BHOPAL. केंद्र सरकार के रामसेतु पर संसद में दिए बयान के बाद विपक्ष को बीजेपी पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। 23 दिसंबर को संसद में सरकार ने कहा कि रामसेतु के पुख्ता सबूत नहीं है। इस पर पवन खेड़ा ने ट्वीट किया- सभी भक्तजन कान खोल कर सुन लो और आंखें खोल कर देख लो। मोदी सरकार संसद में कह रही है कि रामसेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है। पप्पू यादव ने कहा- मोदी सरकार ने संसद में कहा कि राम सेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है। यही बात मनमोहन सिंह सरकार ने कही था तो बीजेपी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताया था! अब बताओ अंधभक्तों हिंदू विरोधी कौन?
पहले जानते हैं कि सरकार ने संसद में क्या कहा?
हरियाणा से सांसद कार्तिकेय शर्मा ने 23 दिसंबर को संसद में पूछा- क्या ये सच है कि भारत की प्राचीन सभ्यताएं केवल मिथक हैं या उनके अस्तित्व को साबित करने के लिए कुछ सबूत मौजूद हैं? और अगर ऐसा है तो क्या रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों के जरिए रामसेतु और समुद्र में डूबी द्वारिका के अस्तिस्व को विज्ञान के आधार पर साबित किया जा सकता है?
इस पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा- इस तरह के सवाल सदन में कम ही किए जाते हैं। इतिहास से जुड़ी बातों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए मॉडर्न टेक्नीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। स्पेस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट इस काम में लगा हुआ है। रामसेतु की खोज की कई सीमाएं हैं, क्योंकि इसका इतिहास 18 हजार साल से ज्यादा पुराना है। इतिहास को देखें तो ये पुल 56 किलोमीटर लंबा था। स्पेस टेक्नीक से हम चूना पत्थर के बने नन्हें द्वीप (आईलैंड्स) और कुछ टुकड़े खोज पाए हैं। हालांकि हम पुख्ता तौर पर ये नहीं कह सकते कि ये टुकड़े सेतु का हिस्सा रहे होंगे, लेकिन इनमें कुछ निरंतरता दिखती है। इससे कुछ नतीजे निकाले जा सकते हैं, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि वहां कैसा ढांचा रहा होगा इस बारे में ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है। लेकिन हां, इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संकेत हैं कि वहां कुछ तो था।
रामसेतु को लेकर यूपीए-1 का प्रोजेक्ट, हिंदू संगठनों का विरोध, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
रामायण में लिखा है कि भगवान राम ने लंका में रावण की कैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए वानर सेना की मदद से रामसेतु का निर्माण किया था। इसे लेकर विवाद 2005 में उस वक्त उठा, जब यूपीए-1 सरकार ने 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े चैनल वाले सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी। इसके तहत मन्नार की खाड़ी को पाक स्ट्रेट (पाक जलडमरूमध्य) से जोड़ा जाना था, लेकिन इसके लिए रामसेतु की चट्टानों को तोड़ना पड़ता। प्रोजेक्ट समर्थकों के मुताबिक, इससे जहाजों के ईंधन और समय में करीब 36 घंटे की बचत होती, क्योंकि अभी जहाजों को श्रीलंका घूमकर जाना पड़ता है।
हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और कहा कि इस प्रोजेक्ट से रामसेतु को नुकसान होगा। उस वक्त इसके विरोध में मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई थी। बात सुप्रीम कोर्ट तक गई। केंद्र की कांग्रेस सरकार ने याचिका में कहा कि रामायण में जिन बातों का जिक्र है, उसके वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की मदद से कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि ये केवल प्राकृतिक तौर पर बना एक फॉर्मेशन है और इस बात के कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं कि इसे भगवान राम ने बनाया था।
2007 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 2021 में मोदी सरकार ने इससे जुड़े सबूत जुटाने के लिए रिसर्च की अनुमति दी। तीन साल की इस रिसर्च का मकसद ये पता करना था कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं और इसके बनने का वक्त क्या रामायण के दौर से मिलता है।