जैसलमेर. सेना दिवस (indian army day) पर शनिवार को राजस्थान के जैसलमेर में दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्रधव्ज फहराया गया। यह खादी से बना दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज है। राजस्थान के जैसलमेर (jaisalmer) जिले में सेना युद्ध संग्रहालय के पास पहाड़ी की चोटी पर फहराया गया। 225 फीट लंबा और 150 फीट चौड़ा झंडे का वजन लगभग 1,000 किलोग्राम है। झंडा खादी ग्रामोद्योग (khadi gramodyog) ने बनाया है।
सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित लोंगेवाला में यह विशालकाय तिरंगा प्रदर्शित किया जाएगा। लोंगेवाला सीमा चौकी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में एक ऐतिहासिक जंग की गवाह रही है। झंडा लगभग 37,500 वर्ग फुट एरिया में फैला है। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय के बयान के मुताबिक, खादी से बना दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज सेना दिवस के अवसर पर जैसलमेर में स्थित सीमा चौकी पर प्रदर्शन के लिए रखा जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि 225 फुट लंबे, 150 फुट चौड़े और करीब 1,400 किलोग्राम वजन वाले इस विशालकाय तिरंगे को प्रदर्शित करने का यह पांचवां सार्वजनिक प्रदर्शन होगा।
दुनिया का सबसे बड़ा खादी झंडा: माना जा रहा है कि झंडा रोहण के इस आयोजन को देखने के लिए कई पर्यटकों के जैसलमेर शहर आने की उम्मीद है। गौरतलब है कि इससे पहले 2 अक्टूबर, 2021 को महात्मा गांधी की 152वीं जयंती के अवसर पर लद्दाख के लेह में खादी के कपड़े से बना दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था जिसका वजन 1400 किलो था और 225 फुट लंबा व 150 फुट चौड़ा था। इस दौरान लेह के उप-राज्यपाल आरके माथुर और सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवने भी उपस्थित रहे थे।
क्यों मनाया जाता है आर्मी डे: 15 जनवरी, 1949 को फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान ली थी। फ्रांसिस बुचर भारत के अंतिम ब्रिटिश कमांडर इन चीफ थे। फील्ड मार्शल केएम करियप्पा भारतीय आर्मी के पहले कमांडर इन चीफ बने थे। करियप्पा के भारतीय थल सेना के शीर्ष कमांडर का पदभार ग्रहण करने के उपलक्ष्य में हर साल यह दिन ‘आर्मी डे’ के रूप में मनाया जाता है।
कौन हैं केएम करियप्पा : केएम करियप्पा का जन्म 1899 में कर्नाटक के कुर्ग में हुआ था। फील्ड मार्शल करियप्पा ने 20 साल की उम्र में ब्रिटिश भारतीय सेना में नौकरी शुरू कर दी थी। करियप्पा ने 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया। उन्हें भारत-पाक स्वतंत्रता के समय दोनों देशों की सेनाओं को विभाजित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। करियप्पा 1953 में सेना से सेवानिवृत्त हुए। बाद में, उन्होंने 1956 तक ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भारत के उच्चायुक्त के रूप में काम किया। भारत सरकार ने उन्हें 1986 में 'फील्ड मार्शल' के पद से सम्मानित किया।