भारत में रह रहे शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले नागरिकता संशोधन अधिनियम ( CAA ) को लागू कर केंद्र सरकार ( central government ) ने उसे नोटफाई ( notify ) भी कर दिया है, लेकिन देश की एक-दो राज्य सरकारों ने घोषणा की है कि वह इसे अपने राज्य में लागू (against state governments ) नहीं होने देंगी। उनका आरोप है कि यह कानून पक्षपातपूर्ण है। लेकिन संविधान विशेषज्ञ (constitutional expert ) कहते हैं कि यह कानून केंद्र का विषय है और राज्य सरकारों का इसमें कोई दखल नहीं है। उनका कहना है कि राज्य सरकारें इस कानून को लटका तो सकती हैं, लेकिन देर-सबेर उन्हें इसे लागू करना होगा। यह भी कहा गया है कि अगर इस कानून को रोकना है तो सुप्रीम कोर्ट ही एकमात्र रास्ता है। खास बात यह है कि सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही 220 याचिकाएं दायर हैं।
क्या खास है कानून में
हम सीधे मुद्दे पर आते हैं। केंद्र सरकार ने देश में जिस अधिनियम को लागू किया है, उसके बाद देश में वर्ष 2014 से पहले रहने वाले शरणार्थियों को नागरिक बनाने का प्रावधान है। इसके लिए उन्हें कुछ लिखा-पढ़ी करनी होगी। सरकार ने सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को ही इस कानून के दायरे मे रखा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दावा कर चुके हैं कि इस कानून के लागू होने से देश में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनी जाएगी, लेकिन वर्ष 2019 को संसद में पेश और पारित होने के बाद से इसका जबर्दस्त विरोध हो रहा है। यहां तक कि दंगे भी हो चुके हैं। अब दो-एक राज्य सरकारों ने आगे बढ़ते हुए इस कानून को अपने राज्य में लागू न करने देने की घोषणा कर दी है। इसको लेकर उनके अपने तर्क हैं।
इसलिए विरोध में हैं राज्य सरकारें
इन राज्यों में पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु शामिल हैं। इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों का कहना है कि यह कानून पक्षपातपूर्ण है और इसमें पारदर्शिता का अभाव है। उनका यह भी कहना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए बीजेपी सरकार इस कानून को लेकर आएगी, जिसे वे अपने राज्यों में लागू नहीं होने देंगे। दूसरी ओर केरल सरकार ने भी एक बयान जारी कर आरोप लगाया है कि चुनाव से पहले इस कानून को नोटिफाई कर केंद्र सरकार देश में अशांति पैदा करना चाहती है। इसलिए लोकसभा चुनाव से पहले इसे लागू किया गया है।
यह केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला है
इस मसले पर संविधान विशेषज्ञों से बात की गई तो उनका कहना है कि राज्य सरकारें सीधे तौर पर इस कानून को रोक नहीं सकती। संविधान विशेषज्ञ व लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा का कहना है कि यह कानून सीधे तौर पर केंद्र का विषय है। यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। दूसरी बात यह भी है कि इस कानून के संदर्भ में राज्य सरकार की कोई भूमिका भी नहीं है। राज्य सरकारें इसे लागू करने में टालमटोल तो कर सकती हैं, लेकिन वे इसे लागू करने के लिए बाध्य हैं। शर्मा के अनुसार अधिकतर सरकारें इसे लागू कर देंगी और देर-सवेर विरोध करने वाले राज्यों को भी इसे लागू करना होगा। अगर इस कानून को लेकर राज्य सरकारों को कोई विरोध है तो वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं। यह कानून केंद्र की सेंट्रल लिस्ट में शामिल है। आपको बता दें कि इस कानून के खिलाफ कोर्ट में पहले से ही 220 याचिकाएं दायर हैं, जिनमें केरल सरकार की याचिका भी शामिल है। इनमें विभिन्न दलों के नेताओं के अलावा कई मुस्लिम संगठन भी शामिल हैं।