UTTARKASHI. आखिरकार उत्तरकाशी सुरंग का सीना चीरकर 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया। दिवाली के दिन सिल्क्यारा-डंडालगांव टनल धंसने से 41 मजदूर अंदर फंस गए थे। मंगलवार, 28 नवंबर की देर शाम (7.50 बजे) रेस्क्यू टीम को शुरुआती सफलता मिली और एक मजदूर को बाहर निकाला गया और फिर करीब 45 मिनट में सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया। इसी के साथ 17 दिन से चला आ रहा रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा हुआ। जैसी चिंता की जा रही थी, तस्वीर उससे एकदम उलट निकली। मजदूरों के चेहरों पर हार्डकोर फौजियों जैसे तेवर थे। मजदूरों को पीएम मोदी समेत सभी की बधाइयां मिल रही हैं। उत्तराखंड सरकार ने सभी मजदूरों को एक-एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।
उत्तराखंड सरकार सभी मजदूरों को एक- एक लाख रुपए की देगी मदद
रेस्क्यू टीम के सदस्य हरपाल सिंह ने बताया कि शाम 7 बजकर 5 मिनट पर पहला ब्रेक थ्रू मिला था। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बाहर निकाले गए श्रमिकों से बात की। उनके साथ केंद्रीय मंत्री वीके सिंह भी थे। सीएम धामी ने कहा कि सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से कल 1-1 लाख रुपए की मदद दी जाएगी। उन्हें एक महीने का सवेतन अवकाश भी दिया जाएगा, जिससे वे अपने परिवार वालों से मिल सकें।
पीएम मोदी और राहुल गांधी ने किया ट्वीट
17वें दिन का रेस्क्यू और हाल
- नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैय्यद अता हसैनन के मुताबिक खुदाई का काम पूरा होने के बाद टनल में पाइप तक रैंप बनाया गया।
- मजदूरों को पाइप तक पहुंचाने कि लिए स्ट्रेचर पर लिटाया गया और रस्सी से खींचकर उन्हें बाहर निकाला गया। एक मजदूर को टनल से बाहर निकालने में 3 से 5 मिनट लगे।
- पहला मजदूर शाम 7.50 बजे बाहर निकाला गया। इसके बाद अगले 45 मिनट में ही सभी को निकाल लिया गया।
- रेस्क्यू के बाद मजदूरों को 30-35 किमी दूर चिन्यालीसौड़ ले जाया गया है। जहां 41 बेड का स्पेशल हॉस्पिटल पहले से तैयार था, वहां सभी मजदूरों को रखा गया है। संभवत: 28 नवंबर की रात वहीं रहेंगे।
- टनल से चिन्यालीसोड तक की सड़क को ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था। यहां मजदूरों को एंम्बुलेंस से ले जाया गया। टनल और हॉस्पिटल की दूरी करीब 30 से 35 किलोमीटर है।
- उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बाहर निकाले गए श्रमिकों से बात की। उनके साथ केंद्रीय मंत्री वीके सिंह भी थे।
- रैट माइनर्स वाली कंपनी नवयुग के मैन्युअल ड्रिलर नसीम ने कहा- सभी मजदूर स्वस्थ हैं।
इस तरह कटे 17 दिन
- 12 नवंबरः सुबह 5.30 बजे उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल हादसा हुआ था। अचानक ऊपर से मलबा गिरने की वजह से 41 मजदूर सुरंग में फंस गए थे। पहले दिन सुरंग में मलबा हटाने का काम तेजी से किया गया। जिसके लिए पूरी रात रेस्क्यू चलाया गया। फंसे हुए लोगों के साथ संचार स्थापित किया गया।
- 13 नवंबर : फंसे हुए लोगों से बात की गई और उन्हें ऑक्सीजन और पानी उपलब्ध कराया गया। लगभग 15-20 मीटर तक मलबा हटाने में कामयाबी मिली।
- 14 नवंबर : मलबे में 900 मिमी स्टील पाइप लगाने के लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन मंगाई गई। इन 900 मीटर के पाइप के जरिए सुरंग में फंसे हुए मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने की योजना बनाई गई।
- 15 नवंबर : घटना के चौथे दिन बचाव अभियान रुक-रुककर चला। मशीन में खराबी से रेस्क्यू ऑपरेशन प्रभावित हुआ। रात करीब नौ बजे जब सुरंग में ड्रिलिंग शुरू हुई तो फिर मलबा गिरने लगा।
