सांसद-विधायक का सदन में 'वोट के बदले नोट' क्राइम है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार को तैयार, संविधान पीठ को भेजा मामला

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Vikram Jain
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सांसद-विधायक का सदन में 'वोट के बदले नोट' क्राइम है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार को तैयार, संविधान पीठ को भेजा मामला

NEW DELHI. सदन में ‘वोट के बदले नोट’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला लिया है। सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों और विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट पर सुप्रीम कोर्ट फिर से विचार करेगा। 5 जजों की संविधान पीठ ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला किया है। मामले को 7 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया है।

फैसले पर पुनर्विचार को तैयार सुप्रीम कोर्ट

सदन में किसी मामले पर मतदान या 'खास भाषण' देने के लिए किसी सांसद/विधायक का रिश्वत लेना क्राइम है या नहीं, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट 25 साल बाद एक बार फिर करने के लिए तैयार है।

कानूनी कार्रवाई से छूट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, कोर्ट यह तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो क्या तब भी उन पर मुकदमा नहीं चलेगा?

पीवी नरसिम्हा राव के इस फैसले से मिली थी छूट

दरअसल, 1998 का पीवी नरसिम्हा राव फैसला सांसदों को मुकदमे से छूट देता है, सुप्रीम कोर्ट ने अब इसी फैसले पर दोबारा विचार करने का निर्णय किया है, सुप्रीम कोर्ट ने इसे राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा माना है, अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार से इन मामलों के आरोपी सांसदों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

1998 में दिया गया फैसला जानें क्या था ?

सदन के भीतर रिश्वत लेने मामले में दोषी पाए जाने पर किसी सांसद/विधायक को सजा मिलने से इम्युनिटी मिली है या नहीं? इस सवाल का परीक्षण करते समय सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की खंडपीठ ने साल 1998 में 3-2 से बंटा निर्णय दिया था। शीर्ष अदालत ने माना था कि सांसदों/विधायकों को पहले भी ऐसे मामलों में अभियोजन से बचाया गया था। क्योंकि, ऐसी रिश्वत संसदीय वोट से जुड़ी थी। इसे लेकर संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के तहत सांसदों/विधायकों को संसदीय इम्युनिटी का संरक्षण मिला हुआ है। शीर्ष अदालत ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 105 (2) का हवाला दिया था, जिसके तहत संसद के किसी भी सदस्य को सदन में दिए गए किसी भी वोट के संबंध में अदालती कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है। इस आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों के खिलाफ मामले को खारिज कर दिया था। राज्य विधानसभाओं के विधायकों के लिए भी यह प्रावधान आर्टिकल 194(2) के तहत किया गया है।

1993 में बची थी नरसिम्हा की सरकार

बता दें कि कांग्रेस ने 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में केंद्र में अल्पमत की सरकार बनाई थी। तब सदन में 28 जुलाई को नरसिम्हा राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई थी। इस वोटिंग में झारखंड मुक्ति मोर्चा और जनता दल के 10 सांसदों ने अपने वोट नरसिम्हा राव सरकार के पक्ष में डाले थे। इसके लिए, JMM प्रमुख शिबू सोरेन और 3 सांसदों सूरज मंडल, साइमन मरांडी और शैलेन्द्र महतो को रिश्वत के रूप में करोड़ों रुपए दिए जाने का आरोप लगा था। इस आरोप की जांच CBI ने की थी। CBI ने जांच के बाद इन सांसदों के खिलाफ क्रिमिनल केस दाखिल किया था। इसमें कहा गया था कि सांसदों ने रिश्वत लेने की बात स्वीकार की।

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