चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 कछुए की चाल चलेगा, भारत के कदम पर दुनियाभर की निगाहें

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Pratibha Rana
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चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 कछुए की चाल चलेगा, भारत के कदम पर दुनियाभर की निगाहें

Bangalore. आखिर आज वह दिन आ गया, जिसका कई वर्षों से इंतजार था। भारत आज इतिहास रचने जा रहा है। देशभर में मान-मन्नतों और दुआओं का दौर जारी है। चंद्रयान-3 बुधवार (23 अगस्त 2023) की शाम 6:04 बजे चांद पर कदम रखेगा। यान की लैंडिंग दक्षिणी ध्रुव के पास होगी। इसरो ने जो लॉन्गीट्यूड और लैटीट्यूड बताया है, वो मैनिंजस क्रेटर की ओर इशारा करता है। इसलिए शायद उसके आसपास ही लैंडिंग हो। पहले जो चंद्रयान-3 अंतरिक्ष में 40 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रहा था, अब वह लैंडिंग कछुए की गति से भी कम स्पीड में करेगा। चंद्रयान-3 की लैंडिंग 1 से 2 मीटर प्रति सेकंड की गति से होगी।





कछुए की गति को ऐसे समझें...





औसत कछुए 4 से 5 मीटर प्रति सेकंड की गति से तैरते हैं, वहीं जमीन पर 1 से 2 मीटर प्रति सेकंड की स्पीड से चलते हैं। कछुए के नए बच्चे तो 30 घंटे में 40 किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हैं। मादा कछुए अपने बच्चों या नर कछुओं से ज्यादा स्पीड में तैरती या चलती है, ताकि वह अपने बच्चों को शिकारियों से बचा सके। ऐसे में चंद्रयान-3 की लैंडिंग 1 से 2 मीटर प्रति सेकंड की गति से हो सकती है। 





रूस के लुना-25 ने गलती की...





रूस का लुना -25 स्पेसक्राफ्ट खरगोश की तरह जल्दी पहुंचने के चक्कर में चांद पर पहुंचने की रेस हार गया यानी दक्षिणी ध्रुव पर जाकर क्रैश हो गया। लूना-25 तय गति से करीब डेढ़ गुना ज्यादा गति से आगे बढ़ गया। फिक्स ऑर्बिट की तुलना में ओवरशूट कर गया। इसलिए जाकर चांद की सतह पर क्रैश कर गया, वहीं इसरो का चंद्रयान-3 अपनी 42 दिन की यात्रा धीमे-धीमे कर रहा था। ग्रैविटी का फायदा उठा रहा था। ऐसे में चंद्रयान-3 ज्यादा सुरक्षित है। 





चंद्रयान-3 लैंडिंग की 8 स्टेप : जानें कछुए जैसी गति... 







  • विक्रम लैंडर 25 किमी की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू करेगा। अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगेगा यानी 7.4 किमी की ऊंचाई तक। 



  • 7.4 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकंड रहेगी। अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर होगा। 


  • 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकंड हो जाएगी। अगला लेवल 800 मीटर होगा। 


  • 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजेंगे। 


  • 150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकंड रहेगी ( 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच)


  • 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकंड रहेगी (150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच)


  • 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी


  • चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी। 








  • चंद्रयान-3 में कई तरह के सेंसर्स लगाए





    चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 25 किमी की ऊंचाई से नीचे चांद की सतह पर जाएगा। पिछली बार चंद्रयान-2 अपनी ज्यादा गति, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन फेल्योर की वजह से गिर गया था। इस बार वह गलती न हो इसलिए चंद्रयान-3 में कई तरह के सेंसर्स और कैमरे लगाए गए हैं, ताकि वह सुरक्षित लैंड करे।





    ये कैमरे उतारेंगे सुरक्षित





    LHDAC कैमरा इसी काम के लिए बनाया गया है कि कैसे विक्रम लैंडर को सुरक्षित चांद की सतह पर उतारा जाए। इसके साथ ये पेलोड्स लैंडिंग के समय मदद करेंगे, वो हैं- लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा, लेजर अल्टीमीटर, लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा, मिलकर काम करेंगे ताकि लैंडर को सुरक्षित सतह पर उतारा जा सके।





    बचाव मोड सिस्टम बचाएगा किसी भी हादसे 





    लैंडर में इस बार दो बड़े बदलाव किए गए हैं। पहला : इसमें बचाव मोड सिस्टम है, जो इसे किसी भी तरह के हादसे से बचाएगा। दूसरा, विक्रम में दो ऑनबोर्ड कंप्यूटर लगाए गए हैं, जो हर तरह के खतरे की जानकारी देंगे। इन्हें यह जानकारी विक्रम पर लगे कैमरे और सेंसर्स देंगे। 





    चांद की सतह पर उतरना कठिनाई से भरा क्यों?





    पूरी दुनिया के वैज्ञानिक यह बात जानते हैं कि चांद की सतह पर उसके ऑर्बिट से उतरना आसान नहीं है। पहला- दूरी, दूसरा-वायुमंडल, तीसरा- ग्रैविटी, चौथा-वर्टिकल लैंडिंग कराते समय इंजन का सही मात्रा में प्रेशर क्रिएट करना यानी थ्रस्टर्स का सही तरीके से ऑन रहना। नेविगेशन सही मिलना, लैंडिंग की जगह समतल होनी चाहिए. इतनी समस्याओं के अलावा कई और होंगी जो सिर्फ वैज्ञानिकों को पता होंगी।





    कितनी बार सफल लैंडिंग हुई है चांद पर? 





    चांद पर पिछले सात दशकों में अब तक 111 मिशन भेजे गए हैं. जिनमें 66 सफल हुए. 41 फेल हुए. 8 को आंशिक सफलता मिली। पूर्व इसरो प्रमुख जी माधवन नायर भी इस बात को बोल चुके हैं कि मून मिशन के सफल होने की संभावना 50 फीसदी रहती है। 1958 से 2023 तक भारत, अमेरिका, रूस, जापान, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने कई तरह के मिशन चांद पर भेजे. इनमें इम्पैक्टर, ऑर्बिटर, लैंडर-रोवर और फ्लाईबाई शामिल हैं। अगर 2000 से 2009 तक की बात करें तो 9 साल में छह लूनर मिशन भेजे गए थे। यूरोप का स्मार्ट-1, जापान का सेलेन, चीन का चांगई-1, भारत का चंद्रयान-1 और अमेरिका का लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर. 1990 से अब तक अमेरिका, जापान, भारत, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने कुल मिलाकर 21 मून मिशन भेजे हैं। 





    चंद्रयान-3 ने चांद की नई फोटो भेजीं





    इसरो ने सोशल मीडिया पर 22 अगस्त को चांद की नई तस्वीरें शेयर की हैं। चंद्रयान ने 70 किलोमीटर की दूरी से लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा की मदद से ये तस्वीरें खींचीं हैं





    चांद पर अशोक स्तंभ की छाप छोड़ेगा प्रज्ञान रोवर





    23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 के लैंडर को 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद की सतह तक पहुंचने में 15 से 20 मिनट लगेंगे। यही समय सबसे क्रिटिकल होने वाला है। इसके बाद विक्रम लैंडर से रैंप के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आएगा और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चलेगा। इस दौरान इसके पहिए चांद की मिट्‌टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे।



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