद से आजाद करा लिया। इसके बाद 6 साल बाद तक शिवाजी ने अपनी सैनिक गतिविधियां बंद रखीं।
चतुराई से अफजल खां को मारा: बीजापुर के शासक ने कुछ समय बाद मराठों को अपने क्षेत्र से निकालने और शिवाजी को जीवित या मृत पकड़ने के लिए अफजल खां के साथ सेना भेजी। अफजल खां काफी बलिष्ठ था, वह बांहों में कसकर शिवाजी को मारना चाहता था, लेकिन शिवाजी ने बाघनख से उसका पेट फाड़ दिया। अफजल के मरते ही मराठों और आदिल शाह की सेना के बीच युद्ध छिड़ा, जिसमें बीजापुर की सेना बुरी तरह हार गई। इसके बाद आदिल शाह ने शिवाजी को स्वतंत्र शासक मान लिया।
मुगलों के साथ संघर्ष: अफजल खां को हराने के बाद शिवाजी ने मुगल प्रदेशों में छापे मारने शुरू कर दिए। 1663 में औरंगजेब ने मुगल सेनापति शाइस्ता खां को शिवाजी से लड़ने भेजा। शुरुआत में उसने कई इलाके जीत भी लिए। इसके बाद शाइस्ता बारिश गुजारने के लिए पूना में रुक गया। पूना में शिवाजी ने शाइस्ता पर अचानक हमला बोल दिया। 15 अप्रैल 1663 की रात शिवाजी ने 400 चुने सैनिकों के साथ एक बारात के रूप में पूना में प्रवेश किया। उन्होंने शाइस्ता को छावनी के भीतर ही घायल कर दिया और उसके बेटे को मौत के घाट उतार दिया। मुगल सेना में भगदड़ मच गई। शाइस्ता की इस हार से मुगल दरबार में सनसनी फैल गई।
पूना विजय के बाद 4000 सैनिकों के साथ शिवाजी ने मुगलों के अधीनस्थ सूरत शहर पर हमला बोला। 16 से 20 जनवरी 1664 तक इस शहर को लूटा गया। इसमें शिवाजी की सेना ने करीब एक करोड़ रुपए का माल लूटा।
मुगल दरबार में बंदी और बचकर निकले: 12 मई 1666 को शिवाजी अपने वादे के मुताबिक, आगरा के मुगल दरबार में अपने बेटे संभाजी और 350 सैनिकों के साथ पहुंचे। शिवाजी को औरंगजेब से उचित सम्मान ना मिलने के चलते वे दरबार में ही नाराज हो गए और मुगल सम्राट ने उन्हें बंदी बना लिया, लेकिन शिवाजी चालाकी से एक टोकरे में बैठकर वहां से निकल गए।
शिवाजी का प्रशासन: शिवाजी का 1674 में राज्याभिषेक हुआ। बनारस के पंडित गंगाभट्ट ने ये राज्याभिषेक कराया। महाराष्ट्र के पंडित उन्हें श्रेष्ठ नहीं मानते थे। शिवाजी ने प्रशासन के लिए अष्टप्रधान का गठन किया, जिसमें सबसे बड़ा पद पेशवा का था। बाद में यही पेशवा मराठा साम्राज्य के प्रमुख बन गए। 1680 में शिवाजी का निधन हो गया।