गैर कांग्रेसवाद और समाजवाद के शिल्पी डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचार आज भी प्रासंगिक

author-image
The Sootr CG
एडिट
New Update
गैर कांग्रेसवाद और समाजवाद के शिल्पी डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचार आज भी प्रासंगिक

BHOPAL. आज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि है। 23 मार्च 1910 को यूपी के अकबरपुर में जन्मे राममनोहर लोहिया वैश्य परिवार से ताल्लुक रखते थे। भारत की आजादी में समाजवादी नेता के तौर पर राममनोहर लोहिया ने अपना अहम योगदान दिया। वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने अपनी अलग समाजवादी विचारधारा के चलते कांग्रेस से रास्ते अलग किए थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया देश के उस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का नाम है जो एक नई सोच और प्रगतिशील विचारधारा के मालिक थे। उनके सिद्धांत और आदर्श आज भी लोगों के अंदर एक नई ऊर्जा भरते हैं। राम मनोहर लोहिया को भारतीय राजनीति में समाजवाद का जनक माना जाता है। स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले लोहिया जीवनभर सत्य के साथ अनुकरण करने वाले समाजवादी विचारों के एक दृढ़ नेता माने जाते हैं। 



प्रखर और ओजस्वी भाषणों के लिए याद किए जाते हैं लोहिया



अपने दम पर समाजवाद के जरिए भारतीय राजनीति का रुख मोड़ने वाले लोहिया देशभक्ति की अद्भुत मिसाल थे। अपने प्रखर और ओजपूर्ण और बेबाक भाषणों के जरिये भारतीय जनमानस की विचारधारा को बदलने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। लोहिया ने संसद में एक आम आदमी के रोज के खर्चों को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर तीखा हमला बोला था। आज भी डॉ. लोहिया के विचारों से सीखने की जरूरत है कि कैसे विपक्ष की भूमिका में रहकर जनता के सवालों को पूरे जोरदार तरीके से रखा जाए। हम आपको लोहिया के 10 तीखे विचार बता रहे हैं...




1.जिंदा कौमें किसी भी बदलाव के लिए 5 साल का इंतजार नहीं करतीं।



2. अंग्रेजों ने सिर्फ बंदूक की गोली और अंग्रेजी बोली के बल पर हम पर राज किया।



3. भारत में जाति एक ऐसा अभेद किला बन गया है, जिसे तोड़ नहीं सकते।



4. जाति प्रथा को तोड़ने का एक ही उपाय है, वह है ऊंची और नीची जातियों के बीच बराबर के हिस्से का रोटी और बेटी का संबंध।



5. भारतीय नारी को हमेशा द्रौपदी के आदर्शो पर चलने वाली होनी चाहिए, जिसने कभी भी पुरुषों के आगे हार नहीं खाई।



6. क्रांति टुकड़ों से नहीं, बल्कि सामूहिक एकता से लाई जा सकती है।



7. जब जुल्म बढ़ जाए तो वक्त के पहले भी सरकारों को बदल देना चाहिए।



8. भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक ही बल्कि सामाजिक और जाति व्यवस्था पर भी है।



9. सड़कें उस दिन सुनसान हो जाएंगी, जिस दिन संसद आवरा हो जाएगी।



10. मेरी सबसे बड़ी यही उपलब्धि है कि हार भारतीय मुझे अपना समझता है।



लोहिया के विचार नेहरू से मेल नहीं खाए



डॉ. राममनोहर लोहिया के पिता हीरा लाल पेशे से अध्यापक थे। मात्र ढाई साल की उम्र में ही उनकी मां चंदा देवी का निधन हो गया। पिता हीरा लाल गांधीजी काफी प्रभावित थे, जिसके कारण नन्हें लोहिया पर भी गांधी जी का काफी प्रभाव पड़ा। राममनोहर लोहिया ने बंबई के मारवाड़ी स्कूल में पढ़ाई की। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा फर्स्ट क्लास में पास करने के बाद बीएचयू में इंटरमीडिएट में दाखिला लिया। 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और पीएचडी करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय चले गए। 1921 में राम मनोहर लोहिया पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिले थे और कुछ सालों तक उनकी देखरेख में कार्य करते रहे लेकिन बाद में उन दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों और राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर टकराव हो गया। 



