NEW DELHI: झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु एक आदिवासी महिला के रूप में देश का सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने का इतिहास रचने जा रही हैं। सरकार की संवैधानिक मुखिया और तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर की जिम्मेदारी की लिए उन्हें पांच साल तक हर महीने 10 लाख रुपए सैलरी और रहने के लिए नई दिल्ली में रायसीना हिल्स पर 330 एकड़ में बना 340 कमरे वाला भव्य राष्ट्रपति भवन मिलेगा। बता दें कि ब्रिटिश राज में 1929 में 1.40 करोड़ रुपए से बनी इस विशाल इमारत में राष्ट्रपति के रूप में एक ऐसी शख्सियत भी रही है जिसने अपने बेडरूम से मखमली पलंग हटवाकर लकड़ी का तखत रखवाया। यही नहीं उन्होंने उस समय मिलने वाला मिलने वाला 10 हजार रुपए का वेतन भी आधा ही लिया। ये शख्स से देश का पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद।
इकलौते राष्ट्रपति जिन्हें लगातार दो कार्यकाल मिले
डॉ.राजेंद्र प्रसाद 12 मई 1952 को देश के पहले राष्ट्रपति बने। देश के प्रथम नागरिक के रूप में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्हें 1957 में दोबारा राष्ट्रपति बनाया गया। इस तरह राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति के रूप में सबसे लंबा 12 साल 107 दिन का कार्यकाल पूरा किया। वे देश का इकलौते ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें इस सर्वोच्च पद के लिए लगातार दो कार्यकाल मिले। उनके बाद देश में फिर किसी को ये मौका नहीं मिला। आइए जानते हैं देश के पहले राष्ट्रपति से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
निजी उपयोग के लिए रखे सिर्फ दो कमरे
जब राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति भवन में रहने गए तो उन्होंने अंग्रेज सभ्यता की प्रतीक साज-सज्जा से जुड़ी सभी वस्तुएं राष्ट्रपति भवन से हटवा दी थीं। उन्होंने ब्रिटिश राज के मखमली गद्देदार पलंग को हटवाकर अपने लिए एक लकड़ी का तखत रखवाया था। यही नहीं उन्होंने करीब 340 कमरों वाले विशाल राष्ट्रपति भवन में अपने निजी उपयोग के लिए सिर्फ 2-3 कमरे ही रखे थे। इनमें से एक कमरे में वे चटाई बिछाकर चरखा कातते थे।
रिटायरमेंट पास आने पर सिर्फ 2,500 रु. वेतन लिया
भारत में सरकारी व्यवस्था में अभी सबसे ज्यादा 5 लाख रुपए मासिक सैलरी राष्ट्रपति को दी जाती है। लेकिन देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में डॉ.राजेंद्र प्रसाद का वेतन 10 हजार रुपए निर्धारित था। लेकिन वे वेतन का आधा हिस्सा यानी 5 हजार रुपए ही लेते थे। रिटायरमेंट पास आने पर वे वेतन का एक चौथाई हिस्सा यानी सिर्फ 2500 रुपए ही लेने लगे थे।
सादगी की मिसाल थे राजेंद्र बाबू
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ.राजेंद्र प्रसाद के बारे में लिखा है कि वे एक मामूली हैसियत से इतने बड़े पद पर पहुंचे थे लेकिन उन्होंने अपनी सादगीपूर्ण जीवन शैली कभी नहीं बदली। वे भारतीयता के सच्चे प्रतीक थे। उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में ऐसी मिसाल कायम की जिससे भारत की शान और इज्जत बढ़ी।
लॉर्ड लिनलिथगो ने अंगूर से की थी तुलना
भारत में अंग्रेज सरकार के वायसरॉय लॉर्ड लिनलिथगो ने डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में कहा था कि वे न बेर हैं जो बाहर से मीठा और अंदर से कठोर होता है, न बादाम हैं जो बाहर से कठोर और अंदर से कोमल होता है। वे तो अंगूर के समान हैं जो अंदर- बाहर दोनों तरफ से मीठे रस से भरा और मुलायम होता है।
जीवन के अंतिम दिन पटना के आश्रम में बिताए
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 12 साल तक देश के सर्वोच्च पद कार्यभार संभाला। उनका कार्यकाल खत्म होने पर उन्हें विदा करने दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ आई थी। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद अपना जीवन पटना के सदाकत आश्रम में बिताया। हालांकि राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होने के बाद वे करीब एक साल ही जीवित रहे। 28 फरवरी 1963 को उनका निधन हो गया।