- 16 नवंबर : शाम तक ड्रिलिंग कर नौ मीटर पाइप मलबे में डाली गईं। वहीं खाने की आपूर्ति के लिए 125 एमएम के पाइप डालने की कोशिश की गई।
- 17 नवंबर : ड्रिलिंग का काम कर रही अमेरिकी ऑगर मशीन की बेयरिंग में खराबी आ गई। इसके चलते काम रुक गया। वहीं, मशीन चलने से हो रहे कंपन के कारण मलबा गिरने का खतरा बताया गया। बीच में काम रोकने का निर्णय लिया गया।
- 18 नवंबर : रेस्क्यू के दौरान सुरंग में कंपन और मलबा गिरने के खतरे पर ऑगर मशीन से ड्रिलिंग बंद कर दी गई। 22 मीटर ड्रिलिंग के बाद काम बंद कर दिया गया।
- 19 नवंबर : सुरंग में एक पाइप डाली गई जो 22 मीटर पर फंस गई। लिहाजा प्रधानमंत्री कार्यालय ने चार मोर्चों पर रेस्क्यू अभियान चलाने का निर्णय लिया। इसके तहत सुरंग में करीब 60 मीटर का रास्ता बनाया जाने की योजना बनाई गई।
- 20 नवंबर : मजदूरों की स्थिति देखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था, पर अंदर धूल होने से तस्वीरें साफ नहीं आ पाईं थीं। देर शाम टीम ने छह इंच का दूसरा फूड पाइप मजदूरों तक पहुंचा दिया। इसी पाइप से उन्हें खाने के लिए खिचड़ी और मोबाइल चार्ज करने के लिए चार्जर भेजे गए।
- 21 नवंबर : दिल्ली से एंडोस्कोपिक कैमरे मंगाए गए थे जिन्हें पाइप से भीतर पहुंचाया गया। इस दौरान कैमरे से टनल के भीतर फंसे हुए सभी 41 मजदूर सुरक्षित दिखाई दिए। ऑगर मशीन से 800 एमएम के छह पाइप डाली गईं। 39 मीटर तक ड्रिलिंग करने में सफलता मिली।
- 22 नवंबर : इस दिन मजदूरों ने ब्रश किया और कपड़े भी बदले। मजदूरों के लिए रोटी, सब्जी, खिचड़ी, दलिया, संतरे और केले भेजे गए। उन्हें टीशर्ट, अंडरगारमेंट, टूथपेस्ट और ब्रश के साथ ही साबुन भी भेजा गया। उधर, मजदूरों को निकालने के लिए ऑगर मशीन से डाला जा रहा पाइप उनके बेहद करीब पहुंच गया।
- 23 नवंबर : अमेरिकी ऑगर मशीन में शाम 4 बजे इसके आधार में कंपन हुआ जिससे मशीन ने काम करना बंद कर दिया।
- 24 नवंबर : सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के लिए 13वां दिन भी आशा-निराशा वाला रहा। बाहर निकालने के लिए अमेरिकी ऑगर मशीन 24 नवंबर की शाम 24 घंटे बाद चली, लेकिन फिर लोहे का अवरोध आने से रुक गई। 25 नवंबर : जीपीआर मैपिंग का फार्मूला अपनाया गया। पारसन कंपनी के विशेषज्ञों को पाइप के माध्यम से मलबे के पास तक भेजा गया। बेफिक्री से मशीन चलाई गई जो आगे जाकर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई।
- 26 नवंबर : सुरंग के भीतर ऑगर मशीन का ब्लेड फंसने के बाद 15वें दिन मजदूरों तक पहुंचने के चार प्लान पर तेजी से काम हुआ। एक ओर जहां भीतर फंसे ब्लेड को काटने में तेजी आई, तो टनल के ऊपर और दूसरे छोर से भी तीन योजनाओं के कार्यों में तेजी आई।
- 27 नवंबर : 16वें दिन सुरंग के ऊपर तो काम चलता रहा, लेकिन भीतर ब्लेड निकलने के बावजूद मशीन का हेड फंसने से मैन्युअल खोदाई का काम लटका रहा। देर शाम हेड निकलते ही रैट माइनर्स सेना की मदद से मैन्युअल खोदाई में जुट गई। वहीं, मशीन का हेड निकलने के बाद मैन्युअल ड्रिलिंग भी शुरू की गई।
- 28 नवंबर : उत्तरकाशी की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन से फंसे 41 श्रमिकों के लिए मंगलवार का दिन अहम रहा। फंसे मजदूरों को निकालने के लिए रैट माइनिंग पद्धति द्वारा सुरंग के अंदर मैन्युअल ड्रिलिंग की गई। रैट माइनर्स द्वारा यह ड्रिलिंग 57 मीटर तक की गई जिससे मजदूरों का बाहर निकलना शुरू हो गया । और एक- एक कर सभी 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया।