बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन पर SC ने रोक लगाने से किया इनकार, चुनाव आयोग से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान (SIR) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने इस दौरान EC को जमकर फटकार लगाई।

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Rohit Sahu
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बिहार में वोटर लिस्ट के वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को करीब 3 घंटे बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह संविधान के तहत अनिवार्य है। साथ ही कोर्ट ने आयोग से तीन बिंदुओं पर जवाब मांगा है और अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय की गई है।

नागरिकता जांचना चुनाव आयोग का काम नहीं: SC

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा कि चुनाव आयोग नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहा है? कोर्ट ने फटकार लगाते हुए साफ कहा कि वोटर सूची में नाम जोड़ने के लिए केवल नागरिकता का प्रमाण ही आधार नहीं हो सकता। यह काम गृह मंत्रालय का है, चुनाव आयोग को इसमें नहीं पड़ना चाहिए।

 विवाद क्या है? विपक्षी दलों ने क्यों उठाया मुद्दा

राजद सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा और कई अन्य विपक्षी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं। उनका कहना था कि आयोग नियमों को दरकिनार कर रहा है और इस प्रक्रिया में सभी मतदाताओं से दोबारा नागरिकता साबित करने को कहा जा रहा है।

SIR की प्रक्रिया क्या है?

SIR यानी Special Intensive Revision एक तरह का गहन पुनरीक्षण है, जिसमें पूरी वोटर लिस्ट को दोबारा जांचा जाता है। इसमें वोटर को दस्तावेज़ दिखाकर पहचान साबित करनी होती है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील कपिल सिब्बल और सिंघवी ने दलील दी कि यह प्रक्रिया सामान्य नहीं, बल्कि पूर्ण नई वोटर लिस्ट तैयार करने जैसी है।

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा? 

चुनाव आयोग की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आयोग का काम मतदाताओं से जुड़ा है। अगर मतदाता नहीं होंगे तो चुनाव आयोग का कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि आयोग किसी को धर्म, जाति या नागरिकता के आधार पर हटाने का इरादा नहीं रखता।

ऐसे समझिए पूरी खबर

  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण (SIR) पर रोक से इनकार कर दिया।

  • कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन अहम सवालों पर जवाब मांगा है।

  • कोर्ट ने कहा, नागरिकता जांचना चुनाव आयोग का नहीं, गृह मंत्रालय का काम है।

  • विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि वोटरों से दोबारा नागरिकता प्रमाण मांगा जा रहा है।

  • कोर्ट ने आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को पहचान के दस्तावेजों में शामिल करने का सुझाव दिया।

आधार कार्ड को लेकर भी उठे सवाल

चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए उसे अनिवार्य नहीं किया गया है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि आप दस्तावेज़ों की लिस्ट में आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को क्यों नहीं मानते? इन दस्तावेजों को भी पहचान के प्रमाण में शामिल किया जाए।

चुनाव आयोग से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोटर लिस्ट की गहन जांच (Special Summary Revision) बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि यह सीधे लोकतंत्र और लोगों के वोट देने के अधिकार से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन अहम बिंदुओं पर स्पष्ट जवाब मांगा है –

  1. मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार किसके पास है,

  2. इसे अपडेट करने की प्रक्रिया क्या है,

  3. और यह प्रक्रिया कब और कैसे पूरी की जाती है।

पिछली बार 2003 में हुई थी ऐसी प्रैक्टिस

जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि आयोग जो कर रहा है वह संविधान के अंतर्गत है। इस तरह की प्रक्रिया पहले भी 2003 में हो चुकी है। आयोग के पास इसके आंकड़े हैं और इसके पीछे तर्क भी। वे हर बार नई कवायद क्यों करें?

चुनाव आयोग की कोर्ट में दलील

बिहार में करीब 7.89 करोड़ मतदाता हैं। इसमें से 4.96 करोड़ 2003 की सूची में भी थे जिनका सत्यापन नहीं होगा। केवल 2.93 करोड़ नए वोटरों का ही वेरिफिकेशन किया जाएगा, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) लगे हैं।

31 दिन में हो जाएगा पूरा वेरिफिकेशन

आयोग ने बताया कि पिछली बार 2003 में भी SIR प्रक्रिया 31 दिन में पूरी हुई थी। इस बार भी समयसीमा उतनी ही रखी गई है और हर दिन 75 लाख आवेदन BLO तक पहुंच सकते हैं।

EC के नए निर्देश क्या हैं?

24 जून को जारी निर्देशों के मुताबिक, 1987 के बाद जन्मे और 1 जनवरी 2003 के बाद सूची में जुड़े मतदाताओं को नागरिकता प्रमाण देना जरूरी होगा। यह प्रमाण जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट या एजुकेशनल सर्टिफिकेट के रूप में दिया जा सकता है।

सभी को गणना प्रपत्र भरना होगा, जो ECI की वेबसाइट से डाउनलोड कर 26 जुलाई तक जमा करना होगा। फॉर्म नहीं भरने पर नाम सूची से हट सकता है।

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