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नई दिल्ली. मोदी कैबिनेट ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र (Minimum Age) को 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस फैसले से भारत में महिला और पुरुषों की शादी की उम्र एकजैसी हो जाएगी। सरकार मौजूदा कानून में संशोधन (Amendment) कर महिलाओं की शादी की उम्र को बढ़ाने जा रही है। इसके लिए सरकार ने जून 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसमें नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल भी शामिल थे। टास्क फोर्स ने पिछले महीने ही प्रधानमंत्री कार्यालय और महिला व बाल विकास मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
टास्क फोर्स ने क्या सुझाव दिया?
समिति ने शादी की उम्र 21 साल करने का सुझाव देशभर की 16 यूनिवर्सिटी के युवाओं के फीडबैक के आधार पर दिया है। 15 NGO को देश के दूर-दराज इलाकों और हाशिए पर रहने वाले समुदाय के युवाओं तक पहुंचने के काम में लगाया गया था। टास्क फोर्स के सदस्यों ने बताया कि सभी धर्मों से संबंध रखने वाले युवाओं से फीडबैक लिया गया, जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के युवा बराबर संख्या में शामिल थे।
रिपोर्ट में कहा गया कि शादी में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के लिए सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ता है। शादी की उम्र बढ़ाने से महिलाओं की सेहत पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। शादी की उम्र बढ़ाकर 18 से 21 किया जाए, लेकिन एक चरणबद्ध तरीके से। सरकार लड़कियों के लिए स्कूल और कॉलेज की संख्या बढ़ाए और दूर-दराज के इलाकों में लड़कियों के स्कूल तक पहुंचने की भी व्यवस्था करे। लड़कियों को स्किल (Skill) और बिजनेस ट्रेनिंग (Business Training) के साथ-साथ सेक्स एजुकेशन देने का भी सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट में शादी की उम्र बढ़ाने को लेकर जागरूकता अभियान चलाने को भी कहा गया है।
सरकार ने क्यों लिया शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला?
नरेंद्र मोदी सरकार ने कई कारणों से शादी की उम्र को बढ़ाने का फैसला किया, जिसमें लिंग समानता (Gender Equality) भी शामिल है। जल्दी शादी और कम उम्र में कई बार प्रेग्नेंसी से महिला और उसके बच्चे, दोनों के पोषण (Nutrition), संपूर्ण स्वास्थ्य (Health) और मानसिक स्वास्थ्य पर असर होता है। कम उम्र में शादी का असर शिशु मृत्यु-दर, मातृ मृत्यु-दर और महिला सशक्तिकरण पर पड़ता है, क्योंकि जल्दी शादी होने से लड़कियों को शिक्षा और नौकरी का मौका नहीं मिल पाता।
हाल ही में जारी हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के मुताबिक, भारत में साल 2015-16 में बाल विवाह की दर 27% थी, जो 2019-20 में कम होकर 23% हो गई। हालांकि, सरकार देश में बाल विवाह की दर को और नीचे ले जाना चाहती है।
कुछ लोग आलोचना भी कर रहे
एक तरफ जहां शादी की उम्र को बढ़ाने का समर्थन किया जा रहा है, वहीं एक वर्ग इसकी आलोचना कर रहा है। महिला व बाल अधिकार कार्यकर्ता, परिवार नियोजन एक्सपर्ट्स समेत कई लोगों का मानना है कि ऐसे कानून से जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गैरकानूनी रूप से शादी करने पर मजबूर होगा। उनका मानना है कि महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 होने के बावजूद भी भारत में बाल-विवाह हो रहे हैं। अगर बाल-विवाह में कमी आई है तो उसका कारण मौजूदा कानून नहीं, बल्कि लड़कियों की शिक्षा और रोजगार के अवसरों का बढ़ना है।
सोशल मीडिया पर भी कुछ लोग इस पक्ष में नहीं हैं कि लड़कियों के शादी की उम्र बढ़ाई जाए। IPS एम नागेश्वर राव ने ट्विटर पर लिखा, 'एक 18 साल की महिला वोट कर देश चलाने के लिए सरकार चुन सकती है, लेकिन अपने ही जिंदगी के बारे में फैसला नहीं ले सकती कि उसे कब शादी करना है। तो फिर हम वोटिंग की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 क्यों नहीं कर देते, जिसे राजीव गांधी ने कम किया था?'
एक यूजर ने ट्वीट किया, 'शादी की उम्र बढ़ाकर 21 कर देना पेपर पर देखने में अच्छा लग रहा है, लेकिन हमें बाल-विवाह रोकने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे, क्योंकि भारत में अभी भी 23% विवाह बाल्यावस्था में ही हो जाते हैं।'
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