लखनऊ. उत्तर प्रदेश का नया मुख्यमंत्री कौन होगा, इसकी जंग की शुरुआत हो चुकी है। 10 फरवरी को पहले फेज के लिए 11 जिलों की 58 सीटों पर वोटिंग हुई। शाम 5 बजे तक उत्तरप्रदेश में 57.79 फीसदी मतदान हुआ। मुजफ्फरपुर में सबसे ज्यादा 62 फीसदी मतदान हुआ। मतदान सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक हुआ। कोरोना के चलते वोटिंग के लिए चुनाव आयोग ने 1 घंटे का समय बढ़ाया है। इसमें पश्चिमी यूपी की सीटें हैं, जिनमें मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर (नोएडा), हापुड़, बागपत, बुलंदशहर, शामली, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा जिले हैं। मेरठ में कई जगह ईवीएम खराब हो गई हैं, वहीं, कई जगह मतदाताओं की लंबी लाइन लगी है।
पहले चरण में 623 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होगा। 58 सीटों में से 12 सीटें संवेदनशील हैं। ये सीटें खैरागढ़, फतेहाबाद, आगरा दक्षिण, बाह, छाता, मथुरा, सरधना, मेरठ शहर, छपरौली, बड़ौत, बागपत और कैराना हैं। पहले चरण में 898 मोहल्ले और 5535 पोलिंग सेंटर संवेदनशील रखे गए हैं।
राहुल ने किया ट्वीट: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ज्यादा से ज्यादा लोगों से मतदान की अपील की है।
देश को हर डर से आज़ाद करो-
बाहर आओ, वोट करो!
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 10, 2022
PM की भी अपील: उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्विवटर पर लोगों से वोट डालने की अपील की।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आज पहले चरण की वोटिंग है। सभी मतदाताओं से मेरा आग्रह है कि वे कोविड नियमों का पालन करते हुए लोकतंत्र के इस पावन पर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें। याद रखना है- पहले मतदान, फिर जलपान!
— Narendra Modi (@narendramodi) February 10, 2022
जहां वोटिंग, वो अब तक बीजेपी का गढ़: जिन 58 सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं, 2017 में उनमें से 53 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। पहले फेज में योगी सरकार के 9 मंत्री भी मैदान में हैं। वहीं, घने कोहरे और ठंड के बावजूद लोग बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए घर से बाहर निकल रहे हैं। सुबह-सुबह ही लंबी लाइन लग गई है। मतदाताओं का कहना है कि पहले वोट देंगे, इसके बाद ही नाश्ता करेंगे।
ये चिंता: 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से पश्चिमी UP में BJP प्रमुख चुनावी पार्टी बनकर उभरी। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों में BJP ने यहां क्लीनस्वीप करते हुए जीत दर्ज की। इस बार दो प्रमुख फैक्टरों के चलते BJP को इस क्षेत्र में अपनी पुरानी सफलता दोहराने में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। पहला है कृषि कानून को लेकर एक साल चले आंदोलन के दौरान 700 किसानों की मौत से लोगों में केंद्र सरकार के प्रति गुस्सा है। दूसरा ये कि इस बार के चुनावों में मुस्लिम और जाट समुदाय के बीच विभाजन की खाई काफी हद तक कम हो गई है। वहीं, गन्ना किसानों का बकाया और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से जुड़ी मांगों का समाधान नहीं होने से भी किसानों में नाराजगी है।