New Delhi/Pokhran. भारत की सरकारों को बुद्ध पूर्णिमा रास आती रही है, फिर चाहे कांग्रेस की सरकार हो या बीजेपी। इंदिरा हों या अटल। शक्ति संपंन्न जगह पोखरण ही रही, तिथि भी बुद्ध पूर्णिमा ही थी। भारत के परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनने की। बुद्ध भारत के ज्ञानोदय और आत्म-साक्षात्कार प्रतीक माने जाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा को ही विश्व को ज्ञान और करुणा का संदेश देने वाले सिद्धार्थ का जन्म हुआ था, जो सत्य की तलाश में निकले और फिर महात्मा बुद्ध हो गए। बुद्ध के ब्रांड को भारत ने अपने सशक्तिकरण से जोड़ा और दुनिया को संदेश दिया कि शांति की स्थापना के लिए न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता (Minimum nuclear deterrence) जरूरी है।
भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाने का भगीरथ प्रयास तो 1944 में तब शुरू हुआ, जब डॉ होमी जहांगीर भाभा ने 1944 में मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की लेकिन ये प्रयास मुकम्मल हुआ 18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन, जब बुद्ध एक बार मुस्कुराए (Smiling Buddha) थे।
पहली कहानी 1974 के टेस्ट की...
जब इंदिरा ने पूछा- डर लग रहा है
भारत के पहले परमाणु परीक्षण के मुख्य हीरो होमी सेठना थे, जो कि एटॉमिक एनर्जी कमीशन (AEC) के चेयरमैन थे। पीके आयंगर इस प्रोजेक्ट के डिप्टी हेड थे। आयगंर को मदद कर रहे थे, धातु विज्ञानी राज गोपाल चिदंबरम, वैज्ञानिक राजा रमन्ना और विक्रम साराभाई। BBC की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 14 मई की रात (1974) को जिस न्यूक्लियर डिवाइस का परीक्षण होना था, उसे अंग्रेजी अक्षर L के आकार में शाफ्ट में पहुंचा दिया गया था। अगले दिन सेठना दिल्ली पहुंचे और उनका पड़ाव था तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का घर। सेठना ने मिसेज गांधी को कहा कि हमने डिवाइस को शाफ्ट में फिट कर दिया है। अब आप ये मत कहिएगा कि इसे बाहर निकालो क्योंकि ऐसा करना संभव नहीं है। अब आप आगे जाने से नहीं रोक सकतीं। इंदिरा का जवाब था- Go ahead... क्या तुम्हें डर लग रहा है? सेठना बोले- बिल्कुल नहीं। 15 मई को सेठना इंदिरा से ग्रीन सिग्नल लेकर फिर पोखरण साइट पर पहुंचे।
...तो फिजिक्स के नियम सही नहीं हैं
मई 1974 में राजस्थान के पोखरण रेंज की रेत बेहद तपी हुई थी। टेंपरेचर 44-45 डिग्री चल रहा था। मरुस्थल में रेत में 107 मीटर गहरा गड्ढा खोदा गया। 13 मई को परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी सेठना के नेतृत्व में परमाणु वैज्ञानिकों ने उसे असेंबल करना शुरू कर दिया था। हालांकि, इसकी पूरी तैयारी बंबई के ट्रॉम्बे स्थित परमाणु ऊर्जा केंद्र में कर ली गई थी। डिवाइस का नाम पूर्णिमा था। 14 मई की रात इस डिवाइस को शाफ्ट में डाल दिया गया। इस परीक्षण को लेकर पीके आयंगर इतने विश्वस्त थे कि उन्होंने कहा था कि अगर ये परीक्षण सफल नहीं होता तो इसका मतलब ये है कि भौतिकी के नियम सही नहीं हैं। पोखरण में भारत ने जिस धातु का इस्तेमाल कर पहला परमाणु विस्फोट किया वो फ्लूटोनियम था और ये अंत:स्फोट (Implosion) था।
किसने दबाया टेस्टिंग बटन
