New Delhi. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखकर चंद्रयान-3 ने ना सिर्फ एक नया इतिहास रचा है बल्कि यह ऐसी जगह पर उतरने में भी सफल रहा है, जहां अब तक दुनिया का कोई भी देश नहीं पहुंच सका था। दुनियाभर के करोड़ों लोगों ने 23 अगस्त को इसे लाइव भी देखा था। चांद पर ऑक्सीजन मिलने के साथ तापमान की अहम जानकारियां भारत तक आ चुकी हैं। चंद्रयान-3 की यह सफलता नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायी रहे, इसे देखते हुए केंद्र सरकार अब इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने जा रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तैयार होने वाली पाठ्य पुस्तकों में नए शैक्षणिक सत्र यानी अगले साल तक बच्चों पढ़ने को मिलेगी।
फाउंडेशनल स्तर से ही पढ़ाने की बनाई गई योजना
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार (29 अगस्त) को अहम ऐलान कर जानकारी दी है कि जल्द ही चंद्रयान-3 की इस सफलता को स्कूली बच्चों को कामिक्स के रूप में भी पढ़ाया जाएगा। ताकि वह इसे और भी रूचिकर तरीके से समझ सकें। प्रधान ने पीएम के मिशन लाइफ व स्वच्छ भारत मिशन जैसे विषयों को भी बच्चों को कामिक्स बुक्स के रूप में पढ़ाने का ऐलान किया। इस बीच स्कूलों में चंद्रयान-3 की सफलता को फाउंडेशनल स्तर से ही पढ़ाने की योजना बनाई गई है, जिसमें शुरुआत में इसे कहानी और कविताओं के रूप में पढ़ाया जाएगा, बाद में इसे स्कूली शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ ही विस्तार से पढ़ाया जाएगा।
तेजी से चल रहा है काम
शिक्षा मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 की सफलता के साथ ही इसे लेकर काम शुरू कर दिया गया है। जल्द ही इसे पाठ्यक्रम तैयार करने वाली कमेटी के सामने रखा जाएगा, जो इसकी विषयवस्तु तैयार करेगी।
ज्यादातर पढ़ाई मौखिक या खेल आधारित
अगले शैक्षणिक सत्र यानी अप्रैल 2024 तक स्कूलों के लिए नया पाठ्यक्रम तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे तो फाउंडेशन स्तर के लिए पाठ्यक्रम तैयार कर लिया गया है, लेकिन इस स्तर पर ज्यादातर पढ़ाई मौखिक या फिर खेल आधारित ही रखी गई है। ऐसे में इसे बच्चों को खेल-खेल में या फिर कविताओं के माध्यम से पढ़ाने की योजना है।
वीर योद्धाओं की कहानी भी पढ़ेंगे बच्चे
नए स्कूली पाठ्यक्रम की तैयारी के दौरान एनसीईआरटी ने 7वीं की कक्षा में ‘नेशनल वार मेमोरियल’ नाम से एक पाठ शामिल किया है। इस पाठ में वीर योद्धाओं की कहानी पढ़ाई जाएगी। रक्षा मंत्रालय ने इसको लेकर एनसीईआरटी को एक पत्र भी लिखा था, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है। एनसीईआरटी के निदेशक डॉक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि यह तो बहुत पहले हो जाना था। तैयार किए जाने वाले नए पाठ्यक्रम में इसे और बेहतर तरीके से लाया जाएगा। ताकि नई पीढ़ी इससे प्रेरित हो सके।