Varanasi/Bhopal. ज्ञानवापी मस्जिद केस (Gyanvapi Masjid Case) पर 23 मई को सर्वे रिपोर्ट पेश की गई। दोनों पक्षों ने अपने पक्ष रखे। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में करीब 45 मिनट तक सुनवाई हुई। फैसला कल यानी 24 मई को सुनाया जा सकता है। इस दौरान दोनों पक्षों के 19 वकील और चार याचिकाकर्ता कोर्ट रूम में मौजूद रहे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सेशन कोर्ट से जिला अदालत में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। ज्ञानवापी से जुड़ी सर्वे रिपोर्ट 21 मई को ही अदालत को सौंप दी गई थी। कोर्ट कमिश्नर रहे अजय मिश्रा को कोर्ट रूम जाने से रोक दिया गया। जानकारी के मुताबिक, लिस्ट में नाम नहीं होने की वजह से उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया। जिला अदालत में सुनवाई को लेकर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।
कोर्ट में 4 याचिकाएं दायर हुई हैं। इसमें दोनों पक्षों की तरफ से अलग-अलग मांगें की गई हैं। लक्ष्मी देवी, राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक ने हिंदू पक्ष की तरफ से याचिकाएं दायर करके अलग-अलग अपील की हैं। वहीं, मुस्लिम पक्ष की तरफ से मस्जिद कमेटी (Anjuman Intezamia Masjid) ने याचिका दायर की थी। इस बीच, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ज्ञानवापी को लेकर सवाल उठाए हैं।
हिंदू पक्ष की मांग
1. श्रृंगार गौरी की रोजाना पूजा हो।
2. वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की पूजा की अनुमति मिले।
3. नंदी के उत्तर में मौजूद दीवार को तोड़कर मलबा हटाया जाए।
4. शिवलिंग की लंबाई, चौड़ाई जानने के लिए सर्वे हो।
5. वजूखाने का वैकल्पिक इंतजाम किया जाए।
मुस्लिम पक्ष
1. वजूखाने को सील करने का विरोध जताया।
2. 1991 एक्ट के तहत ज्ञानवापी सर्वे और केस पर सवाल उठाए।
8 हफ्ते में पूरी होनी है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी केस को वाराणसी जिला कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है। साथ ही शीर्ष कोर्ट ने अदालत को 8 हफ्ते में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है। जिला जज डॉ. अजय कुमार विश्वेश ने निर्देश दिया कि 23 मई को ज्ञानवापी मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में केवल केस से संबंधित वकील ही मौजूद रहेंगे। जिला कोर्ट के बाहर भी सुरक्षा बढ़ाई गई है। इसके साथ-साथ जज ने बेल की सभी याचिकाओं को ट्रांसफर कर दिया है, जिला जज सिर्फ ज्ञानवापी के मसले पर सुनवाई करेंगे।
नरोत्तम का सवाल
MP के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में ज्ञान क्या उर्दू शब्द है? मस्जिद के नाम से ही स्पष्ट है कि वो (ज्ञानवापी मस्जिद) क्या है? आप ध्यान से सोचो और समझो तो सही। हम तो समर्थन दे ही रहे हैं। हम न्यायालय के साथ हैं। इसमें समर्थन ना देने की की बात क्या है? सोचना तो यह चाहिए कि अमरनाथ यात्रा निकलती है तो 80 हजार पुलिस जवानों के साए में निकलती है, क्यों? हमारे ही त्योहारों पर शांति समिति की बैठक क्यों होती हैं? ये विचारणीय है।
भोपालः ज्ञानवापी मामले में हम न्यायालय के फैसले के साथ हैं, लेकिन भारत में विचारणीय बिंदू यह है कि, हिंदू पर्वों के पहले ही क्यों होती है शांति समिति की बैठक, ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से ही स्पष्ट है कि, वो क्या हैः नरोत्तम@ChouhanShivraj @drnarottammisra @OfficeOfKNath pic.twitter.com/RhWlxxeeQv
— TheSootr (@TheSootr) May 23, 2022
हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में भी पक्ष रखा था
इससे पहले हिंदू पक्ष की तरफ से याचिका दायर करने वालीं पांच महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में भी अपना पक्ष रखा था। उन्होंने कहा था कि इतिहासकारों ने स्प्ष्ट किया है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 में एक फरमान जारी किया था। इसमें आदि विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) को नष्ट करने की मांग की थी।
कहा गया है कि मस्जिद वाली जमीन किसी वक्फ की नहीं है, बल्कि काशी विश्वनाथ की है। पिटीशन दाखिल करने वाली महिलाओं ने कहा कि मंदिर की जमीन पर मुस्लिमों द्वारा बनाई गई चीज सिर्फ आकृति कहलाएगी, मस्जिद नहीं। दूसरी तरफ मस्जिद कमेटी (Anjuman Intezamia Masjid) अभी भी मस्जिद के सर्वे का विरोध कर रही है। उनका कहना है कि मस्जिद में वजू और नमाज पिछले करीब 500 सालों से हो रही है। उन्होंने वजूखाने को सील करने का भी विरोध किया है।सर्वे में सामने आया था कि मस्जिद के वजूखाने में एक कुआं है, जिसमें शिवलिंग जैसी दिखने वाली चीज है। अबतक मुस्लिम पक्ष इसको फव्वारा बता रहा है।
17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में 3 बातें कहीं
पहला- शिवलिंग के दावे वाली जगह को सुरक्षित किया जाए।
दूसरा- मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से न रोका जाए।
तीसरा- सिर्फ 20 लोगों के नमाज पढ़ने वाला ऑर्डर अब लागू नहीं। यानी ये तीनों निर्देश अगले 8 हफ्तों तक लागू रहेंगे। इसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होगा।
क्या है वर्शिपिंग प्लेस एक्ट?
1991 के वर्शिपिंग प्लेस एक्ट (उपासना स्थल कानून) केवल उन्हीं धार्मिक स्थलों पर लागू हो सकता है, जिसे इस्लामिक रीति-रिवाजों से बनाया गया हो। इस्लामी कानूनों के अनुसार, किसी दूसरे धर्मस्थल को तोड़कर कोई मस्जिद नहीं बनाई जा सकती, ज्ञानवापी को मस्जिद नहीं कहा जा सकता। तर्क दिया गया है कि इस आधार पर ज्ञानवापी एक मस्जिद नहीं है और उस पर उपासना स्थल कानून लागू नहीं होता।