18 साल की उम्र में वर्ष 1928 में युवा लोहिया ने ब्रिटिश सरकार के साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन किया। भारत छोड़ो आंदोलन ने लोहिया को परिपक्व नेता साबित कर दिया। 23 मार्च को लाहौर में भगत सिंह को फांसी दिए जाने के विरोध में लोहिया ने लीग ऑफ नेशन्स की बैठक में पहुंचकर सीटी बजाकर दर्शक दीर्घा से विरोध प्रकट किया। इसके बाद सभागृह से उन्हें निकाल दिया गया।  9 अगस्त 1942 को जब गांधीजी और अन्य कांग्रेस नेता गिरफ्तार कर लिए गए, तब लोहिया ने अंडरग्राउंड रहकर आंदोलन को पूरे देश में फैलाया।



विभाजन के खिलाफ थे लोहिया



लोहिया ने दृढ़ता से अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था। वे देश का विभाजन हिंसा से करने के खिलाफ थे। आजादी के दिन जब सभी नेता 15 अगस्त 1947 को दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, उस समय वे भारत के अवांछित विभाजन के प्रभाव के शोक की वजह से अपने गुरु के साथ दिल्ली से बाहर थे। आजादी के बाद भी वे राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ही अपना योगदान देते रहे। उन्होंने आम जनता और निजी भागीदारों से अपील की कि वे कुओं, नहरों और सड़कों का निर्माण कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए योगदान में भाग लें।



आम आदमी के खर्च के सरकारी आंकड़े पर सवाल उठाए



लोहिया ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू एक दिन पर खर्च होने वाली 25 हजार की रकम के खिलाफ आवाज उठाई। उस समय भारत की अधिकांश जनता की एक दिन की आमदनी मात्र 3 आना थी, जबकि भारत के योजना आयोग के आंकड़े के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत आय 15 आना थी। लोहिया ने 1956 में सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) का गठन किया। 1962 के चुनाव में उन्हें नेहरू के हाथों हार मिली. 1963 के उपचुनाव में वह फर्रुखाबाद से जीते। 1965 में उन्होंने अपनी सोशलिस्ट पार्टी का विलय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में कर दिया। 1967 के चुनाव में वो कन्नौज सीट से जीते थे।



गैर-कांग्रेसवाद के अगुआ थे लोहिया



राममनोहर लोहिया को देश में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है। महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया चाहते थे कि दुनियाभर के सोशलिस्ट एकजुट होकर मजबूत मंच बनाएं। लोहिया भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी थे और उनके अथक प्रयासों का फल था कि 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस की हार हुई, हालांकि केंद्र में कांग्रेस जैसे-तैसे सत्ता पर काबिज हो पाई। लोहिया ने जो गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाई थी, वह आगे चलकर 1977 में केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार के रूप में फलीभूत हुई। लोहिया मानते थे कि ज्यादा समय तक सत्ता में रहकर कांग्रेस अधिनायकवादी हो गई थी और वे उसके खिलाफ संघर्ष करते रहे। 30 सितम्बर 1967 को दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल (अब लोहिया अस्पताल) में ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया था। 12 अक्टूबर 1967 को महज 57 की उम्र में उनका निधन हो गया।


Dr. Ram Manohar Lohia Dr. Ram Manohar Lohia death anniversary Lohia father of non Congressism डॉ. राम मनोहर लोहिया डॉ. राम मनोहर लोहिया पुण्यतिथि समाजवाद के जनक डॉ. लोहिया गैर कांग्रेसवाद डॉ. लोहिया