BHOPAL. भारत की ग्रेंड ओल्ड पार्टी (कांग्रेस) बदलावों के दौर से गुजर रही है। कल यानी 19 अक्टूबर को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। 17 अक्टूबर को नए अध्यक्ष के लिए वोटिंग हुई थी। उम्मीदवार के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर हैं। दोनों ही दक्षिण भारत (खड़गे कर्नाटक, थरूर केरल) से आते हैं। आइए जानते हैं कि कब, किस सोच के साथ कांग्रेस का गठन हुआ और आजादी मिलने के बाद गांधी जी की पार्टी को लेकर क्या राय थी...
भारत की आजादी नहीं था कांग्रेस का लक्ष्य
मूल रूप से स्कॉटलैंड निवासी आईसीएस से सेवानिवृत्त भारतीय अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया था। तब इस पार्टी का उद्देश्य ब्रिटेन से भारत की आजादी की लड़ाई लड़ना नहीं था। कांग्रेस का गठन देश के प्रबुद्ध लोगों को एक मंच पर साथ लाने के उद्देश्य से किया गया था ताकि देश के लोगों के लिए नीतियों के निर्माण में मदद मिल सके। थियोसॉफिल सोसायटी के 17 सदस्यों को साथ लेकर एओ ह्यूम ने पार्टी बनाई। इसका पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ जिसकी अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की थी।
तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन (1884-1888) ने पार्टी की स्थापना का समर्थन किया था। ह्यूम को पार्टी के गठन के कई सालों बाद तक भी पार्टी के संस्थापक के नाम से वंचित रहना पड़ा। 1912 में उनकी मृत्यु के बाद कांग्रेस ने घोषित किया कि एओ ह्यूम ही इस पार्टी के संस्थापक हैं। कांग्रेस पार्टी के गठन के संदर्भ में गोपाल कृष्ण गोखले ने लिखा कि एओ ह्यूम के सिवाए कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का गठन नहीं कर सकता था।
विचारधारा को लेकर बाद में पार्टी के नेताओं ने अलग-अलग राह पकड़ ली
गठन के कुछ वर्षों पश्चात इस पार्टी के सदस्यों में वैचारिक मतभेद शुरू हो गए और कांग्रेस के अंदर ही दो नए दलों का उदय हुआ। इनमें से पहला दल था नरम दल और दूसरा दल था गरम दल। 1908 में ये दोनों खेमे खुलकर सामने आ गए। गरम दल में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे और नरम दल के खेमे की अगुआई मोतीलाल नेहरू, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेता कर रहे थे। कांग्रेस में वैचारिक मतभेद सरकार बनाने को लेकर था। नरम दल का मानना था कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजों के साथ मिलकर बने, जबकि दूसरी तरफ गरम दल का मानना था कि अगर हम अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं तो यह तो भारतवासियों को धोखा देना होगा। इन्हीं मतभेदों के चलते कांग्रेस दो धड़ों में टूट गई।
गरम दल के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष थे। नरम दल के नेता अक्सर अंग्रेजों की वकालत करते थे और वह अंग्रेजों के साथ सामंजस्य बनाकर चलना पसंद करते थे। गरम दल का कहना था कि हमें अंग्रेजों से आजादी चाहिए, जबकि नरम दल अंग्रेजी राज के अंतर्गत ही स्वशासन की मांग करता था।
महात्मा गांधी बन गए थे कांग्रेस के प्रतीक
1915 में जब महत्मा गांधी भारत आए। गांधी जी साउथ अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के सफल प्रयोग कर चुके थे, उनका कद काफी बड़ा हो चुका था। 1919 में भारत में गांधी कांग्रेस के प्रतीक पुरुष बन चुके थे। इसके बाद से कांग्रेस ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में सीधे तौर पर भाग लेना शुरू कर दिया। गांधीजी की अगुआई में कांग्रेस में 1919 में रौलट एक्ट का विरोध, 1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन हुआ। इन्हीं आंदोलनों के चलते 15 अगस्त 1947 में देश में आजादी का मार्ग प्रशस्त हुआ।
आजादी के बाद गांधीजी ने कांग्रेस को लेकर क्या कहा था?
भारत को कांग्रेस मुक्त करने के राजनीतिक नारे के समर्थन में महात्मा गांधी की जिस अंतिम इच्छा का जिक्र बार-बार होता है, उसका आधार 'हरिजन' पत्रिका में उनकी हत्या के फौरन बाद प्रकाशित एक दस्तावेज है। अंग्रेजी में His Last Will And Testament और हिंदी में उनकी अंतिम इच्छा और वसीयतनामा शीर्षक से ये दस्तावेज हरिजन के 15 फरवरी 1948 के अंक में छपा था यानी 30 जनवरी 1948 को गांधी जी हत्या के महज 15 दिन बाद।
इस पर बात करने से पहले ये जानना जरूरी है कि उनकी अंतिम इच्छा और वसीयतनामा शीर्षक गांधीजी की हत्या से दुखी उनके सहयोगियों ने दिया था। संपूर्ण गांधी वांगमय में यही दस्तावेज कांग्रेस के संविधान का मसौदा शीर्षक से मौजूद है, जो ज्यादा सही है। गांधीजी ने लिखा था- ‘देश को आजादी मिलने के बाद कांग्रेस की अपनी मौजूदा स्वरूप में अर्थात एक प्रचार माध्यम और संसदीय तंत्र के रूप में उपयोगिता खत्म हो गई है। भारत को सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर जनसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है। हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और सांप्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है। ऐसे ही कारणों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नियमों के अनुसार लोक सेवक संघ के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।’