NEW DELHI. भोपाल गैस पीड़ितों को 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा। शीर्ष कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ितों को 7400 करोड़ का अतिरिक्त मुआवजा दिए जाने की केंद्र की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज कर दी। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके महेश्वर की बेंच ने फैसला सुनाया। 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोर्शन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7,400 करोड़ रुपए की मांग वाली केंद्र की क्यूरेटिव याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
नुकसान के ऐवज में 6 गुना मुआवजा मिल चुका- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन पर और ज्यादा मुआवजे का बोझ नहीं डाला जा सकता। पीड़ितों को नुकसान की तुलना में करीब 6 गुना ज्यादा मुआवजा दिया जा चुका है। केंद्र सरकार रिजर्व के पास रखे 50 करोड़ रुपए का इस्तेमाल पीड़ितों की जरूरत के मुताबिक करे। हम इस बात से निराश हैं कि सरकार ने दो दशक तक इस पर ध्यान नहीं दिया।
2010 में दायर की गई थी याचिका
दरअसल, भोपाल में हुई गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया था। पीड़ितों ने ज्यादा मुआवजे की मांग के साथ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केंद्र ने 1984 की त्रासदी के पीड़ितों को कंपनी से 7,844 करोड़ रुपए का अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की मांग की थी। केंद्र ने मुआवजा बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की। सरकार चाहती थी कि यूनियन कार्बाइड गैस कांड पीड़ितों को ये पैसा दें। वहीं, यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने कोर्ट में कहा था कि वो 1989 में हुए समझौते के अलावा भोपाल गैस पीड़ितों को कोई पैसा नहीं देगा।
आंकड़ों में गड़बड़ी का आरोप
भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों ने राज्य और केंद्र सरकार पर आंकड़ों में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट में लगाई क्यूरेटिव पिटीशन का उद्देश्य है कि मुआवजा राशि नए सिरे से निर्धारित की जाए। इन याचिकाओं में गैस पीड़ित संगठन भी याचिकाकर्ता हैं।
भोपाल त्रासदी का 39वां साल
2 दिसंबर की रात 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी को देश की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना माना जाता है। केमिकल फैक्ट्री यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) से जहरीली गैस (मिथाइल आइसोसाइनेट) के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। यही नहीं, त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता। दुखद बात ये है कि हादसे के जिम्मेदार आरोपी को कभी सजा नहीं हुई।
मरने वालों का आंकड़ा 16 हजार से भी ज्यादा बताया गया। करीब 5 लाख लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। जांच में सामने आया कि कि कम कर्मचारियों वाले संयंत्र में घटिया संचालन और सुरक्षा प्रक्रियाओं की कमी ने तबाही मचाई थी।
आरोपी गिरफ्तार ही नहीं हो पाया और मौत हो गई
उस वक्त UCC के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन मामले के मुख्य आरोपी थे, लेकिन केस के लिए पेश नहीं हुए। 1 फरवरी 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन को फरार घोषित कर दिया। इसके बाद अदालत ने एंडरसन के खिलाफ 1992 और 2009 में दो बार गैर-जमानती वारंट भी जारी किया, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हो सकी। सितंबर 2014 में एंडरसन की स्वाभाविक मौत हो गई और उसे कभी इस मामले में सजा नहीं भुगतनी पड़ी।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में ये कहा था
- बेंच ने सुनवाई के दौरान केंद्र पर सवाल उठाते हुए कहा था कि किसी को भी त्रासदी की भयावहता पर संदेह नहीं है। फिर भी जहां मुआवजे का भुगतान किया गया है, वहां कुछ सवालिया निशान हैं। जब इस बात का आकलन किया गया कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार था।