टेस्टिंग साइट से 5 किमी दूर तपते रेगिस्तान में एक मचान बनाया गया, ताकि विस्फोट के बाद पैदा होने वाली 'नाभिकीय तरंगों' को देखा जा सके। इस मचान पर होमी सेठना की अगुआई में पूरी टीम बैठी हुई थी। इधर इलेक्ट्रानिक डेटोनेशन टीम के प्रमुख प्रणब दस्तीदार एक दूसरे वैज्ञानिक श्रीनिवासन के साथ कंट्रोल रूम में थे। इससे पहले ही वैज्ञानिकों की टीम में सवाल आया कि न्यूक्लियर टेस्ट का बटन कौन दबाए? राजा रमन्ना अपनी ऑटोबायोग्राफी इयर्स ऑफ पिलग्रिमेज में लिखते हैं- ‘मैंने एक सुझाव देकर इस सवाल का जवाब दे दिया कि जिस व्यक्ति ने इसे बनाया, वो ही इस बटन को दबाए।’ इस तरह से दस्तीदार को बटन दबाने के लिए चुना गया।
आखिरी मौके पर एक दिक्कत आई
मचान के पास मौजूद लाउडस्पीकर से काउंटडाउन शुरू हो गया। जैसे ही काउंटडाउन 5 की गिनती पर आया, प्रणब दस्तीदार ने हाई वोल्टेज स्विच को ऑन किया। दस्तीदार ने जब वोल्टेज सप्लाई करने वाले मीटर को देखा तो उनके आंखें खुली रह गईं। बीबीसी के सीनियर जर्नलिस्ट रेहान फजल बताते हैं- ‘मीटर दिखा रहा था कि निर्धारित बिजली का सिर्फ 10 फीसदी करंट ही परमाणु डिवाइस तक पहुंच रहा था। दस्तीदार के सहायक भी ये देख रहे थे। वे एक्साइटमेंट में चिल्लाए... Shall we stop? Shall we stop?’ लेकिन डेटोनेशन टीम के मुखिया दस्तीदार का अनुभव जानता था कि कमी वोल्टेज में नहीं, कहीं और है। रिपोर्ट के मुताबिक, शाफ्ट में ज्यादा आर्द्रता की वजह से रीडिंग गलत आ रही थी। दस्तीदार ने जोश में कहा, "No we will procced."
अचानक धरती से उठा रेत का पहाड़
8 बजकर 5 मिनट... दस्तीदार ने न्यूक्लियर रिएक्शन शुरू करने वाले लाल बटन को दबा दिया। इधर इस आपाधापी में काउंटडाउन पहले ही बंद हो गया था। गिनती की आवाज ना सुनने पर मचान पर मौजूद सेठना और रमन्ना ने सोचा कि न्यूक्लियर टेस्ट रोक दिया गया है। राजा रमन्ना अपनी जीवनी में लिखते हैं कि उनके साथी वेंकटेशन ने जो उस दौरान लगातार विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर रहे थे, अब चुप हो गए थे। अभी सब निराशा में ही थे कि अचानक धरती से एक रेत का पहाड़ सा उठा। लगा धरती ऊपर उठ रही है. एक मिनट तक ऐसा होने के बाद रेत फिर से नीचे जाने लगी। सभी लोग रोमांच और उत्तेजना में ही थे कि सबने महसूस किया कि एक जलजला आया है. कुछ भी सेकंड में विस्फोट की आवाज आई। सभी वैज्ञानिक एक दूसरे को गले लगाने लगे।
इधर कंट्रोल रूम में मौजूद श्रीनिवासन को यूं लगा कि मानों वे उस समुद्र में एक छोटे से नाव पर सवार हैं और उनकी नाव बुरी तरह से हिचकोले खा रही है। राजा रमन्ना अपनी आत्मकथा में लिखते हैं- मैंने रेत के एक पहाड़ को धरती से उठते देखा, जैसे हनुमान ने इसे उठा लिया है।
और इंदिरा झूम उठीं
पोखरण से कोई 300 मील दूर नई दिल्ली में मई की उस सुबह पीएम आवास में काफी गहमा-गहमी थी. इंदिरा को रेगिस्तान से एक खबर का इंतजार था, वे अपने लॉन में आम लोगों से मिल रही थीं, लेकिन मन में टेंशन था। इधर पोखरण में मचान के पास मौजूद हॉटलाइन काम नहीं कर रहा थी। होमी सेठना वहां से जैसे-तैसे बदहवासी में एक जीप चलाकर पोखरण गांव आए। यहां सेना का एक टेलीफोन एक्सचेंज था। जैसे-तैसे बड़ी मुश्किल से पीएम आवास फोन लगा। फोन पर भारत को