नासिर बेलिम रंगरेज, UJJAIN. आज कृष्ण जनमाष्टमी है। सारे संसार को गीता का ज्ञान देने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने आज जन्म लिया था। क्या आप जानते हैं कि जिसने सारे संसार को गीता की शिक्षा दी उस वासुदेव ने कहां शिक्षा ली थी। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली है उज्जैन। ऐसा माना जाता है कि 5 हजार 266 साल पहले श्रीकृष्ण मथुरा से पैदल चलकर सांदीपनि आश्रम में शिक्षा लेने आए थे। महर्षि सांदीपनि के आश्रम में श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने 64 दिन में ही पूरी शिक्षा प्राप्त कर ली थी। 5 हजार सालों के बाद भी ये आश्रम यहां प्राचीन गुरुकुल की याद दिलाता है।
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गुरू सांदीपनि ने श्रीकृष्ण को दी थी शिक्षा
गुरू सांदीपनि अवन्ति के कश्यप गोत्र में जन्मे ब्राह्मण थे। वे वेद, धनुर्वेद, शास्त्रों, कलाओं और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे अपने शिष्यों से असीम प्रेम करते थे। फिलहाल आश्रम का प्रबंधन गुरु सांदीपनि कुल के वंशजों के हाथ में है। आज भी यहां भगवान को दिए गए ज्ञान के चित्र दीवारों पर अंकित हैं। किसी चित्र में देवकीनंदन फर्नीचर बनाते तो किसी में गुरु सांदीपनि से शास्त्र का ज्ञान लेते नजर आते हैं। श्रीकृष्ण के भक्त यहां आकर अभिभूत हो जाते हैं। वैष्णव संप्रदाय के भक्तों के लिए ये जगह शीर्ष तीर्थों में शामिल है।
12 साल की आयु में श्रीकृष्ण ने सांदीपनि आश्रम में ली थी शिक्षा
12 साल की आयु में यज्ञोपवीत के बाद ही श्रीकृष्ण सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आए थे। भगवान कृष्ण और बलराम ने कम समय में ही विभिन्न कलाओं और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। भागवत, हरिवंश, ब्राह्म पुराण आदि ग्रंथों में सांदीपनि आश्रम में श्रीकृष्ण-बलराम और सुदामा द्वारा 64 विद्याएं और 16 कलाएं सीखने की अवधि मात्र 64 दिन बताई गई है। श्रीकृष्ण ने गुरू सांदीपनि से जो शिक्षा प्राप्त की, वही गीता की ज्ञानगंगा के रूप में सारे संसार में प्रवाहित हुई।
सांदीपनि आश्रम के पास है गोमती कुंड
सांदीपनि आश्रम के पास गोमती कुंड है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने योग विद्या से पवित्र केंद्रों के सारे पानी को गोमती कुंड की ओर मोड़ दिया था ताकि गुरू सांदीपनि को आसानी से पवित्र जल मिलता रहे। भगवान श्रीकष्ण जब पट्टी (स्लेट) पर जो अंक लिखते थे, उन्हें मिटाने के लिए वे जिस गोमती कुंड में जाते थे, वो कुंड आज भी है। अंकों का पतन अर्थात धोने का कारण है कि इस आश्रम के सामने वाले मार्ग को आज अंकपात के नाम से जाना जाता है। आश्रम में भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा की लीलाओं के चिह्न आज भी नजर आते हैं। तीनों की मूर्तियों की पूजा होती है।
भगवान के हाथ में दिखाई देती है स्लेट और कलम
यहां भगवान श्रीकृष्ण की बैठी हुई प्रतिमा के दर्शन होते हैं, जबकि बाकी कहीं भी अन्य मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते नजर आते हैं। भगवान श्रीकष्ण बाल रूप में हैं। उनके हाथों में स्लेट और कलम दिखाई देती है।
यहीं हुआ था भगवान श्रीकृष्ण और भोलेनाथ का मिलन
भगवान श्रीकृष्ण जब सांदीपनि आश्रम में विद्या प्राप्त करने गए, तो भगवान शिव उनसे मिले और उनकी बाल लीलाओं के दर्शन करने महर्षि के आश्रम आए। यही वो दुर्लभ क्षण था जिसे हरिहर मिलन का रूप दिया गया।
यहां है खड़े हुए नंदी की प्रतिमा
महर्षि सांदीपनि आश्रम में ही भगवान शिव का एक मंदिर भी है जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने के लिए यहां पधारे, तो गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदी खड़े हो गए। यही वजह है कि यहां नंदी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भक्तों को होते हैं। देश के अन्य मंदिरों में नंदी की बैठी हुई प्रतिमाएं नजर आती हैं।
प्राचीन सर्वेश्वर महादेव के भी होते हैं दर्शन
गुरू सांदीपनि ने अपने तपोबल से बिल्वपत्र के माध्यम से एक शिवलिंग प्रकट किया था, जिसे सर्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। गोमती कुंड के पास ही इस मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा है। यहां पढ़ने वाले बच्चों को पाती लिखकर दी जाती है ताकि उनका पढ़ाई में मन लगा रहे और बड़े होकर जब वे किसी साक्षात्कार के लिए जाएं तो यही पाती अपने साथ जेब में रखें तो सफलता मिलती है।