BHOPAL. ग्वालियर चंबल का किंग कौन? इस सवाल का जवाब कोई जानना चाहे या न चाहे लेकिन बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता बड़ी शिद्दत से जानना चाहते हैं। वजह है अंचल के दो कद्दावर नेताओं के बीच छिड़ा कोल्ड वॉर। ये नेता कौन हैं ये किसी से छिपा नहीं है। क्षेत्र के दो दिग्गजों का यूं आमने सामने होना कार्यकर्ताओं की मुश्किल बढ़ा रहा है।
एक टाइगर और दूसरा शेर
नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया, एक ग्वालियर चंबल का टाइगर है तो दूसरा शेर है। राजा महाराजाओं के टैग को फिलहाल परे रख दें तो राजनीतिक रसूख के लिहाज से कोई किसी से कम नहीं है। कांग्रेस में रहकर सिंधिया ने ग्वालियर चंबल पर एकछत्र राज किया है तो तोमर का जलवा भी बीजेपी में कम नहीं रहा। सिंधिया का दल बदलना राजनीति में ठीक वैसा ही हुआ जैसे एक शेर का अपनी सीमा छोड़कर दूसरे की सरहद में दखल देना। जंगल में शेर या बाघ बेखौफ आपस में टकरा जाते हैं। सियासी दंगल में ये संभव नहीं। हालांकि दोनों के समर्थक नारे और होर्डिंग्स के जरिए ऐसी लड़ाई करते रहते हैं। बीजेपी हमेशा दावा करती रही है कि यहां गुटबाजी नहीं होती लेकिन ग्वालियर चंबल में दो गुट पनप चुके हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जो ताजा हालात हैं उन्हें देखते हुए लगता है कि कोल्ड वॉर का तापमान कभी भी बदल सकता है।
बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक का किस्सा
बीजेपी की कोर कमेटी की बैठकें कितनी अहम होती हैं ये किसी से छिपा नहीं है। खासतौर से चुनावी साल नजदीक हो तो ऐसी बैठकों का महत्व बढ़ ही जाता है। मंगलवार को भी बीजेपी कोर कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक का हिस्सा बनने ज्योतिरादित्य सिंधिया खासतौर से भोपाल आए। उनके अलावा नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल जैसे नेता भी बैठक में शिरकत करने आए थे। कोर कमेटी की औपचारिक बैठक से पहले कुछ अनौपचारिक बैठकें हुईं और सिंधिया तयशुदा वक्त से पहले ही नियमित फ्लाइट पकड़ वापस दिल्ली लौट गए। राजनीतिक हलकों में सिंधिया का अचानक यूं रवाना होना कई अटकलों को हवा दे गया।
सिंधिया ने ट्वीट करके खुद को बताया कोरोना पॉजिटिव
हालांकि बीजेपी ने ये खूब दलील दी कि बुखार के चलते सिंधिया को मजबूरन लौटना पड़ा। खुद सिंधिया ने देर शाम तक ट्वीट कर ये जानकारी दी कि वो कोरोना पीड़ित हो चुके हैं लेकिन इस तर्क से अटकलों का बाजार ठंडा नहीं पड़ा। राजनीतिक हलको में ये खबरें जोर पकड़ चुकी थीं कि सिंधिया ग्वालियर में तोमर समर्थक अभय चौधरी को जिलाध्यक्ष बनाने से नाराज हैं। वही नाराजगी उन्होंने बैठक में जाहिर की है। सूत्रों का दावा है कि बैठक में अनौपचारिक रूप से जिलाध्यक्षों पर चर्चा हो रही थी। सिंधिया ने ग्वालियर जिला अध्यक्ष के नाम पर आपत्ति भी जताई लेकिन जब नतीजे अपने फेवर में नहीं मिले तो सिंधिया ने अपने चिर-परिचित अंदाज में नाराजगी जाहिर की और रवाना हो गए।
ग्वालियर चंबल में बदल रही बीजेपी
बीजेपी बदल रही है। बीजेपी का चाल चलन और चेहरा देशभर में बदले या न बदले लेकिन ग्वालियर चंबल में जरूर बदल रहा है। जहां अब बीजेपी का हाल कुछ-कुछ कांग्रेस जैसा नजर आ रहा है। ये हाल इसलिए है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदल रहा है या दिग्गजों में अपनी-अपनी सत्ता बचाने की होड़ लगी है जिसका नतीजा पार्टी और कार्यकर्ता भुगत रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में अपना-अपना हाल देख चुके क्षेत्र के दोनों दिग्गजों की नजरें अब ग्वालियर पर हैं। जहां अपने नाम का झंडा गाड़ने के लिए दोनों दिग्गज एक-दूसरे से दमदार दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते। दोनों की इस जंग में क्षेत्र के कार्यकर्ता पिस रहे हैं।
ग्वालियर चंबल में छिड़ चुकी है जंग
नारेबाजी कर अपने नेता को ताकतवर दिखाना या होर्डिंग पर चेहरा दिखाकर खुद को बड़ा साबित करना बीजेपी की परिपाटी कभी नहीं रही। लेकिन जब से सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए हैं तब से ग्वालियर चंबल में एक जंग सी छिड़ गई है। इस जंग का बिगुल नहीं बजा लेकिन नारेबाजियों से इसका आगाज जरूर हुआ है। कुछ नजारे ऐसे देखने को मिले कि जहां भी नरेंद्र सिंह तोमर शिरकत करने पहुंचे वहां सिंधिया समर्थक सिंधिया जिंदाबाद के नारे लगाने पहुंच गए। कुछ कार्यक्रमों के दौरान नरेंद्र सिंह तोमर का चेहरा ही होर्डिंग से गायब कर दिया गया।
