बाहुबली रॉकेट से आज दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर भेजा जाएगा चंद्रयान-3, जानिए चंद्रयान-2 से कितना अलग है ये मिशन

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Sunil Shukla
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बाहुबली रॉकेट से आज दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर भेजा जाएगा चंद्रयान-3, जानिए चंद्रयान-2 से कितना अलग है ये मिशन

HYDERABAD. भारत के महत्वाकांक्षी स्पेस मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग शुक्रवार, 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे इसरो (ISRO) के सतीश धवन स्पेस सेंटर से होगी। चंद्रयान-3 को अंतरिक्ष में ले​​​​​​ जाने के लिए रॉकेट यानी लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (MV-3) तैयार है। इसका नाम बाहुबली है और इसका लॉन्चिंग सक्सेस रेट 100 प्रतिशत है। इस मिशन सफलता के लिए ISRO के वैज्ञानिक चंद्रयान-3 का मिनिएचर मॉडल लेकर गुरुवार को तिरूपति वेंकटचलापति मंदिर पहुंचे थे। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद भारत अंतरिक्ष  क्षेत्र में अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया की चौथी बड़ी ताकत बन जाएगा।




— Rashtrasanchar (@sanchar_rashtra) July 13, 2023




— Surya Reddy (@jsuryareddy) July 13, 2023



भारत के पास इतिहास रचने का मौका



उल्लेखनीय है कि भारत ने 2019 में चंद्रयान-2 लांच किया था, लेकिन ये प्रयास लैंडर में खराबी आने की वजह से असफल हो गया था। खास बात ये है कि 2019 से लेकर अब तक दुनिया का कोई दूसरा देश भी ऐसा नहीं कर सका है। 2019 में इजरायल की एक निजी स्पेस एजेंसी ने ऐसा करने का प्रयास किया था, लेकिन उसका मिशन भी असफल रहा था। इसके बाद 2021 में यूएई के रोवर के साथ लॉन्च किया गया जापान का मून मिशन भी असफल रहा था।



चंद्रयान-2 मिशन की ये चूक जो भारी पड़ी थी



प्रोपल्शन सिस्टम में दिक्कत हुई। इसने लैंडर की गति अनुमान से ज्यादा बढ़ा दी। लैंडिंग के दौरान लैंडर को लगातार धीमा होना था, ताकि वो चांद की सतह पर बिल्कुल सुरक्षित उतर सके। चूंकि लैंडर की गति घटने के बजाय बढ़ने लगी थी, इसलिए सॉफ्टवेयर उसे नियंत्रित नहीं कर पाया था। चंद्रयान-2 के उतरने का स्थान (लैंडिंग एरिया) 500 मीटर गुणा 500 मीटर था। संपर्क में रहने के लिए नियंत्रण सीमित था। सेंसर खास पैरामीटर तक ही सेंस कर सकते थे, इसलिए फेल हो गए।



चंद्रयान-2 की गलतियों से सीखकर चंद्रयान-3 को बेहतर बनाया



2019 में चंद्रयान-2 की असफलता के बाद इसरो ने लगातार 4 साल ऐसे परीक्षण किए, जिनसे चंद्रयान-3 की हर संभावित खामी से निपटा जा सके। मसलन, फेल होने पर क्या होगा और इसके समाधान या विकल्प क्या हो सकते हैं। चंद्रयान-2 के मिशन से जुड़े स्पेस साइंटिस्ट के मुताबिक 2019 में हम सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहे थे। इसकी वजह ये थी कि उस समय लैंडर में आई खराबी की वजह जानने के लिए हमारे पास मौके के हालात या फुटेज देखने का जरिया नहीं था। इसलिए चंद्रयान-2 मिशन के डेटा का विश्लेषण किया और उसके सिमुलेशन से देखा कि क्या गलत हुआ, कहां समस्या थी और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है।



चंद्रयान-3 इन मामलों में अलग




  • चंद्रयान -2 में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर 3 कंपोनेंट थे, जबकि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर की जगह प्रॉप्लशन मॉड्यूल को शामिल किया गया है। 


  • चंद्रयान-2 का कुल वजन 3850 किलोग्राम था, जबकि चंद्रयान-3 का कुल वजन 3900 किलोग्राम है। 

  • चंद्रयान-2 मिशन 1 से 7 साल तक के लिए प्लान किया गया था, जबकि चंद्रयान-3 मिशन की लाइफ बहुत कम समय सिर्फ 3 से 6 महीने तक है। 

  • चंद्रयान-2 ने चांद तक पहुंचने के लिए 48 दिन का समय लिया था, जबकि चंद्रयान-3 42 दिन में चंद्रमा पर पहुंच सकता है।



  • लैंडर में इस बार 4 ही इंजन, 5वां हटाया



    इस बार लैंडर में चारों कोनों पर लगे 4 इंजन (थ्रस्टर) तो होंगे, लेकिन पिछली बार बीचों-बीच लगा 5वां इंजन हटा दिया गया है। इसके अलावा फाइनल लैंडिंग केवल 2 इंजन की मदद से ही होगी ताकि 2 इंजन आपातकालीन स्थिति में काम कर सकें। इसी तरह इस बार ऑर्बिटर नहीं है, लेकिन प्रोपल्शन मॉड्यूल होगा जो लैंडर और रोवर से अलग होने के बाद भी चंद्रमा की परिक्रमा में घूमेगा और चंद्रमा से धरती पर जीवन के लक्षण पहचानने की कोशिश करेगा। भविष्य में इस डेटा का इस्तेमाल अन्य ग्रहों, उपग्रहों और तारों पर जीवन की खोज में हो सकेगा।



