BHOPAL. आज यानी 29 जून 2023 को देश-दुनिया में बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है। बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है। ईद-उल-अजहा (ईदुज्जुहा) का अर्थ कुर्बानी वाली ईद से है। ईद-उल-फित्र के बाद ये इस्लाम धर्म का दूसरा बड़ा त्योहार है। ये त्योहार रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद बनाया जाता है। इस त्योहार को कुर्बानी के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। मुस्लिम समाज के लोगों के लिए बकरीद का त्योहार बहुत महत्वपूर्ण होता है। बकरीद मनाने के पीछे हजरत इब्राहिम के जीवन से जुड़ी हुई एक बड़ी घटना है। ऐसे में आइए जानते हैं बकरीद क्यों मनाते हैं और इसका इतिहास क्या है...
बकरीद मनाने की परंपरा
इस्लाम धर्म के अनुसार, ईरान के उर में पैदा हुए हजरत इब्राहिम खुदा के बंदे थे। खुदा में उनका पूर्ण विश्वास था। 90 साल की उम्र में भी उनकी औलाद नहीं हुई तो खुदा से उन्होंने प्रार्थना की और उन्हें चांद सा बेटा इस्माइल मिल गया। इस्माइल की उम्र 11 साल भी न होगी कि हजरत इब्राहीम को एक सपना आया। उन्हें आदेश हुआ कि खुदा की राह में कुर्बानी दो। उन्होंने अपने प्यारे ऊंट की कुर्बानी दी। फिर सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो। उन्होंने सारे जानवरों की कुर्बानी दे दी। तीसरी बार वही सपना फिर आया। वह समझ गए कि अल्लाह को उनके बेटे की कुर्बानी चाहिए। वह जरा भी ना झिझके और पत्नी हाजरा से कहा कि नहला-धुला कर बच्चे को तैयार करें।
जब वह इस्माइल को बलि के स्थान पर ले जा रहे थे तो इब्लीस (शैतान) ने उन्हें बहकाया कि- क्यों अपने जिगर के टुकड़े को मारने पर तूले हो, मगर वह न भटके। छुरी फेरने से पहले नीचे लेटे बेटे ने बाप की आंखों पर रुमाल बंधवा दिया कि कहीं ममता आड़े ना आ जाए। इब्राहिम ने छुरी चलाई और आंखों से पट्टी उतारी तो हैरान हो गए। बेटा तो उछल-कूद कर रहा था और उसकी जगह एक भेड़ की बलि खुदा की ओर से कर दी गई है। हजरत इब्राहिम ने खुदा का शुक्रिया अदा किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है
बकरे को तीन भागों में बांटा जाता है
मुस्लिम समाज के लोग हर साल इस त्योहार को बकरे की कुर्बानी देकर मनाते हैं। बकरीद के दिन बकरे को तीन भागों में बांटा जाता है, पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है। कहा जाता है कि जिस बकरे की कुर्बानी दी जाती है, बकरा तन्दुरुस्त और बगैर किसी ऐब का होना चाहिए। यानी उसके बदन के सारे हिस्से वैसे ही होना चाहिए, जैसे खुदा ने बनाए हैं।
ईद और बकरीद में क्या अंतर है?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल में दो बार ईद मनाई जाती है। एक ईद-उल-जुहा और दूसरी ईद-उल-फित्र। ईद-उल-फित्र को मीठी ईद भी कहा जाता है। इसे रमजान को खत्म करते हुए मनाया जाता है। वहीं मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद ईद-उल-अजहा यानी बकरीद मनाई जाती है। ईद जहां सबको साथ लेकर चलने का पैगाम देती है, वहीं यह भी बताती है के इंसान को ख़ुदा का कहा मानने में, सच्चाई की राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।