ईंट का जवाब पत्थर से देने से नहीं चूक रहे राजनीति के खिलाड़ी
हाल ही में एयरपोर्ट विस्तार का कार्यक्रम भी इसी की बानगी था। जिसके बैनर्स से तोमर का चेहरा ही गायब कर दिया गया। राजनीति के माहिर खिलाड़ी भी ईंट का जवाब पत्थर से देने से नहीं चूके। तोमर ने एयरपोर्ट विस्तार पर कहा कि इसकी प्लानिंग पहले ही हो चुकी थी बस सिंधिया के आने से थोड़ी तेजी आ गई। सिंधिया पूरा क्रेडिट लें उससे पहले ही तोमर ने खेल खराब कर दिया। इससे पहले सिंधिया समर्थकों की हरकत पर खामोश रहे तोमर और उनके समर्थक अब ताल ठोंककर मैदान में उतर चुके हैं। कोर कमेटी की बैठक से पहले उनके समर्थकों ने जैसे बिसात पलटने का फैसला कर लिया। तोमर समर्थक बीजेपी कार्यालय पहुंच गए। यहां उनके समर्थन में जमकर ढोल बजे, नारेबाजी हुई और हार पहनाए गए।
अभय चौधरी की नियुक्ति से नाराज बताए जा रहे सिंधिया
क्या सिंधिया ग्वालियर की सत्ता हाथ से निकलते देखने की ये बौखलाहट यहीं से शुरू हो गई थी। दरअसल सिंधिया ग्वालियर जिलाध्यक्ष के पद पर अभय चौधरी की नियुक्ति से नाराज बताए जा रहे हैं। वो वहां अपने खास अशोक शर्मा को जिलाध्यक्ष बनवाना चाहते थे। बीजेपी में जिलाध्यक्ष भी कम ताकतवर नहीं होता। जिसकी राय प्रत्याशी चयन से लेकर दिग्गजों का वर्चस्व कायम रखने तक में खास होती है। बीजेपी की परंपरा के अनुसार जिलाध्यक्ष को सिर्फ नेता की नाराजगी के ही आधार पर बदला नहीं जाता। बल्कि ठोस वजह होनी चाहिए। इसलिए भी शायद सिंधिया कसमसा कर रह गए हैं। इस नाते ये कहा जा सकता है कि वर्चस्व की जंग का पहला मुकाबला तोमर जीत चुके हैं। क्योंकि उन्होंने किसी को भनक तक नहीं लगने दी और सिंधिया की नाक के नीचे अपने समर्थक को जिलाध्यक्ष तैनात करवा दिया।
वैसे वर्चस्व की जंग के एक नहीं अनेक कारण हैं। ग्वालियर अचानक सिंधिया और तोमर के बीच रसूख, रुतबे और राजनीति का केंद्र बन गया है। इसकी वजह भी खास हैं।
- सिंधिया और तोमर दोनों ग्वालियर में अपना भविष्य तलाश रहे हैं।
2023 के चुनाव पर पड़ेगा इस जंग का असर
अभय चौधरी के जिलाध्यक्ष बनने के बाद से ही सिंधिया खासे नाराज हैं। इससे पहले तक ग्वालियर में उनकी सक्रियता देखने लायक थी। सियासी गलियारों में भी ये खबरें जोर पकड़ चुकी थीं कि सिंधिया अगला चुनाव ग्वालियर से ही लड़ेंगे। इसलिए यहां किसी का दखल नहीं चाहते। दूसरी तरफ हालात ये माने जा रहे हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर भी मुरैना सीट छोड़कर ग्वालियर से चुनाव लड़ने की चाहत रखते हैं। उसी के मद्देनजर अपने मोहरे सेट करने की प्लानिंग में जुट गए हैं। इन हालातों के बीच पार्टी के कार्यकर्ता पिस रहे हैं। जो इस असमंजस में हैं कि किस नेता को फॉलों करें किसे नहीं। दोनों ही नेता आलाकमान के करीबी हैं। ऐसे में असमंजस की स्थिति कार्यकर्ताओं में ही नहीं स्थानीय नेताओं में भी है। इसका असर चुनाव पर भी पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।
लोकसभा चुनाव पर दोनों नेताओं की नजरें
सिर्फ कार्यकर्ता या स्थानीय नेता ही नहीं पार्टी के बड़े नेताओं के लिए भी फैसला लेना आसान नहीं है। दोनों ही नेताओं के कद और ताकत को कम नहीं आंका जा सकता। इसलिए शायद आलाकमान और पार्टी के बड़े नेता भी किसी नतीजे पर पहुंचने की जल्दबाजी में नहीं हैं। ग्वालियर के बहाने दोनों नेताओं की नजर लोकसभा चुनाव पर है। लेकिन उनके बीच कथित कोल्ड वॉर का असर विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा ही। अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए दोनों नेताओं की कोशिश होगी कि उनके समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट मिलें। जो कामयाब होगा उसका दबदबा बढ़ेगा और आगे तक चलेगा भी। शायद इसलिए सिंधिया ने ग्वालियर से जुड़े फैसलों पर अपना रूख साफ कर दिया है। जिद और जुनून के पक्के माने जाने वाले सिंधिया का इशारा साफ है वो ग्वालियर में किसकी मनमानी बर्दाश्त नहीं करेंगे। अब तोमर का अगला कदम और फिर आलाकमान का रुख साफ करेगा कि ग्वालियर में किसी की बादशाहत कायम रहने वाली है।