    लैंडर की एनर्जी एब्जॉर्बिंग कैपेसिटी दोगुनी की



    चंद्रयान-3 में लैंडर की एनर्जी एब्जॉर्बिंग कैपेसिटी दोगुनी की गई है। पहले लैंडर 2 मीटर/सेकंड से सतह से टकराने पर सुरक्षित रहने में सक्षम था। इस बार 3 मीटर/सेकंड से चंद्रमा की सतह को छूने पर भी सुरक्षित रहेगा। लैंडर में 2 सेंसर लगाए हैं। एक पहले की तरह इनर्शियल सेंसर, कैमरा है। दूसरा लेजर डॉप्लर वेलोसिटीमीटर। इससे लैंडिंग के दौरान लेजर बीम चांद की सतह पर जाएगी और रिफ्लेक्ट होकर लौटेगी। इससे पता चल सकेगा कि लैंडर की तीनों तरह आगे बढ़ने, अगल-बगल होने और ऊपर-नीचे होने की गति क्या है। नया सेंसर 4 किमी गुणा 2.5 किमी के टारगेट एरिया में लैंडिग कराने में सक्षम होगा।



    चंद्रयान-3 के लैंडर को क्रेन से गिराकर जांचा-परखा



    स्पेस सेंटर में चंद्रमा की सतह की तरह लैंडर के कई टेस्ट किए। लैंडर को हेलिकॉप्टर, क्रेन से गिराकर जांचा-परखा गया है। कोल्ड सिमुलेशन किया। ईंधन टैंक की क्षमता बढ़ाई, ताकि प्राइमरी लैंडिंग में दिक्कत आए तो दूसरी साइट पर लैंडिंग के लिए अतिरिक्त ईंधन हो। सॉफ्टवेयर मजबूत किया। ये लैंडिंग में मदद करेगा। लैंडर के 6 पहिए किए। ये पहले के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा मजबूत हैं।



    42 दिन तक चलेगा पूरा मिशन



    चंद्रयान-3 लॉन्च होने के बाद पृथ्वी की कक्षा में 179 किलोमीटर का सफर तय करेगा। पृथ्वी की कक्षा छोड़ने के बाद ये चांद की तरफ बढ़ेगा।  ग्रेविटी को तोड़ते हुए चांद की कक्षा में शामिल होने के बाद प्रोप्ल्शन मॉड्यूल लैंडर से अलग हो जाएगा। इस प्रक्रिया में 42 दिन लगेंगे। इसरो की ओर से संभावना जताई जा रही है कि चंद्रयान-3 का लैंडर चंद्रमा की तरह पर 24-25 अगस्त को सॉफ्ट लैंडिंग कर सकता है। ये वो दिन होगा जब चांद पर सूर्योदय होगा।



    धरती के 15 दिन के बराबर होता है चांद पर एक दिन



    चांद पर खोज की जिम्मेदारी रोवर की होगी। इसरो के मुताबिक सॉफ्ट लैंडिंग उस वक्त जब होगी चांद पर सूर्य की रोशनी पड़ रही हो। लैंडर और रोवर चांद पर पूरा 1 दिन बिताएंगे, ये धरती के करीब 15 दिनों के बराबर होगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के बाद रोवर, लैंडर से अलग होगा और फिर मूवमेंट कर जानकारियां जुटाएगा। चंद्रयान-2 के मुकाबले चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट अलग चुनी गई है। ये बदलाव चंद्रयान-2 से ली गई चांद की तस्वीरों के बाद किया गया है।



    चांद पर क्या करेगा चंद्रयान-3



    चंद्रयान-3 चांद पर लैंडिंग के बाद उसकी सतह और उसमें मौजूद मिनरल्स के साथ-साथ कई अन्य जानकारियां जुटाएगा। चंद्रयान-3 के साथ जो लैंडर और रोवर भेजे गए हैं उनमें पिछली बार की तरह ही 6 पेलोड लगाए गए हैं, सामान्य तौर पर समझें तो पेलोड एक तरह से डाटा ट्रांसमिशन यूनिट की तरह काम करता है। चंद्रयान-3 के लैंडर में 4 पेलोड लगे हैं, जो चांद पर आने वाले भूकंपों, सतह की थर्मल प्रॉपर्टी, प्लाज्मा और धरती से चांद की एक्यूरेट दूरी का पता लगाएगा। इसी तरह रोवर में 2 पेलोड हैं जो चांद की सताह पर पहुंचकर मिट्टी में केमिकल और मिनरल कंपोजिशन का पता लगाकर ये जानकारी जुटाएंगे की चांद की मिट्टी और चट्टानों में कौन से खनिज हैं। इसका तीसरा हिस्सा प्रोप्लशन मॉड्यूल है जो अगले 6 महीने तक चांद की कक्षा में रहेगा और एक छोटे ग्रह की तरह चक्कर काटता रहेगा।


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