न्यूक्लियर क्लब में शामिल करने वाले वैज्ञानिक ने लगभग चिल्लाते हुए कहा, " The Buddha is smiling।" इंदिरा ने जब अपने लॉन में ये खबर सुनी तो वे झूम उठीं। भारत अब परमाणु संपन्न राष्ट्र था। अमेरिका का कोई भी सैटेलाइट, उसकी कोई भी खुफिया एजेंसियां भारत के इस परमाणु कार्यक्रम का पता नहीं लगा सकी। इसके बारे में भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम और विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह को भी जानकारी नहीं थी।
दूसरी कहानी 1998 के परीक्षण की
CTBT, NPT, NSG से भारत को पीछे करने की कोशिश
पॉवर और डिप्लोमैसी की दुनिया में फायदा उसे ही मिलता है, जो ताकतवर होता है। भारत ने पहला परमाणु परीक्षण तो कर लिया, लेकिन इसके बाद दुनिया के शक्तिशाली देश भारत पर CTBT (Comprehensive Test Ban Treaty) साइन करने का दबाव बनाने लगे। भारत के सामने स्थिति चुनौतीपूर्ण थी। चीन पाकिस्तान को बेधड़क न्यूक्लियर तकनीक सप्लाई कर रहा था। हमारी आर्मी जानती थी कि पाकिस्तान न्यूक्लियर वेपन हासिल कर चुका है। 1998 में न्यूक्लियर टेस्ट के अहम किरदार परमाणु वैज्ञानिक और BARC (Bhabha Atomic Research Centre) के तत्कालीन चीफ डॉ. अनिल काकोडकर कहते हैं कि तब देश के सामने दो स्थिति थी, यदि हम CTBT पर साइन कर देते तो हमेशा के लिए परमाणु हथियार बनाने से दूर हो जाते। और अगर इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करते तो भारत को स्पष्ट रूप से ये बताना पड़ता कि वो इस संधि पर क्यों हस्ताक्षर नहीं कर पा रहा। मई 1998 के बाद भारत को CTBT पर हस्ताक्षर करने का डेडलाइन दे दिया गया था.
इधर, पश्चिमी देश भारत से सालों से परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर साइन करने को कह रहे थे। इसके मायने थे कि भारत परमाणु हथियार बनाने की कोशिश भी नहीं कर सकता। भारत न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) का सदस्य भी नहीं था यानी कि भारत को दुनिया को कोई देश यूरेनियम भी नहीं दे सकता था। कुल जमा ये कि दुनिया के सुपरपॉवर हमारे देश का न्यूक्लियर स्पेस हड़प लेना चाहते थे।
आसमान में US सैटेलाइट, मिशन गुप्त रखने की चुनौती
भारत के सामने चुनौती थी- मिशन को गुप्त रखना। अत्याधुनिक अमेरिकी सैटेलाइट आसमान में मंडरा रहे थे। इसी जिओ पॉलिटिकल परिदृश्य में अटल बिहारी वाजपेयी 19 मार्च 1998 को भारत के प्रधानमंत्री बने। 8 अप्रैल 1998 को वाजपेयी ने डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (DAE) के चीफ आर चिदंबरम और डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम को तलब किया और भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण को हरी झंडी दे दी। वैज्ञानिको के पास तैयारी करने के लिए मात्र 32 दिन थे। हालांकि, परमाणु वैज्ञानिक न्यूक्लियर टेस्ट की तैयारी काफी पहले से कर रहे थे।
कलाम बने मेजर जनरल पृथ्वीराज, आर चिदंबरम बने मेजर जनरल नटराज
