हार के बाद अखिलेश का पहला बयान; योगी ने मिथक तोड़े, सपा अध्यक्ष इससे मात खाए

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Atul Tiwari
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हार के बाद अखिलेश का पहला बयान; योगी ने मिथक तोड़े, सपा अध्यक्ष इससे मात खाए

लखनऊ/नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई है। बीजेपी को पिछले चुनाव से कम सीटें (2017- 312, 2022-255) मिलीं, लेकिन ये बहुमत (202) से काफी ज्यादा हैं। 37 साल में पहली बार कोई पार्टी यूपी में लगातार दूसरी बार सरकार बनाएगी। योगी आदित्यनाथ 71 साल में पहले ऐसे फुल टर्म CM हैं, जो लगातार दूसरी बार सत्ता संभालेंगे। सपा दूसरे नंबर (111 सीटें) की पार्टी बनी। एक तरफ योगी ने कई मिथक तोड़े, वहीं अखिलेश यादव को कई चीजों से नुकसान उठाना पड़ा। हम आपको दोनों चीजों के बारे में बता रहे हैं...





हार के बार अखिलेश: पिछले चुनाव के मुकाबले सीटें बढ़ने के बावजूद अखिलेश सत्ता से खासे दूर ही रहे। चुनाव में हार के बाद अखिलेश ने 11 मार्च को ट्वीट किया। सपा की सीटें बढ़ने और बीजेपी की सीटें कम होने को लेकर उन्होंने खुशी जताई।







— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) March 11, 2022





योगी ने 3 मिथक तोड़े





1. नोएडा जाने वाला सीएम नहीं बनता: कहते हैं यूपी का जो भी नेता नोएडा का दौरा करता है। वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाता। यह टोटका 1985 में तब शुरू हुआ, जब वीर बहादुर सिंह यूपी सीएम थे। अस्सी के दशक में नारायण दत्त तिवारी और वीर बहादुर सिंह नोएडा गए और दोनों ही चुनाव हारे। उनके बाद मुलायम सिंह यादव नोएडा जाने से बचते थे। 2011 में मायावती नोएडा गईं और 2012 के चुनाव में हार गई। राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने नोएडा से शुरू होने वाली योजनाओं का शिलान्यास या तो दिल्ली से किया या फिर लखनऊ से। योगी आदित्यनाथ ने इस टोटके को गलत साबित करने की पहल की। वे अपने पांच साल के कार्यकाल में 20 से ज्यादा बार नोएडा गए।





2. एक्सप्रेस-वे की सियासत करते रहे: मुख्यमंत्री बनने या नहीं बनने का एक और टोटका एक्सप्रेस-वे से जुड़ा है। कहते हैं- जो नेता एक्सप्रेस-वे की सियासत करता है। उसकी सरकार दोबारा नहीं बनती। 2002 में मायावती ने ताज एक्सप्रेस-वे की शुरुआत की। शिलान्यास के बाद ही उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद अखिलेश ने ताज एक्सप्रेस-वे को पूरा कराया। नया नाम यमुना एक्सप्रेस-वे दिया। इसके बाद आगरा एक्सप्रेस-वे का भी लोकार्पण किया। 2017 में जब अखिलेश की सरकार नहीं बनी, तब भी इसे एक्सप्रेस-वे की सियासत से जोड़कर देखा गया। योगी सरकार ने प्रदेश को पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, बुंदेलखंड और गंगा एक्सप्रेस-वे दिए। नतीजतन इस चुनाव में यह मिथक गलत साबित हुआ। 





3. योगी विधानसभा चुनाव लड़े: यूपी में जो मुख्यमंत्री बनता है, वो अक्सर विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ता। ज्यादातर एमएलसी होकर आते रहे। मायावती, अखिलेश और योगी आदित्यनाथ इसी तरह से सीएम की कुर्सी तक पहुंचते रहे हैं। आखिरी बार मुलायम सिंह यादव गुन्नौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़कर यूपी के सीएम बने थे, लेकिन छोटे कार्यकाल के बाद कुर्सी से हट गए थे। इस बार योगी गोरखपुर और अखिलेश यादव करहल से चुनाव लड़े हैं। दोनों ही चुनाव जीत चुके। 





