भोपाल. 23 मार्च 1931, यही वो दिन है जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव (Sukhdev) को फांसी दी गई थी। तीनों ने लाहौर की सेंट्रल जेल में अपनी आखिरी सांस ली। भगत सिंह (Bhagat singh), सुखदेव और राजगुरु (Rajguru) ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या की थी। भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले पर मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया। ट्राइब्यूनल ने तीनों को फांसी की सजा सुनाई। 24 मार्च का दिन फांसी के लिए तय हुआ। इधर देश में क्रांतिकारी आग भड़कने लगी। लोगों के गुस्से को देखते हुए अंग्रेजों ने तय समय से 11 घंटे पहले 23 मार्च को तीनों को फांसी दे दी। तीनों क्रांतिकारियों को याद करने के लिए आज के दिन को शहीद दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
भगतसिंह का सुखदेव को खत
किसी के चरित्र के बारे में बात करते हुए ये सोचना चाहिए क्या प्यार किसी इंसान के लिए मददगार साबित हुआ है। इसका जवाब मैं आज देता हूं। हां वो मेजिनी (इटली के क्रांतिकारी) था। तुमने जरूर पढ़ा होगा अपने पहले नाकाम विद्रोह को कुचल डालने वाली हार का दुख और दिवंगत साथियों की याद ये सब वह बर्दाश नहीं कर पाता। वह पागल हो जाता या फिर खुदखुशी कर लेता, लेकिन प्रेमिका के एक पत्र से वह सबसे अधिक मजबूत हो गया। प्यार के नैतिक स्तर का जहां संबंध है तो मैं कह सकता हूं कि ये एक भावना से अधिक कुछ भी नहीं है। ये पशुवृत्ति नहीं बल्कि एक मानवीय भावना है। प्यार सदैव मानव चरित्र को ऊंचा करता है, कभी भी नीचा नहीं दिखाता है। बशर्ते प्यार-प्यार हो।
इन लड़कियों और प्रेमिकाओं को पागल नहीं कहा जा सकता है जैसा हम फिल्मों में देखते हैं। वह सैदव पाश्विक वृत्ति के हाथों में खेलती रहती है। सच्चा प्यार कभी भी पैदा नहीं किया जा सकता ये अपने आप आता है। कब कोई नहीं कह सकता। मैं कह सकता हूं कि नौजवान युवक-युवती प्यार कर सकते हैं और प्यार के जरिए अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं। अपनी पवित्रता कायम रखे रह सकते हैं। मैं यहां साफ कर देना चाहता हूं कि जब मैंने प्यार को मानवीय कमजोरी कहा था तो ये किसी सामान्य व्यक्ति को लेकर नहीं था। जहां तक कि बौद्धिक स्तर पर सामान्य व्यक्ति होते हैं।
वह सबसे आदर्श स्थिति होगी जब मनुष्य प्यार, घृणा और सभी भावनाओं पर नियंत्रण पा लेगा। जब मनुष्य कर्म के आधार पर अपना पक्ष अपनाएगा। एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से मैंने प्यार की निंदा की है वह भी आदर्श स्थिति होने पर। मनुष्य के पास प्यार की एक गहरी भावना होनी चाहिए जो उसे व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं करके सर्वव्यापी बना सके। मेरे विचार से मैंने अपने पक्ष साफ कर दिया है। हां मैं एक बात तुमसे जरूर कहूंगा क्रांतिकारी विचारों के नैतिकता संबंधित सभी विचारों के सामाजिक धारणा को नहीं आपना सके। इस कमजोरी को बहुत सरलता से छिपाया जा सकता है पर वास्तविक जीवन में हम तुरंत थर-थर कांपना शुरू कर देते हैं।
मैं तुमसे अर्ज करुंगा कि ये कमजोरी त्याग दो। बिना गलत भावना लाए अत्यंत नम्रतापूर्वक क्या मैं तुमसे आग्रह कर सकता हूं कि तुम्हारे अंदर जो अति आदर्शवाद है उसे थोड़ा सा कम कर दो। जो पीछे रहेंगे या मेरी जैसी बीमारी का शिकार होंगे उनसे बेरुखी मत करना। झिड़ककर उनके दुख दर्द को न बढ़ाना क्योंकि उन्हें तुम्हारी हमदर्दी की जरूरत है। क्या मैं तुमसे ये आशा रखूं किसी विशेष व्यक्ति के प्रति खुंदक रखने के बजाए हमदर्दी रखोगे। उन्हें इसकी बहुत जरूरत है। तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते जब तक खुद इस चीज का शिकार न हो जाओ। लेकिन, मैं यहां ये सब कुछ क्यों लिख रहा हूं। दरअसल मैं अपनी बातें साफ तौर पर कहना चाहता हूं, मैंने अपना दिल खोल दिया है।
तुम्हारा
भगत सिंह
सुखदेव ने मारा था ताना: ये वाकया लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान का है। एक लड़की भगत को पसंद करने लगी थी। भगत की वजह से वह क्रांतिकारी दल में शामिल हो गई थी। जब असेंबली में बम फेंकने की प्लानिंग हो रही थी, तब भगत ये जिम्मेदारी लेने से पीछे हट गए। इस पर सुखदेव ने ताना मारते हुए कहा कि उस लड़की की वजह से भगत मरने से डर रहे हैं। इस बात से भगत का दिल रो दिया। उन्होंने दोबारा मीटिंग बुलाई और असेंबली में बम फेंकने का जिम्मा जबरन अपने नाम करा लिया। कहा जाता है कि 8 अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहले शायद 5 अप्रैल को भगत ने सुखदेव को एक पत्र लिखा था, जिसे शिव वर्मा ने उन तक पहुंचाया था। 13 अप्रैल को जब सुखदेव गिरफ्तार हुए तो ये खत उनके पास मिला और बाद में कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया गया...ये वहीं खत था।
राजगुरू के लिए बचपन में हो गई थी भविष्यवाणी: 24 अगस्त 1908 को क्रान्तिकारी राजगुरू का जन्म महाराष्ट्र के पुणे के खेड़ा गांव में हुआ था। ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस सपूत का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरू था। महज 6 साल की उम्र में राजगुरू के सिर से पिता का साया छिन गया था। पिता हरिनारायण के देहान्त के बाद वो पढ़ाई के लिए वाराणसी आ गए। जन्म के समय ही एक ज्योतिष ने राजगुरू की भविष्यवाणी करते कहा- ये बच्चा आगे जाकर कुछ ऐसा करेगा जिससे उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा।