नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शुक्रवार को जनता दल यूनाइटेड (JDU) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में सुबह साढ़े 11 बजे से शुरू हुई और डेढ़ घंटे से भी कम समय में खत्म हो गई। इस दौरान ललन सिंह का इस्तीफा हुआ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पार्टी का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। जेडीयू में हुए इस बदलाव को राजनीति के जानकार बिहार में ऑपरेशन लोटस से मिलाकर देख रहे हैं। यानी बिहार में महाराष्ट्र जैसा हो सकता है, जहां शिवसेना के बड़े गुट ने अलग होकर नई पार्टी बना ली और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार की जेडीयू का बड़ा धड़ा टूटकर बीजेपी में शामिल हो सकता है।
टूट का खतरा दूर किया
जनता दल यूनाइटेड में नीतीश कुमार को अपनी ही पार्टी में टूट का खतरा दिखने लगा था। नीतीश के धुर विरोधी रहे लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान कई बार कह चुके थे कि जेडीयू में असंतोष का माहौल है और कई नेता उनके संपर्क में हैं। बीजेपी के नेताओं की तरफ से लगातार इस तरह के बयान सामने आने लगे थे कि ललन सिंह अब नीतीश कुमार से ज्यादा लालू प्रसाद यादव के करीबी हो गए हैं। विधायकों और मंत्रियों की सीक्रेट मीटिंग की खबरें बाहर आने लगी। इन सब बातों को भांपते हुए भी नीतीश कुमार के इस दांव को देखा जा रहा है।
चुनाव से पहले हाथ में कमान
2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने टिकट बंटवारे की जिम्मेदारी जेडीयू के नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को दी थी। इसमें आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार की मर्जी के खिलाफ न केवल टिकट बांटे, बल्कि केंद्रीय मंत्री भी बन गए। आखिर में उन्हें पार्टी से बाहर निकालना पड़ा। ऐसे में अब नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं।
ललन सिंह का ये है फायदा
भाजपा से अलग होने के बाद अब ललन सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना संसदीय क्षेत्र बचाना है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की माने तो ललन सिंह के लिए मुंगेर जीत पर फिर जीत करना आसान नहीं है। यही कारण है कि भाजपा से अलग होने के बाद वे लगातार मुंगेर की यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में चुनाव के दौरान वे संगठन और गठबंधन से ज्यादा समय अपने संसदीय क्षेत्र में देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।