GIRIDIH. सम्मेद शिखर को लेकर अब फिर एक विवाद शुरू हो गया है। झारखंड के आदिवासी संथाल समुदाय ने दावा किया है कि पूरा पहाड़ हमारा है। आदिवासियों का कहना है कि यह उनका मरांग बुरु यानी बूढ़ा पहाड़ है। ये उनकी आस्था का केंद्र है। यहां वे हर साल आषाढ़ी पूजा में सफेद मुर्गे की बलि देते हैं। इसके साथ छेड़छाड़ उन्हें मंजूर नहीं होगी।
आदिवासी समाज की बड़े आंदोलन की तैयारी
आदिवासी समाज की बड़े आंदोलन की तैयारी चल रही है। विरोध और आंदोलन का मोर्चा सत्ताधारी दल झामुमो के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने संभाला हुआ है। हेम्ब्रम ने कहा है कि लड़ाई आर-पार की होगी। आदिवासी समाज के लोग वर्षों से इस इलाके में रह रहे हैं, अब उन्हें ही बलि देने से रोका जा रहा है। जमीन हमारी, पहाड़ हमारे और कब्जा किसी और का, हम कब्जा नहीं करने देंगे। इससे पहले रविवार को जैन समाज और आदिवासियों के साथ जिला प्रशासन ने बैठक हुई थी। आम राय बनाने के लिए कमेटी बना दी थी।
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पारसनाथ को मारुंगबुरू स्थल घोषित करें, नहीं तो पांच राज्यों में होगा विद्रोह
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने बताया है कि हम बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहे हैं। इसमें ओडिशा, बंगाल, असम सहित देश के अलग राज्यों से संथाल समुदाय के लोग पारसनाथ पहुंचेंगे। अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के कब्जे से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा। हमारा संगठन कमजोर नहीं है, उन्होंने दावा किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं और अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी मांझी हैं। हेम्ब्रम ने कहा कि सरकार को पारसनाथ को मरांगबुरु स्थल घोषित किया जाए। अगर 25 जनवरी तक हमारी मांग पूरी नहीं हुई तो 30 जनवरी को उलिहातू में उपवास का आयोजन किया जाएगा। केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार की जा रही है। संथाल समुदाय राज्य में जल्द बड़े आंदोलन की तैयारी में है।
हमारे जो अधिकार हैं, उन्हें हम हासिल करके रहेंगे
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद ने कहा कि हमारे जो अधिकार हैं, उन्हें हम हासिल करके रहेंगे। हम देखेंगे सरकार हमारी हिस्सेदारी दे रही है या नहीं। हम जिला प्रशासन या सरकार की पहल का स्वागत करते हैं। जब तक राज्य सरकार स्पष्ट फैसला नहीं लेती, तब तक हम आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी चिट्ठी में जैन समाज के लिए इस महत्व के संबंध में लिखा, जबकि हमारी धार्मिक भावनाएं भी इस जगह से जुड़ी हैं। हम सभी धर्म का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें लग रहा है कि हमें ही बाहर किया जा रहा है।
रांची में सह सरना प्रार्थना सभा महासम्मेलन में भी हुई थी चर्चा
पड़हा सरना प्रार्थना सभा ने राजधानी रांची में रविवार को महासम्मेलन सह सरना प्रार्थना सभा का आयोजन किया था। इस आयोजन में पारसनाथ पर चर्चा हुई थी। राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के अजय तिर्की ने कहा, पारसनाथ आदिवासियों का है। वहां पूर्व की स्थिति बहाल रखी जाए। आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय संयोजक सालखन मुर्मू ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि संथालों के लिए पारसनाथ पहाड़ पूजा स्थल, तीर्थस्थल और पहचान का स्थल है। जैसे हिंदुओं के लिए अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है, ईसाइयों के लिए रोम है, उसी प्रकार भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश आदि जगहों के संथाल आदिवासियों के लिए पारसनाथ पर्वत है। उनके मंत्र की शुरुआत ही 'मरांग बुरु' से होती है। सरकार इसे किसी और को सौंप रही है। इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन होगा।
केंद्र सरकार ने मानी थी जैन समुदाय की मांग, झारखंड सरकार को दिए थे निर्देश
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने 5 जनवरी को सोशल मीडिया पर जानकारी दी थी कि केंद्र सरकार ने झारखंड राज्य सरकार को जैन समुदाय के तीर्थस्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन और इको टूरिज्म एक्टिविटी पर रोक लगाने का निर्देश जारी किए हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में सभी पर्यटन और इको टूरिज्म एक्टिविटी पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके बाद से देशभर में जैन समाज की ओर से किए जा रहे आंदोलनों पर विराम लगा था। बता दें कि 2019 में केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था। इसके बाद झारखंड सरकार ने एक संकल्प जारी कर जिला प्रशासन की अनुशंसा पर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया था। गिरिडीह जिला प्रशासन ने नागरिक सुविधाएं डेवलप करने के लिए 250 पन्नों का मास्टर प्लान भी बनाया था।
जैन समाज के लिए सम्मेद शिखरजी इतना अहम क्यों?
- जैन धर्म की तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23वें तीर्थांकर पारसनाथ के नाम पर पड़ा है।