इंटरनेशनल डेस्क. चीन में मस्जिदों को बंद किया जा रहा है। मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं या उनके उपयोग को बदला जा रहा है। चीन में करीब 2 करोड़ मुस्लिम आबादी है। चीन आधिकारिक रूप से नास्तिक देश है, लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता का दावा करता है। हम आपको चीन में मस्जिदें तोड़े जाने की वजह बता रहे हैं...
HRW को मिली तस्वीरों में खुलासा
चीन के ज्यादातर मुसलमान उत्तर-पश्चिमी हिस्से में रहते हैं। इस हिस्से में शिनजियांग, किनघाई, गांसू और निंगक्सिया या शामिल हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट में निंगक्सिया या के लियाओकियाओ गांव में 6 में से 3 मस्जिदों के गुंबद और मीनारों को हटा दिया गया। नमाज पढ़ने के 3 हॉल नष्ट कर दिए गए। सेटेलाइट की तस्वीरों में मस्जिद के एक गोल गुंबद की जगह चीनी स्टाइल का पैगोडा दिखाई दे रहा है। अक्तूबर 2018 से जनवरी 2020 के बीच ये बदलाव हुआ।
धर्म पर नियंत्रण बढ़ा रहा चीन
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सालों में संगठित धर्म का दमन बढ़ा है और चीन धर्म पर नियंत्रण बढ़ा रहा है। HRW की चीन में कार्यवाहक निदेशक माया वांग ने कहा कि चीन सरकार का मस्जिदों को बंद करना, तोड़ना और उनका इस्तेमाल बदलना चीन में इस्लाम के दमन के व्यवस्थित प्रयासों का हिस्सा है।
1300 से ज्यादा मस्जिदें बंद या उपयोग बदला
चीन के मुसलमानों पर रिसर्च करने वाली हैना थेकर के मुताबिक 2020 के बाद से निंगक्सिया या में 1300 से ज्यादा मस्जिदों को या तो बंद कर दिया गया है या उनके इस्तेमाल को बदल दिया गया है। ये इस क्षेत्र की मस्जिदों में से एक तिहाई हिस्सा हैं। शी जिनपिंग के शासनकाल में कम्युनिस्ट पार्टी ने धर्म को अपनी राजनीतिक विचारधारा और चीनी संस्कृति से जोड़ने की कोशिश की है।
2018 में कम्युनिस्ट पार्टी के दस्तावेज में क्या लिखा था ?
2018 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने एक डॉक्यूमेंट प्रकाशित किया था। इसमें सरकार से कहा गया था कि ज्यादा से ज्यादा मस्जिदों को तोड़ें और कम का निर्माण करें। मस्जिदों की संख्या कम करने की कोशिश करे। इस डॉक्यूमेंट में मस्जिदों के निर्माण, लेआउट और मस्जिदों को मिलने वाले फंड पर सख्त निगरानी करने की बात कही गई थी।
क्या है चीन सरकार का दावा ?
चीन सरकार का दावा है कि मस्जिदों को एक जगह किया जाता है। ऐसा तब करते हैं, जब गांवों को विस्थापित किया जाता है या एक साथ मिला दिया जाता है। इससे मुसलमानों पर आर्थिक बोझ कम होता है। वहीं कुछ मुस्लिमों का कहना है कि इसका मकसद उनकी वफादारी को कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ मोड़ना है। वहीं कुछ मुसलमानों ने इसका खुला विरोध किया, लेकिन वो बेअसर रहा।
इस्लामिक देशों ने साधी चुप्पी !
चीन में मस्जिदों को तोड़े जाने पर इस्लामिक देशों ने चुप्पी साध रखी है। चीन जैसी बड़ी ताकत से कोई बैर मोल नहीं लेता चाहता, इसलिए किसी भी इस्लामिक देश ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है। चाइना पॉलिसी के एक्सपर्ट माइकल क्लार्क का कहना है कि मुस्लिम देशों की खामोशी का कारण चीन की आर्थिक शक्ति और पलटवार है। म्यांमार के खिलाफ मुस्लिम देश इसलिए बोलते हैं क्योंकि वो कमजोर देश है, जबकि चीन ताकतवर है।