NEW DELHI.स्टूडेंट्स के सुसाइड मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के माता-पिता के जिम्मेदार ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि छात्रों की आत्महत्या के लिए कोचिंग संस्थानों को दोषी ठहराना उचित नहीं है, क्योंकि माता-पिता की उम्मीदें बच्चों को जान देने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
छात्रों की आत्महत्या का मामला
सोमवार को कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों पर कड़ी प्रतिस्पर्धा और माता-पिता का दबाव देशभर में आत्महत्या के बढ़ते मामलों की मुख्य वजह है। कोर्ट ने यह टिप्पणी राजस्थान के कोटा में छात्रों की बढ़ते आत्महत्या के मामलों को लेकर की है। कोर्ट तेजी से बढ़ रहे कोचिंग संस्थानों के नियमन (रेगुलेशन) और छात्रों की आत्महत्या के आंकड़ों का हवाला देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हालांकि, कोर्ट ने इसमें अपनी लाचारी जाहिर करते हुए कहा कि न्यायपालिका ऐसी स्थिति में निर्देश पारित नहीं कर सकती है।
समस्या अभिभावकों की है कोचिंग संस्थानों की नहीं
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्राइवेट कोचिंग सेंटर को रेगुलेट करने और उनके लिए एक स्टैंडर्ड तय करने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया साथ ही कहा यह समस्या अभिभावकों की है, कोचिंग संस्थानों की नहीं। दो सदस्यों वाली पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी ने कहा कि यह आत्महत्याएं कोचिंग इंस्टिट्यूट की वजह से नहीं हो रही है, बल्कि इसलिए हो रही हैं, क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते।
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि 'हम में से ज्यादातर लोग यह नहीं चाहेंगे कि कोई कोचिंग संस्थान हो, लेकिन स्कूलों की हालत भी तो देखें। कड़ी प्रतिस्पर्धा है और छात्रों के पास इन कोचिंग संस्थानों के अलावा कहीं जाने का विकल्प नहीं है।'
जनहित याचिका में क्या कहा गया...
मुंबई के डॉ. अनिरुद्ध नारायण मालपानी की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि कोचिंग सेंटर छात्रों को अपने फायदे के लिए तैयार करके मौत के मुंह में धकेल देते हैं। डॉ. अनिरुद्ध नारायण की अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने कहा कि कोटा में आत्महत्याओं ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन यह घटना सभी निजी कोचिंग सेंटर के लिए आम हैं और ऐसा कोई कानून या रेगुलेशन नहीं है, जिसके इसके लिए जवाबदेह ठहराए जाए।
याचिकाकर्ता को कोर्ट का सुझाव
याचिकाकर्ता को सुझाव देते हुए कोर्ट ने कहा कि मामले में राजस्थान हाईकोर्ट पहुंचे, क्योंकि याचिका में जिन आत्महत्याओं का जिक्र है, उनमें ज्यादातर कोटा से जुड़ी हुई हैं। या फिर केंद्र सरकार को एक रिप्रेजेंटेशन दे, हम इस मामले में कानून कैसे बना सकते हैं। जिसके बाद वकील प्रिया ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और संकेत दिया कि याचिकाकर्ता एक रिप्रेजेंटेशन पेश करना चाहेगा।