ये मिशन खुफिया रह सके, इसके लिए भारत के सभी बड़े वैज्ञानिक अंडरकवर हो गए। BARC और DRDO के वैज्ञानिक जब भी पोखरण मुआयने के लिए आते तो वे सैन्य अफसरों की पोशाक में होते। पूर्व राष्ट्रपति और डीआरडीओ के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. कलाम को मेजर जनरल पृथ्वीराज बनाया गया। डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के चीफ आर चिदंबरम मेजर जनरल नटराज बन गए। डॉ. काकोडकर को भी नया कोड नेम दिया गया। टेस्ट साइट के डायरेक्टर के संथानम भी कैप्टन बने। दरअसल, सरकार किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी कि पोखरण रेंज में हो रहे उनके दौरों की खबर लीक हो। इसलिए ये कूट नाम रचे गए थे।
अब उस धातु को पोखरण लाने की चुनौती थी, जिससे धमाका होना था यानी प्लूटोनियम। टेस्ट से 10 दिन पहले इंडियन आर्मी के चार ट्रकों में BARC से उस सामग्री को एयरपोर्ट लाया गया और 1 मई की रात 3 बजे छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट से इस सामग्री को एयरफोर्स के विमान एएन-32 से जैसलमेर लाया गया। यहां से आर्मी के काफिले में चार ट्रकों के जरिए प्लूटोनियम के गोले पोखरण लाए गए। इन गोलों को BARC में तैयार किया गया था और एक गोले का वजन 5 से 10 किलो के बीच था। इस पूरी प्रक्रिया कोई विशेष सुरक्षा नहीं अपनाई गई, ताकि किसी को कोई शक न हो।
प्रेयर हॉल में बमों की असेम्बलिंग
प्लूटोनियम मिल जाने के बाद अब काम असेम्बलिंग का था। अमेरिकी खुफिया तंत्र से बचाने के लिए ये काम अंधेरे में किया जा रहा था। जिस बंकर में ये असेम्बलिंग की जा रही थी, उसे प्रेयर हॉल का नाम दिया गया था। यहां पर विस्फोट के दूसरे उपकरण और अन्य सुविधाओं को तैयार करने में इंडियन आर्मी की 58th इंजीनियर रेजीमेंट पहले से ही लगी थी।
रेत के नीचे व्हाइट हाउस, ताजमहल और कुंभकरण
भारत ने 11 मई को 3 और 13 को 2 परीक्षण किए। इसके लिए 5 शाफ्ट बनाए गए। इनके नाम भी चौंकाने वाले थे। व्हाइट हाउस शाफ्ट 200 मीटर गहरा था, ताजमहल की गहराई 150 मीटर थी। सबसे पहले 10 मई को रात 8.30 बजे 'कुंभकरण' में न्यूक्लियर डिवाइस डाली गई। इसके बाद 11 मई को 4 बजे सुबह 'व्हाइट हाउस' और 7.30 बजे 'ताजमहल' में डिवाइस डाल कर सील कर दिया गया।
हवा ने ली परीक्षा
अब टेस्टिंग होनी थी। इससे कुछ घंटे पहले पोखरण में तेज हवाएं चलने लगीं। मौसम विभाग के सीनियर अफसरों ने कहा कि अगर इस मौसम में टेस्टिंग की जाती है तो अगर इससे रेडिएशन निकला तो इसके दूर तक फैलने की आशंका है। अब पूरी टीम को नजरें मौसम के मिजाज पर थी। दोपहर होते-होते पोखरण का तापमान 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। आखिरकार 3 बजे हवा थम गई। 45 मिनट और इंतजार किया गया, फिर दोपहर बाद 3.45 मिनट पर तीनों टेस्ट कर दिए गए।
Catch us if you can
कुछ ही दूरी पर इस अविश्वसनीय दृश्य को देख रहे वैज्ञानिकों की टोली आसमान में टकटकी लगा देख रही थी। मशरूम क्लाउड का एक विशाल आकार आसमान में उभरा। नंगी आंखों से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। इनमें से एक शख्स ने अपनी मुट्ठी भींची और आसमान की ओर देखते हुए अदृश्य दुश्मन पर चिल्लाया- "Catch us if you can।" भारत 24 साल पर एक बार फिर दुनिया को चमका देकर परमाणु विस्फोट कर चुका था। दो दिन बाद 13 मई को भारत ने इसी जगह पर दो और टेस्ट सफलतापूर्वक किए। इस कामयाब ब्लास्ट की जानकारी मिलते ही दिल्ली में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को इसकी जानकारी दी।