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कांग्रेस द्वारा भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अक्सर घेरने की घटनाएं तो देखने को मिलती हैं, लेकिन जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी सहयोगी अमित शाह इस पर सार्वजनिक रूप से जवाब देने के लिए सामने आते हैं, तो यह एक महत्वपूर्ण पल बन जाता है। हाल ही में, 18 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को लेकर दिए गए अपने बयान पर प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी की आलोचना की और आंबेडकर के साथ कांग्रेस के संबंधों पर चर्चा की।
अमित शाह का बयान
मंगलवार, 17 दिसंबर को राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान अमित शाह ने आंबेडकर के प्रति एक बयान दिया, जिसे लेकर कांग्रेस और विपक्षी दलों ने विरोध जताया। अमित शाह ने कहा था, "अभी एक फैशन हो गया है, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर... अगर लोग भगवान का नाम लेते, तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।" इस बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तीखी प्रतिक्रिया दी, आरोप लगाया कि यह बयान आंबेडकर की विचारधारा का अपमान है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बयान का बचाव करते हुए इसे आंबेडकर को अपमानित करने के काले अध्याय को उजागर करने वाला बताया।
आंबेडकर और कांग्रेस का इतिहास: एक गहरी खाई
अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कांग्रेस ने आंबेडकर को हराने और उन्हें भारत रत्न देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शाह के अनुसार, नेहरू जी की आंबेडकर के प्रति नफरत जगजाहिर थी।
लेकिन क्या वास्तव में आंबेडकर और कांग्रेस के संबंध हमेशा खराब रहे? आइए इस पर एक नजर डालते हैं।
महाड़ सत्याग्रह से आंबेडकर की पहचान
डॉ. आंबेडकर ने 1927 में महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जो दलितों को सार्वजनिक चावदार तालाब से पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए था। इस आंदोलन के बाद उन्हें दलितों के अधिकारों की प्रमुख आवाज के रूप में पहचाना गया। हालांकि, इस आंदोलन में महात्मा गांधी की तस्वीर प्रमुख थी। कहा जाता है कि आंबेडकर और गांधी के बीच के रिश्ते 'प्यार और नफ़रत' वाले थे।
गांधी-आंबेडकर की पहली मुलाकात और तनाव
1931 में गोलमेज सम्मेलन के दौरान आंबेडकर और गांधी की पहली मुलाकात हुई। इस बैठक में आंबेडकर ने आरोप लगाया कि कांग्रेस दलितों के प्रति अपनी सहानुभूति केवल एक औपचारिकता है। गांधी ने आंबेडकर को शांत करने की कोशिश की, लेकिन आंबेडकर ने उनसे कहा कि कोई भी स्वाभिमानी अछूत उस भूमि पर गर्व नहीं कर सकता, जहां उसे बिल्लियों और कुत्तों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है। शशि थरूर की किताब 'आंबेडकर: अ लाइफ़' में दोनों के बीच इस बातचीत का जिक्र किया गया है।
आंबेडकर और कांग्रेस का राजनीतिक संघर्ष
कहा जाता है कि डॉ. आंबेडकर का कांग्रेस से हमेशा मतभेद रहा। 1946 में संविधान सभा के सदस्य के रूप में आंबेडकर ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन हिंदू कोड बिल पर कांग्रेस और आंबेडकर के बीच गहरी खाई रही। आंबेडकर ने इस बिल को एक महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार माना था, लेकिन इसे पारित नहीं किया जा सका, जिसके कारण उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
आंबेडकर की हार और कांग्रेस के खिलाफ आरोप
1952 के पहले आम चुनाव में डॉ. आंबेडकर को हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने मुंबई प्रांत से शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार नारायण काजरोलकर ने उन्हें हरा दिया। इस हार को लेकर यह आरोप लगाए गए कि कांग्रेस ने जानबूझकर आंबेडकर को हराया था। बाद में, आंबेडकर ने राज्यसभा का चुनाव जीता, लेकिन उनका लोकसभा में जाने का सपना अधूरा रह गया।
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