NEW DELHI. लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती के मामले में विपक्ष और NDA से सहयोगी दलों के बढ़ते विरोध के बीच केंद्र सरकार ने यू टर्न ले लिया है। केंद्रिय कार्मिक विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की अध्यक्ष प्रीती सुदन को पत्र लिखकर भर्ती रद्द करने के निर्देश दिए है। कार्मिक विभाग ने कहा है कि लेटरल एंट्री के जरिए निकली भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है, ऐसे में इसे वापस लिया जाए।
विपक्ष ने लेटरल एंट्री भर्ती का विरोध
लेटरल भर्ती के बढ़ते विवाद के साथ ही आरक्षण भी बड़ा मुद्दा बन गया है। राहुल गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं ने लेटरल भर्ती का पुरजोर विरोध किया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि हर कीमत पर संविधान और आरक्षण की रक्षा की जाएगी। साथ ही RJD नेता तेजस्वी यादव ने भी भर्ती पर सवाल उठाते हुए पीएम मोदी संविधान और आरक्षण को खत्म चाहते हैं, सरकार उच्च सेवाओं में बगैर परीक्षा के संघ के लोगों की भर्ती करना चाहती है। तेजस्वी यादव ने एक्स पोस्ट करते हुए मोदी सरकार को आरक्षण विरोधी बताया है।
यूपीएससी ने निकाली थी सीधी भर्ती
दरअसल, यूपीएससी ने विज्ञापन जारी कर केंद्र के मंत्रालयों में खाली पदों पर सीधी भर्ती निकाली थी, लैटरल एंट्री के जरिए 45 पदों पर संयुक्त सचिव और निदेशक, उप सचिव की भर्ती की जानी थी। लेटरल एंट्री के जरिये निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सरकारी सेवाओं में नियुक्ति होनी थी। लेटरल भर्ती को लेकर विपक्ष के भारी विरोध के बाद अब यह भर्ती कैंसिल कर दी गई है।
नौकरियों में आरक्षण की क्या व्यवस्था है?
ऐसे में सवाल है कि क्या केंद्र की नौकरियों के होने वाली भर्ती में आरक्षण का फायदा दिया जाता है, इन नौकरियों में आरक्षण की क्या व्यवस्था है? आइए जानते हैं केंद्र की नौकरी में कहां कितना आरक्षण मिलता है?... साथ ही किन विभागों की नौकरियों में आरक्षण नहीं दिया जाता और क्यों?
वर्तमान में सेंट्रल गवर्नमेंट की तरफ से निकाली जाने वाली नौकरियों में संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत आरक्षण दिया जाता है। इसमें अनुसूचित जाति (ST), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। एससी को 15 फीसदी, एसटी को 7.5 फीसदी और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। इस तरह नौकरियों में टोटल 50 फीसदी आरक्षण का दिया जा रहा है।
इन विभागों की नौकरियों में आरक्षण नहीं...
- सप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की भर्ती में आरक्षण लागू नहीं होता है। यह भारतीय संविधान के आर्टिकल 124 और 217 के तहत भर्ती की जाती है। तर्क दिया जाता है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले नजीर बनते हैं, इसलिए इसमें अनुभव बेहद जरूरी है। इन भर्तियों में आरक्षण को शामिल करके देश की न्यायिक व्यवस्था से समझौता नहीं किया जा सकता।
- भारत में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स जैसी सैन्य सेक्टर से जुड़ी प्रमुख भर्तियों में आरक्षण का कोई नियम नहीं है, इन भर्तियों में आरक्षण को लेकर विवाद भी नहीं उठा। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है। सेना की भर्तियों के मानक शारीरिक-मानसिक फिटनेस के साथ नेतृत्व कौशल और देशभक्ति बताए गए हैं। सेना में भर्ती प्रदर्शन के आधार पर भर्ती होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक आरक्षण से भारतीय सेना के मानक कमजोर हो सकते हैं, इसलिए सेना में आरक्षण का नियम नहीं लागू होता।
- रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) समेत कई ऐसे कई संस्थान हैं जहां पर विशेष भर्तियों में आरक्षण लागू होता। तर्क यह है कि ये संस्थान देश के लिए रक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में आरक्षण लागू कर इनके मानकों को प्रभावित नहीं किया जा सकता। जैसे DRDO मिसाइल बनाता है, सेना के लिए हथियार बनाता है और सुरक्षा को बढ़ाता है। इसरो में गुणवत्ता महत्वपूर्व होती है, सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करने की नीति में यकीन रखा जाता है।
- अखिल भारतीय सेवाओं जैसे IAS, IPS और IFS में सीनियर लेवल पर आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है। इन सेवाओं में बड़े स्तर पर होने वाली पदोन्नति में आरक्षण को आधार नहीं बनाया जाता है। यहां अनुभव और उपलब्धियों को आधार बनाया जाता है।
thesootr links
-
छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें