New Delhi. तिरपाल अब सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) का हिस्सा नहीं होंगे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पूर्व निर्णय में परिवर्तन करते हुए इसे एसयूपी की पैकेजिंग से बाहर कर दिया है। सोमवार (3 जून) को सीपीसीबी की निदेशक दिव्या सिन्हा की ओर से इस बाबत लिखित आदेश भी जारी कर दिया गया। इस आदेश के बाद तिरपाल निर्माताओं और विक्रेताओं ने तो राहत की सांस ली ही है, इसका उपयोग करने वालों को भी सुविधा मिलने की संभावना है। इस आदेश के बाद तिरपाल का फिर से कृषि कार्यों, आपदा प्रबंधन और तमाम अन्य जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
जानें किन कामों में होता है ज्यादा उपयोग
बता दें कि प्लास्टिक तिरपाल का इस्तेमाल देश में बड़े पैमाने पर किया जाता है। रोज लगभग एक हजार टन तिरपाल का उत्पादन होता है। मानसून के दिनों में तो इसकी खपत भी इतनी ही रहती है। अगर कहीं बाढ़ आ जाए, तो अस्थायी बांध बनाने, तेज वर्षा के दौरान जान-माल की रक्षा के लिए, गोदामों में और ट्रकों से लाने ले जाने में सामान को सुरक्षित रखने के लिए, निर्माण कार्यों में, कृषि कार्यों मसलन- फसल को पानी से बचाने, खेतों में पानी रोकने, मिट्टी की नमी बनाए रखने, ग्रीनहाउस में और गरीब लोगों के लिए अस्थायी शेल्टर बनाने सहित और भी ढेरों कार्यों में प्लास्टिक तिरपाल का इस्तेमाल होता है। इसके बावजूद सीपीसीबी ने इसे एसयूपी में ही शामिल कर लिया था।
50 से 300 माइक्रोन तक की मोटाई वाले होते हैं तिरपाल
तिरपाल मैन्युफैक्चरर्स मेंबर्स एसोसिएशन ने सीपीसीबी में यह प्रतिबंध लगाने का लिखित अनुरोध दिया और यह भी स्पष्ट करने की कोशिश की कि यह एसयूपी नहीं है। तिरपाल अमूमन 50 से 300 माइक्रोन तक की मोटाई वाले होते हैं और बार-बार इस्तेमाल होते हैं। इसीलिए पर लगी रोक वापस ले ली जाए।
जरूरत का दायरा देखते हुए लिया रोक हटाने का निर्णय
इस पर पिछले सप्ताह सीपीसीबी की 200वीं बोर्ड बैठक में भी यह मुद्दा उठा और सदस्यों ने तिरपाल को एसयूपी से बाहर करने का समर्थन किया। सीपीसीबी ने भी माना कि तिरपाल एसयूपी का हिस्सा नहीं है। इतना ही नहीं, इसकी जरूरत का दायरा देखते हुए भी इस पर लगी रोक हटाने का निर्णय लिया गया।