सुभद्रा कुमारी चौहान: 9 की उम्र में पहली रचना, कविता से सिंधिया राजघराने पर आंच

author-image
Aashish Vishwakarma
एडिट
New Update
सुभद्रा कुमारी चौहान: 9 की उम्र में पहली रचना, कविता से सिंधिया राजघराने पर आंच

भोपाल. आज यानी 15 फरवरी को कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का निधन हुआ था। वह एक प्रसिद्ध कवयित्री होने के साथ ही एक स्वतंत्रता सेनानी थी। इलाहाबाद के एक जमींदार परिवार में सुभद्रा का जन्म हुआ था। सुभद्रा मध्यप्रदेश की बहू थी। उन्होंने जबलपुर के लक्ष्मण सिंह ठाकुर से शादी की थी। जानें उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से....





नौ की उम्र में पहली कविता: सुभद्रा में कविता लिखने का हुनर बचपन में ही आ गया था। साल 1913 में महज नौ साल की उम्र में सुभद्रा की पहली कविता प्रकाशित हुई थी। यह कविता प्रयाग से निकलने वाली 'मर्यादा' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। नीम के पेड़ पर लिखी गई 'नीम' नामक कविता 'सुभद्रा कुंवरि' के नाम से छपी। सुभद्रा कुमारी स्वभाव में चंचल और तेज बुद्धि की थी। उनको कविता लिखने के लिए जूझना नहीं पड़ता था। वह जल्द ही कविता लिख डालती थीं। 





सिंधिया राजघराने पर कविता से सवाल: ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजघराने पर समय-समय पर 1857 की क्रांति के दौरान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का साथ न देकर अंग्रेजों की मदद करने का आरोप लगता रहा है। इसका प्रमुख आधार सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध और लोकप्रिय कविता (खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी) में लिखी गई एक लाइन है। इसमें लिखा गया है कि अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी। उस समय ग्वालियर रियासत के राजा जयाजीराव सिंधिया थे। 





कविता की लाइनें कुछ इस तरह थी....





रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,





घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,





यमुना तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,





विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।





अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,





बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,





खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।





बच्चों का जीवन संवारते हुए समाज की सेवा: साल 1919 में सुभद्रा की शादी जबलपुर के लक्ष्मण सिंह ठाकुर से हुई। शादी के बाद वे जबलपुर में रहने लगी। सुभद्रा कुमारी शादी के डेढ़ साल पूरे होते ही सत्याग्रह में शामिल हो गईं और उन्होंने अपने जीवन के कई खास साल जेल जेलों में ही बिताए। घर और नन्हे-नन्हे बच्चों की जिंदगी संवारते हुए सुभद्रा ने समाज और राजनीति की सेवा की। देश के लिए कर्तव्य और समाज की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ की बलि चढ़ा दी।





महात्मा गांधी की डांट: सुभद्रा और लक्ष्मण सिंह 1920-21 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। सुभद्रा त्याग और सादगी में अपना जीवन बिताती थीं। वह सफेद खादी की बिना किनारे वाली धोती पहनती थीं। गहनों और कपड़ों की शौकीन होते हुए भी वह चूड़ी और बिंदी नहीं पहनती थी। उनको सादा वेशभूषा में देख कर बापू ने सुभद्रा जी से पूछ ही लिया, बेन! तुम्हारा ब्याह हो गया है? सुभद्रा ने कहा, हां! और फिर उत्साह से बताया कि मेरे पति भी मेरे साथ आए हैं। इसको सुनकर बापू नाराज हो गए। बापू ने सुभद्रा को डांटते हुए पूछा- तुम्हारे माथे पर सिन्दूर क्यों नहीं है? और तुमने चूड़ियां क्यों नहीं पहनीं है? जाओ, कल से किनारे वाली साड़ी पहनकर आना।



Mahatma Gandhi साहित्य सिंधिया राजघराना poet सुभद्रा कुमारी कवियत्री सुभद्रा कुमारी Subhadra Kumari Chauhan Subhadra Kumari peom jhansi ki rani गद्दारी विवाद subhara kumari death