राजस्थान में सुलझा कांग्रेस का संकट, दिल्ली से निकला ''जयपुर सुलह'' का रास्ता, जानिए गहलोत और पायलट के सुलह की इनसाइड स्टोरी

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राजस्थान में सुलझा कांग्रेस का संकट, दिल्ली से निकला ''जयपुर सुलह'' का रास्ता, जानिए गहलोत और पायलट के सुलह की इनसाइड स्टोरी

NEW DELHI. राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद सुलझाने के लिए दिल्ली में एक बड़ी बैठक हुई। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बंगले पर राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट की 4 घंटे मैराथन बैठक चली। कांग्रेस ने दोनों नेताओं के नेतृत्व में ही राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला हुआ। मैराथन बैठक में पायलट मुद्दे के समाधान का क्या ठोस फॉर्मूला तय किया गया, यह बात अभी तक खुलकर सामने नहीं आई। इस तरह से बिना किसी ठोस फॉर्मूले के गहलोत-पायलट राजस्थान लौट चुके हैं, लेकिन क्या विधानसभा चुनाव से पहले दोनों के बीच कोई सुलह का रास्ता निकल सकेगा, क्या आने वाले समय में राजस्थान कांग्रेस में शांति बहगाल हो सकेगी। सचिन और गहलोत के बीच सब कुछ सामान्य हो सकेगा इन सभी सवालों के जावब भविष्य में मिलेंगे लेकिन इस सुलह का पहल और इसके क्या मायने हैं ये हम आपको बताएंगे...





गहलोत-पायलट के बीच कैसे हुई सुलह





मल्लिकार्जुन खड़गे के घर सोमवार देर रात तक चली मैराथन बैठक के बाद सीएम गहलोत और पायलट केसी वेणुगोपाल के साथ बाहर आए। गहलोत और पायलट दोनों मुस्कुरा रहे थे, लेकिन मीडिया से किसी ने भी बात नहीं की। केसी वेणुगोपाल के साथ दोनों नेता फिर से खड़गे के घर चले गए। खड़गे के घर गहलोत-पायलट के बीच सुलह-समझौते का फॉर्मूला क्या तय हुआ है, इस पर किसी ने कोई बात नहीं की।





कांग्रेस की मैराथन बैठक से क्या निकला





कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने  मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ चार घंटे लंबी बातचीत हुई। इस दौरान दोनों नेताओं ने तय किया है कि वे एकसाथ चुनाव लड़ेंगे और राजस्थान में चुनाव जीतेंगे।अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पर सहमति भी जताई है। सचिन पायलट और गहलोत दोनों ने शीर्ष नेतृत्व से कहा कि वे संयुक्त कमेटी बनाएं। पार्टी नेतृत्व से कहा कि फॉर्मूले को लेकर उनका जो भी फैसला होगा, उसे दोनों ही नेता मानेंगे। 





राहुल गांधी ने दोनों नेताओं से की भावुक अपील





सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी ने गहलोत और पायलट दोनों से भावनात्मक अपील की थी आगामी चुनाव के लिए अपने मतभेदों को अलग रखें। आपसी लड़ाई से किसी का भला नहीं होगा। इसके बाद दोनों ही नेताओं ने राहुल गांधी पर फैसला छोड़ दिया था। हालांकि, बैठक में सुलह का कोई फॉर्मूला पेश नहीं किया गया, लेकिन दोनों नेताओं को नए सिरे से शुरुआत करने को कहा गया है। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो बैठक के दौरान सीएम अशोक गहलोत नहीं चाहते थे, सचिन पायलट को चुनाव से पहले कोई बड़ा पदभार मिले, लेकिन राहुल गांधी के दखल के बाद समझौता हो पाया है। राहुल गांधी ने मीटिंग में आश्वस्त किया कि सचिन पायलट को पार्टी में उचित सम्मान मिलेगा और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। आपको बता दें कि इस तरह के आश्वासन कई बार पायलट को कांग्रेस हाईकमान से मिल चुके हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहे हैं। 





साढ़े चार साल में चार बार आमन-सामने हुए पायलट और गहलोत





पिछले साढ़े चार सालों में कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को चार बार गहलोत और पायलट के बीच तल्खी मिटाने के लिए दिल्ली से जयपुर दौड़ लगानी पड़ी। हर बार कांग्रेस नेतृत्व ने दोनों नेताओं के साथ बातचीत करके 'ऑल इज वेल' का मैसेज देने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही दिनों के बाद फिर गहलोत और पायलट के बीच तलवारें खिंच जाती हैं। दोनों ही नेता एक दूसरे के साथ सुंतलन बनाकर साढ़े चार साल में चार कदम भी नहीं चल सके। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि दोनों के बीच सारे शिकवे-शिकायत दूर हो गए हैं और आने वाले चुनाव में दोनों साथ मिलकर काम करेंगे।





गहलोत-पायलट समर्थकों की चुप्पी





राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत-पायलट समर्थकों का मन मिलान अभी नहीं हो पा रहा है। दोनों नेताओं के समर्थक फिलहाल चुप्पी साधे हुए है। हालांकि पायलट ने अल्टीमेटम पर अभी कुछ नहीं बोला है। सचिन ने तीन मांगों को पूरा नहीं करने पर आंदोलन की चेतावनी दी थी। माना जा रहा है कि पायलट अब सुलह के बाद आंदोलन नहीं करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गहलोत- पायलट के बीच पहले भी सुलह हुई है। पायलट की 2020 में हुई बगावत के बाद मांगों के संबंध में कमेटी बनाई गई थी। लेकिन आज तक पायलट की कई अधूरी है। सचिन पायलट चाहते है कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए। जबकि आलाकमान सीएम अशोक गहलोत को हटाने के लिए तैयार नहीं है।