अखिलेश की वो 5 कमियां, जिससे उन्हें सत्ता से दूर किया





1. पुरानी छवि नहीं तोड़ पाए: सपा को गुंडों की पार्टी कहकर बीजेपी ने लगातार अखिलेश यादव पर हमले किए। अखिलेश ने 'नई सपा' का नारा देकर पार्टी की उस पुरानी छवि को तोड़ने को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन लोगों को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ। वहीं, सपा ने जेल में बंद कुछ नेताओं, दागी और बाहुबलियों को चुनाव में उतार दिया। इससे भी जनता में गलत संदेश गया। इसके अलावा सपा की मुस्लिम परस्त छवि भी उसके हार का एक कारण बनी। हालांकि, प्रचार के दौरान अखिलेश ने काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर मथुरा में बांके बिहारी के दर्शन कर इमेज बदलने की कोशिश की। लेकिन, इससे भी कामयाबी दूर ही रही। शिक्षा मित्रों को फिर से सहायक अध्यापक बनाने और पुरानी पेंशन लागू करने जैसी चुनावी घोषणाएं भी फेल हो गईं। चुनावी दौर में सपा नेताओं के विवादित वीडियो भी अखिलेश के खिलाफ चले गए।





2. मुफ्त बिजली की घोषणा भी नहीं आई काम: अखिलेश ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया था। यह कदम उन्होंने केजरीवाल सरकार की सफलता को देखते हुए उठाया था, लेकिन यूपी की जनता उनके वादे पर भरोसा नहीं कर पाई। अखिलेश ने रोजगार के मुद्दे को खूब जोर-शोर से उछाला। सपा को उम्मीद थी कि इससे युवाओं को लुभाने में सफल हो जाएगी, लेकिन युवाओं ने इस पर भी भरोसा नहीं किया। इसके पीछे अखिलेश यादव के पिछले कार्यकाल को माना जा रहा है। तब उनकी सरकार ने कई ऐसी भर्तियां कीं, जिनको लेकर युवाओं को कोर्ट के चक्कर काटने पड़े।





3. जयंत का साथ भी रास नहीं आया: 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। तब राहुल गांधी के साथ उनकी जोड़ी खूब ट्रेंड कर रही थी। मगर, चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली। बाद में दोनों दलों ने एक-दूसरे से किनारा कर लिया था। इस बार अखिलेश ने जयंत चौधरी की रालोद से नाता जोड़ा। मगर, इस बार भी जनता को यह जोड़ी पसंद नहीं आई। रालोद के गढ़ में भी गठबंधन कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाया। इसके अलावा किसानों की नाराजगी को भी सपा-रालोद अपने वोटबैंक के रूप में नहीं बदल पाई।





4. बुल्डोजर और सांड का नाम लेना भारी पड़ा: इस बार के चुनाव में अखिलेश ने बुल्डोजर को लेकर योगी पर जमकर निशाना साधा। योगी को बुल्डोजर बाबा का खिताब दिया। उधर, मुख्तार अंसारी जैसे माफिया की प्रॉपर्टी पर बुल्डोजर चलवाकर योगी ने जनता का दिल जीत लिया। अखिलेश का बार-बार अखिलेश बुल्डोजर नाम लेना योगी के पक्ष में चला गया। आम जनता को लगा कि अखिलेश आएंगे, तो माफिया फिर से हावी हो जाएगा। इसके अलावा छुट्टा जानवरों को लेकर भी अखिलेश ने योगी पर जमकर हमला किया। सांडों को लेकर तो अखिलेश काफी आक्रामक रहे। इसके बावजूद पश्चिमी यूपी में वह सफलता हासिल नहीं कर पाए।





5. जिन्ना और अहमदाबाद ब्लास्ट में कोर्ट के फैसले ने बदली तस्वीर: पहले फेज की वोटिंग से पहले एक भाषण में अखिलेश यादव ने जिन्ना का नाम लिया था। जिन्ना का नाम उन्होंने सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ जोड़ा था। बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया था। योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश को जिन्ना प्रेमी बताते हुए जमकर निशाना साधा था। चुनाव के बीच ही 2008 में अहमदाबाद में हुए आतंकी हमले पर भी फैसला आया था। इसमें 38 आतंकवादियों को फांसी की सजा सुनाई गई, जिनमें से आजमगढ़ के 5 आतंकी भी शामिल हैं। इनमें से एक आतंकवादी के पिता सपा के नेता हैं। बीजेपी ने उस आतंकी के पिता के साथ अखिलेश की फोटो दिखाते हुए उन्हें आतंकियों का चहेता बताया। 



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