केजरीवाल से पहले एमपी के दो कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी फंस चुके हैं शराब घोटाले में

सीएम अरविंद केजरीवाल की तरह ही दशकों पहले मध्य प्रदेश में दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को भी शराब घोटाले ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। मामला विधानसभा से निकल कर कोर्ट तक पहुंचा। बड़ी मुश्किल से दोनों सीएम अपनी कुर्सी बचा सके थे।

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Marut raj
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भोपाल.  ईडी ( ED ) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ( Chief Minister Arvind Kejriwal ) और शराब घोटाला सुर्खियों में है। हर तरफ केजरीवाल और दिल्ली शराब घोटाले की ही चर्चा हो रही है, लेकिन क्या आपको पता है कि शराब घोटाले में केजरीवाल से पहले दो कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी फंस चुके थे। पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ( Senior journalist Padmashree Alok Mehta ) ने इन दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के शराब घोटाले में फंसने की पूरी कहानी अपने यूट्यूब चैनल Editor'sEye  पर विस्तार से बताई है। कौन थे ये दो कांग्रेसी मुख्यमंत्री और किस राज्य का था यह मामला, आइए आपको बताते हैं।

 वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता के मुताबिक अभी जिस तरह केजरीवाल का मामला तूल पकड़े हुए है, ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश में भी शराब घोटाला उठा था। यह बात सन् 1985 और 2001 में अलग-अलग कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल की है। मेहता बताते हैं कि चूंकि, उस दौर में डिजिटल मीडिया और टेक्टनोलॉजी आज जैसी नहीं थी, तो इन मामलों में लेनदेन की बात साबित नहीं हो पाई थी। 

अर्जुन सिंह के सीएम रहते लगे थे आरोप

वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ( Senior journalist Padmashree Alok Mehta ) बताते हैं कि मध्य प्रदेश में सन् 85 में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह ( Arjun Singh )। सीएम ने उस समय शराब नीति में बदलाव किया था। मध्य प्रदेश में आज शराब की जो सबसे बड़ी कंपनी है, वह सन् 85 में भी लीडिंग पोजिशन पर थी। अर्जुन सिंह की सरकार पर आरोप लगा था कि कंपनी विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए प्रदेश में शराब नीति को बदला गया है। शराब फैक्ट्री लगाने के लिए नीति बदली गई है। मामला कोर्ट तक पहुंचा। जबलपुर हाईकोर्ट में जज जेएस वर्मा और बीएम लाल की पीठ ने अर्जुन सिंह सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। सरकार की खिंचाई करते हुए उन्होंने यहां तक कहा था कि नीति बदलकर अनुचित लाभ देने की कोशिश की गई है। मेहता के अनुसार मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन लेनदेन साबित नहीं हो सका। मेहता कहते हैं कि उस समय इस मामले ने बहुत तूल पकड़ लिया था।

दिग्विजय सिंह का नाम लिखा था डायरी में!

वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ( Senior journalist Alok Mehta ) शराब घोटाले में एक और कांग्रेसी मुख्यमंत्री का नाम आने की घटना का जिक्र भी करते हैं। उनके मुताबिक यह घटना साल 2001 की है। उस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार थी और मुख्यमंत्री थे दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh )। मेहता के अनुसार उस समय की और अभी भी प्रदेश की सबसे बड़ी शराब कंपनी के दफ्तर पर आयकर का छापा पड़ा था। आयकर विभाग की टीम को छापे के दौरान एक डायरी मिली थी। इस डायरी में 12 करोड़ रुपए के लेनदेन का जिक्र था। इसमें 10 करोड़ रुपए दिग्विजय सिंह के नाम के आगे लिखे गए थे और दो करोड़ रुपए प्रदेश के आबकारी मंत्री के नाम के आगे लिखे गए थे। यह मामला विधानसभा में भी उठा था। उस समय विपक्ष में बैठी बीजेपी ने इसे जमकर भुनाया। चूंकि, केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी ( Atal Bihari Vajpayee ) की सरकार थी, तो बीजेपी ( BJP ) इस मामले को दिल्ली तक लेकर गई। मामला बहुत बढ़ गया था। बार-बार सीएम दिग्विजय पर विधानसभा में निशाना साधा जा रहा था। परेशान होकर दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में प्रधानमंत्री वाजपेयी से मदद मांगी। इस शराब कांड से दिग्विजय सिंह बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ा सके थे।

दिग्गी और केजरीवाल का कनेक्श समझिए

मेहता दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के शराब घोटाले में फंसने का कांग्रेस के सीएम रहे दिग्विजय सिंह से बड़ा ही रोचक कनेक्शन जोड़ते हैं। मेहता का कहना है कि साल 2001 में जब एमपी की शराब कंपनी के ऑफिस में छापा मारा गया था, तो उस समय केजरीवाल के बॉस आयकर कमिश्नर थे। चूंकि, केजरीवाल राजस्व सेवा के अफसर थे, इसलिए तत्कालीन आयकर कमिश्नर केजरीवाल के बॉस हुए। अब चूंकि, शराब कंपनी पर छापेमार कार्रवाई में सीधे आयकर कमिश्नर शामिल थे, तो केजरीवाल को दिग्विजय सिंह वाला शराब कांड याद होना ही चाहिए। मेहता तंज कसते हुए अनुमान लगाते हैं कि हो सकता है कि फंसने पर केजरीवाल ने दिग्विजय सिंह से सलाह ली हो। 

देखिए वीडियो....

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