बैंकों से कर्ज लेने वालों को मिलेगा निश्चित ब्याज दर चुनने का विकल्प, जानें आरबीआई का नया फ्रेमवर्क?

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Pratibha Rana
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बैंकों से कर्ज लेने वालों को मिलेगा निश्चित ब्याज दर चुनने का विकल्प, जानें आरबीआई का नया फ्रेमवर्क?

New Delhi. मकान, वाहन और अन्य कर्ज लेने वाले लोगों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बड़ी राहत देने जा रहा है। क्योंकि ये उपभोक्ता ऊंची ब्याज दरों से सबसे अधिक प्रभावित हाते हैं। आरबीआई कर्ज लेने वाले लोगों को परिवर्तनशील (फ्लोटिंग) ब्याज दर से निश्चित (फिक्स्ड) ब्याज दर का विकल्प चुनने की मंजूरी देने की तैयारी में है। समय से पहले कर्ज का भुगतान करके उसे बंद करने के मौजूदा नियम में भी बदलाव किया जाएगा। 



आरबीआई ने क्यों उठाया कदम?



मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए गुरुवार (10 अगस्त) को आरबीआई के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने नए बदलाव को लेकर जानकारी दी। उन्होंने कहा, केंद्रीय बैंक पिछले दस वर्षों में दो बार बैंकों के लिए कर्ज की मासिक किस्त (ईएमआई-मासिक तौर पर कर्ज अदा करने के लिए देय राशि) तय करने की नीति बदल चुका है, लेकिन अब भी उसका यह मानना है कि कर्जदाता इस बारे में पारदर्शिता नहीं बरत रहे हैं। इसलिए आरबीआई ने फिर से कर्ज की मासिक किस्त तय करने के तौर तरीके में बदलाव करने की मंशा जताई है। 



व्यवस्थित फ्रेमवर्क हो रहा तैयार, ग्राहकों को मिलगी राहत



आरबीआई गवर्नर के अनुसार, कर्ज लेने वालों की समस्याओं को देखते हुए एक व्यवस्थित फ्रेमवर्क तैयार करने पर कार्य शुरू कर दिया है। इसमें यह व्यवस्था होगी कि बैंक ग्राहकों को उसके कर्ज की अवधि और मासिक किस्त की राशि के बारे में समय पर और साफ तौर पर बताएंगे। ग्राहकों को अपने कर्ज को फिक्स्ड रेट में बदलने और और कर्ज को समय से पहले बंद करने की सुविधा दी जाएगी। इससे ग्राहकों के हितों की और बेहतर तरीके से सुरक्षा हो पाएगी। 



प्रेस कांफ्रेंस में डॉ. दास ने कहा कि बैंक अपने ग्राहकों की आय और उनकी उम्र को देख कर ईएमआइ के निर्धारण का फैसला करेंगे। यह फ्रेमवर्क इस तरह से होगा कि ग्राहक भी तेजी से निर्णय ले सकेंगे। हाल के वर्षों में अधिकांश बैंक स्थिर रेट पर होम लोन देने को ग्राहकों को हतोत्साहित करते हैं। 



कर्ज देने वाले बैंकों का अहम रोल



जिस तरह से पहले होम लोन ग्राहकों को फिक्स्ड से फ्लोटिंग या फ्लोटिंग से फिक्स्ड रेट विकल्प अपनाने की सुविधा मिलती थी, उसको लेने से बैंक मना करते हैं, क्योंकि ऐसा विकल्प अपनाने वाले ग्राहकों को 0.50% से 2% तक का अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है। जब कर्ज की दर ज्यादा होती है तब ग्राहक फ्लोटिंग दर को चुनते हैं, लेकिन जब कर्ज की दर कम होती है तब वो स्थिर ब्याज दर को चुनते हैं।


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