New Delhi. सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (2 नवंबर) को एक अलग ही नजरा देखने को मिला। शीर्ष अदालत के एक जज ने वकीलों की ओर से बार-बार 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' कहे जाने पर नाराजगी जताई। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक नियमित मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एएस बोपन्ना के साथ बेंच में जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी बैठे थे। इस दौरान एक सीनियर एडवोकेट उन्हें बार-बार 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' कह रहे थे। तभी जस्टिस नरसिम्हा ने सीनियर एडवोकेट से कहा कि आप कितनी बार 'माय लॉर्ड्स' कहेंगे। यदि आप यह कहना बंद कर देंगे, तो मैं आपको अपनी आधी सैलरी दे दूंगा। इस पर वकील कुछ देर शांत होकर खड़े रहे।
क्यो है माय लॉर्ड कहने पर आपत्ति?
सुप्रीम कोर्ट में किसी मामले में बहस के दौरान जजों को हमेशा माय लॉर्ड या योर लॉर्डशिप कहकर संबोधित किया जाता है। इसका विरोध करने वाले अक्सर इसे औपनिवेशिक युग का अवशेष और गुलामी की निशानी कहते हैं। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, आप माय लॉर्ड कहना बंद करें नहीं तो वे गिनना शुरू कर देंगे कि आपने कितनी बार माय लॉर्ड्स कहा।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने प्रस्ताव किया था पारित
2006 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक प्रस्ताव पारित किया था> जिसमें निर्णय लिया गया था कि कोई भी वकील जजों को माय लॉर्ड और योर लॉर्डशिप कहकर संबोधित नहीं करेगा। यह फैसला भारत के राजपत्र में प्रकाशित हुआ। बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने 2006 में राजपत्र में अधिसूचना जारी होने के बाद बनाए गए नियम का पालन करने की गुजारिश की थी। एडवोकेट एक्ट 1961 के नियम 49((1)(जे)) के मुताबिक सुनवाई के दौरान वकीलों के लिए ‘माय लार्ड’ और ‘योर लार्डशिप’ की जगह ‘योर ऑनर’ और ‘ऑनरेबल कोर्ट’ शब्द का उपयोग करने का फैसला लिया गया था, लेकिन व्यवहार में इसका पालन नहीं किया गया। आज की वकील सुप्रीम कोर्ट में इन शब्दों का उपयोग करते हैं।
प्रोग्रेसिव एंड विजिलेंट लॉयर्स फोरम ने लिखा था पत्र
चार सार पहले सुप्रीम कोर्ट प्रोग्रेसिव एंड विजिलेंट लॉयर्स फोरम ने सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस सहित सभी जजों, देश के सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों, बार कौंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, सभी प्रदेशों के बार कौंसिल के अध्यक्षों, सभी बार एसोसिएशन को पत्र लिखा था। फोरम के सदस्य एडवोकेट संजीव भटनागर ने कहा था कि अंग्रेजों के समय ब्रिटिश हाउस और सुप्रीम कोर्ट में इन संबोधनों का उपयोग होता था। देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं, इसके बावजूद गुलामी के परिचायक ‘माय लार्ड’ और ‘योर लार्डशिप’ का इस्तेमाल किया जा रहा है।
हाई कोर्ट के तीन जजों ने बंद कराया था संबोधन
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस रविंदर भट्ट व जस्टिस मुरलीधर और चेन्नई हाईकोर्ट के जस्टिस चंद्रू ने अपने कोर्ट रूम के बाहर बाकायदा नोटिस बोर्ड पर आदेश जारी कर दिया था कि उनके कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोई भी ‘माय लार्ड’ और ‘योर लार्डशिप’ का उपयोग न करें।