PATNA. बाहुबली आनंद मोहन की सहरसा जेल से रिहाई हो गई है। पूर्व सांसद 27 अप्रैल तड़के करीब 4.30 बजे ही जेल से रिहाई हो गई। पहले दोपहर में रिहा होने की बात कही जा रही थी। रिहाई के बाद रोड शो और शक्ति प्रदर्शन की तैयारी भी की गई थी, लेकिन आनंद मोहन अचानक सुबह ही जेल से निकलकर चला गया। जेल अधीक्षक ने इसकी पुष्टि की है। गोपालगंज के तत्कालीन कलेक्टर (डीएम) जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन को उम्रकैद की सजा हुई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शिवहर से पूर्व सांसद आनंद मोहन ने बिना किसी शक्ति प्रदर्शन के ही रिहाई ले ली। बताया जा रहा है कि विवाद से बचने के लिए उसने यह फैसला लिया। आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन ने 14 साल की सजा काट चुका है। नीतीश सरकार ने हाल ही में जेल नियमों में बदलाव कर उसकी रिहाई का रास्ता साफ किया था। 24 अप्रैल को आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी किया गया। सरकार के इस फैसले पर विवाद हो रहा है।
जब यह आदेश आया तब आनंद मोहन अपने बेटे चेतन की सगाई के सिलसिले में पैरोल पर था। 26 अप्रैल को ही पैरोल अवधि खत्म हुई और वह सहरसा जेल लौटा। जेल में हाजिरी देने के बाद से रिहाई की कागजी कार्यवाही गई। इसके बाद गुरुवार तड़के अंधेरे में ही जेल से रिहा होकर चला गया।
पूर्व आईएएस की पत्नी की अपील
मारे गए पूर्व आईएएस जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने कहा- मैं इस मामले (आनंद मोहन की रिहाई) में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को दखल देने की अपील करूंगी। सीएम नीतीश कुमार से कहना चाहती हूं कि आनंद मोहन को फिर से जेल भेजें।
#WATCH | "I appeal to the President and the PM to intervene in this matter and ask CM Nitish Kumar to send him (Anand Mohan) back to jail...," says Uma Devi, wife of the then Gopalganj DM (Bihar), G Krishnaiah who was murdered by gangster-turned-politician Anand Mohan Singh in… pic.twitter.com/4KtZ8WGEEt
— ANI (@ANI) April 27, 2023
जनहित याचिका भी दायर की गई है
सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने पटना हाईकोर्ट में 26 अप्रैल को जनहित याचिका दायर की। ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या को सजा में छूट का प्रावधान देने वाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई, कहा- ऐसी छूट के कारण अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। आम आदमी की तरह ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या करने में अपराधी को हिचक नहीं होगी।
क्या आनंद मोहन के लिए बदला नियम?
नहीं। आनंद मोहन को जेल-मुक्त करने के लिए सरकार ने एक नियम में बदलाव किया है। सरकारी सेवक की हत्या करने वालों को पूरी सजा से पहले रिहाई की छूट का कोई प्रावधान नहीं था। सरकार ने बाकी सजायाफ्ता की तरह सरकारी सेवक की हत्या में शामिल अपराधियों के लिए भी इस छूट का प्रावधान किया। इस नियम में बदलाव के कारण आनंद मोहन छूट रहे हैं। इस बार छूट रहे बाकी 25 अपराधियों पर सरकारी सेवक की हत्या का केस नहीं था। इसलिए यह आरोप बिल्कुल निराधार है कि आनंद मोहन के लिए बदले नियम का फायदा इन्हें मिला। दरअसल, व्यवहार या बाकी विशेष कारणों से अपराधियों को सजा के अंतिम समय में कुछ राहत मिलती है। विभिन्न अवसरों पर ऐसी रिहाई होती रहती है। बाकी 25 की रिहाई उसी तरह की है।
आनंद मोहन के साथ कुल 27 को छोड़ने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। इनमें से एक की मौत पहले ही हो चुकी है। शेष 26 को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई और आनंद मोहन के पहले ही बहुत सारे छूट भी गए।
90 के दशक के बाहुबली नेता रहा आनंद मोहन
बिहार में जब भी बाहुबली नेताओं की बात की जाती है, आनंद मोहन का नाम जरूर लिया जाता है। 90 के दशक में बिहार में ऐसा सामाजिक ताना बाना बुना गया था कि जाति की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी। अपनी-अपनी जातियों के प्रोटेक्शन को लेकर आए दिन मर्डर की खबरें आती थीं। तब लालू प्रसाद यादव का दौर था, जहां मंडल और कमंडल की जोर आजमाइश चल रही थी। उस दौर में आनंद मोहन, लालू विरोध का चेहरा था। 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। उस पर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत कई मामले दर्ज हैं।
जेपी आंदोलन से बिहार की सियासत में आए
आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से है। उसके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन बिहार का जाना माना गैंग्स्टर रहा हैं। जेपी आंदोलन के दौरान वह 2 साल जेल में रहा था। इसी आंदोलन के जरिए ही आनंद मोहन बिहार की सियासत में आया और 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीता। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। स्वर्णों के हक के लिए आनंद ने 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी बना ली।
...वो वाकया जिसकी वजह से जेल पहुंचा आनंद मोहन
1994 में बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) का नेता और गैंग्स्टर छोटन शुक्ला पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। उसकी शवयात्रा में हजारों की भीड़ जमा हुई थी, जिसकी अगुवाई आनंद मोहन कर रहा था। इसी दौरान भीड़ पर काबू पाने निकले गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या को आनंद मोहन ने उनकी गाड़ी से निकाला और भीड़ के हाथों सौंप दिया। कृष्णैया पर सरेआम पत्थर बरसाए गए और उन्हें गोली मार दी गई। आनंद मोहन, कृष्णैया की हत्या के दोषी सिद्ध हुआ।
लोकप्रियता के चरम के बावजूद आनंद मोहन 1995 का विधानसभा चुनाव हार गया। इसके बाद वह समता पार्टी के टिकट पर 1996 के आम चुनावों में शिवहर लोकसभा सीट से खड़ा हुआ और हत्या के आरोप में जेल में रहने के बावजूद जीता। दोबारा 1999 में भी वह जीता।
बिहार में अगड़ी जातियों का 12 फीसदी वोट बैंक
माना जाता है कि आनंद मोहन आजाद भारत का पहला नेता था, जिसे फांसी की सजा सुनाई गई थी। बाद में इसे उम्रकैद में बदल दिया गया था। आनंद मोहन तभी से जेल में था। वह पैरोल पर बाहर आता-जाता रहा। आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी सांसद रहीं, जबकि बेटा चेतन आनंद फिलहाल शिवहर से आरजेडी विधायक हैं। बिहार में अगड़ी जातियों का 12% वोट बैंक है, जिनमें तकरीबन 4 फीसदी राजपूत हैं। बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का दबदबा रहा है। माना जा रहा है कि आनंद मोहन को बाहर निकालकर नीतीश अपना वोटबैंक तैयार करने की कोशिश में लगे हैं। अपनी बिरादरी में आनंद मोहन की आज भी तूती बोलती है और उनके समर्थक उन्हें जेल से रिहा करने की मांग करते रहे हैं।