गहलोत-पायलट के बीच इन बिंदुओं पर है विवाद 







  • अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मुख्य विवाद सीएम पद को लेकर है। 2018 में चुनाव आने के बाद से कुर्सी को लेकर अभी तक खींचतान जारी है।



  • राजस्थान में कांग्रेस की सियासत में सचिन पायलट और अशोक गहलोत अपना-अपना वर्चस्व जमाए रखना चाहते हैं। दोनों में से कई भी नेता राज्य की सियासत में अपनी पकड़ को कमजोर नहीं होने देना चाहते। इसके लिए कोई भी राजस्थान नहीं छोड़ना चाहता है।


  • सीएम अशोक गहलोत अपने आगे सचिन पायलट को उभरने नहीं देना चाहते हैं तो पायलट ने भी गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। दोनों ही नेता अपने को एक दूसरे से कम नहीं मान रहे हैं। 


  • राजस्थान की सियासत में अपना दखल रखने के लिए गहलोत और पायलट अपने-अपने लोगों को संगठन से लेकर सरकार तक में रखवाना चाहते हैं, जिसे लेकर विवाद छिड़ा हुआ है।


  • पायलट चाहते हैं कि चुनाव के दौरान जो वादे किए गए थे, उन्हें पूरा किया जाए और उसका ब्लू प्रिंट जनता के सामने रखा जाए। वहीं, गहलोत इसे अपने खिलाफ निशाना मानते हैं और बीजेपी से मिलकर साजिश रचने का आरोप लगाते हैं। 






  • गांधी परिवार से निकला सुलह का रास्ता





    राजस्थान की सियासत में 10 अगस्त 2020 को सियासी घटनाक्रम में बड़ा उलटफेर देखने को मिला था, जब अचानक सचिन पायलट राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिले। इसके बाद सचिन पायलट और अशोक गहलोत से मिले और आखिरकार दोनों गुट फिर से एक हो गए। 14 अगस्त को अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने राजस्थान विधानसभा में ध्वनि मत से विश्वास मत जीत लिया। पायलट और गहलोत बीच विवाद को हल करने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी भी गठित की गई। समझौते के एक साल बाद पायलट समर्थकों को कैबिनेट में जगह मिली, लेकिन सचिन पायलट को न तो डिप् टीसीएम की कुर्सी मिली और न ही प्रदेश अध्यक्ष का पद। इतना ही नहीं उन्हें अपने लोगों को संगठन और सरकार में जगह दिलाने के लिए लगातार बयानबाजी करनी पड़ी, तब जाकर कुछ लोगों को एंट्री मिली। हालांकि, तीन सदस्यीय कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं करा सके और न ही अपने लिए पार्टी में कोई राजनीतिक जगह तलाश सके।





    गहलोत समर्थक विधायकों ने सौंप दिए थे इस्तीफे





    कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व राजस्थान चुनाव से पहले राज्य में नेतृत्व बदलना चाहता था। इसको लेकर होने वाली विधायकों की बैठक से ठीक पहले गहलोत समर्थक विधायकों ने बगावत कर दी। इन विधायकों ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के विरोध में इस्तीफा देने की धमकी दी और 82 विधायकों ने अचानक विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से मिलकर इस्तीफा सौंप दिए। हालांकि, स्पीकर ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। सियासी संकट बढ़ता देख तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को दिल्ली वापस बुला लिया। 26 सितंबर को सोनिया गांधी के निवास पर राज्य की स्थिति पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई गई। सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को विधायकों से बातचीत के लिए जयपुर भेजा गया। 29 सितंबर को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद गहलोत ने पार्टी अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने और सीएम पद पर बने रहने का फैसला लिया।





    वसुंधरा राजे के बहाने पालयट का दांव





    मार्च 2023 में राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था तो गहलोत ने भी उन्हें निकम्मा कह डाला था। सचिन पायलट एक बार फिर मुख्यमंत्री गहलोत के विरोध में उतर आए थे और भ्रष्टाचार के मुद्दे को सियासी हथियार बनाया और प्रेस कॉफ्रेंस करके पायलट ने कहा कि वसुंधरा सरकार में हुए घोटालों और भ्रष्टाचार की जांच गहलोत नहीं करा रहे हैं। इसके विरोध में पायलट ने एक दिन का धरना भी दिया और उसके बाद अजमेर से जयपुर तक पदयात्रा करके गहलोत सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया। पायलट के अल्टीमेटम की मियाद 30 मई को पूरी हो गई, लेकिन इसके कुछ समय पहले ही कांग्रेस हाईकमान पायलट और गहलोत के बीच सुलह कराने का कदम उठा लिया। हालांकि पायलट ने अल्टीमेटम पर अभी कुछ नहीं बोला। सचिन ने तीन मांगों को पूरा नहीं करने पर आंदोलन की चेतावनी दी थी। पायलट ने अपनी कई मांगों में से एक के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए कथित घोटालों की उच्च स्तरीय जांच की भी मांग की है। अब देखना है कि हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद पायलट अब आंदोलन करेंगे या नहीं?



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