भारत विकसित देश बनने के लिए हर पहलू पर काम कर रहा है ताकि वह भी अमेरिका, चीन और जापान जैसे विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो सके। फिलहाल भारत एक विकासशील देश है। हाल ही में COP यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की ओर से भारत को 300 बिलियन डॉलर (भारतीय रुपये में 25 लाख करोड़) की पेशकश की गई थी। हालांकि भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि उसे 'चिल्लर' नहीं चाहिए। तो चलिए पूरा मामला समझाते हैं कि भारत को ऐसा क्यों कहना पड़ा।
क्या है COP?
इस बयान से पहले आपको बता दें कि COP यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज क्या है? दरअसल, COP का पूरा नाम कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज है। यह वैश्विक स्तर पर आयोजित होने वाली बैठक है। इसकी स्थापना 1992 में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज यानी UNFCCC द्वारा बढ़ते जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए की गई थी। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने और इसे खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों को एक साथ लाना था। फिलहाल COP में 197 सदस्य देश शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने के लिए हर साल अलग-अलग देशों में इसकी बैठक होती है। इस साल भी इसकी 29वीं बैठक अजरबैजान के बाकू शहर में हुई, जो 11 से 22 नवंबर तक चली। COP 29 बैठक की थीम 'जलवायु वित्त' था। COP 29 में सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के बारे में चर्चा की।
300 अरब डॉलर की क्लाइमेट डील क्या है?
अब सवाल उठता है कि 300 अरब डॉलर का क्लाइमेट डील क्या है? जिसे भारत ने मानने से इनकार कर दिया है। बता दें कि हर साल COP मीटिंग में एक डील की जाती है। इसका मकसद जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना होता है। इस डील के तहत विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय मदद दी जाती है। इसी कड़ी में COP29 में भी एक डील की गई थी, जिसकी रकम 300 अरब डॉलर तय की गई थी। इस डील के तहत 2035 तक विकासशील देशों को सालाना 300 अरब डॉलर की रकम देने की बात कही गई थी।
G7 summit में बोले पीएम मोदी- जनता का आशीर्वाद मिला , ये लोकतंत्र की जीत
डील के तहत मिलने वाले 300 बिलियन डॉलर को चार कामों के लिए खर्च किया जाएगा।
- पहला- 300 बिलियन डॉलर के पहले इन्वेस्टमेंट से सौर, पवन, जल और अन्य रिन्यूएबल एनर्जी के रिसोर्सेस को बढ़ाया जाएगा।
- दूसरा- विकासशील देशों को जलवायु संकट से निपटने और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए खर्च किया जाएगा।
- तीसरा- जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा दिया जाएगा। इसमें कार्बन कैप्चर, हाइड्रोजन एनर्जी, स्मार्ट ग्रिड जैसी टेक्नोलॉजीज शामिल हैं।
- चौथा- जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में वित्तीय सहायता पहुंचाई जाएगी।
अब तक आप जान चुके होंगे कि COP क्या है और अगर भारत इसे स्वीकार कर लेता तो उसे मिलने वाले 300 बिलियन डॉलर किन चार जगहों पर खर्च किए जाते। अब सवाल यह है कि भारत ने 300 बिलियन डॉलर लेने से इनकार क्यों किया?
भारत ने क्यों नहीं ली राशि?
बता दें कि भारत की ओर से चांदनी रैना ने COP 29 बैठक में भाग लिया था। भारत ने 300 अरब डॉलर के जलवायु समझौते के सौदे को इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि इसे लेकर असहमति थी। भारत ने तर्क दिया कि एक साल में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए यह सौदा बहुत कम है। चांदनी रैना ने COP29 में कहा कि भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है। प्रस्तावित राशि हमारे देश को आवश्यक जलवायु कार्रवाई करने की अनुमति नहीं देगी। भारत ने यह भी कहा कि इस तरह का समझौता विकासशील देशों के विकास के अधिकार का सम्मान नहीं करता है। वहीं सिएरा लियोन के जलवायु मंत्री जिवोह अब्दुलई ने भारत के कदम का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह दुनिया के सबसे गरीब देशों के साथ खड़े होने के लिए अमीर देशों की सद्भावना की कमी को दर्शाता है क्योंकि वे बढ़ते समुद्र और गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं।
पर्यावरण पर पहली बार कार्यशाला आज, सीएम झारखंड जाएँगे प्रचार के लिए
कम है ये राशि- पर्यावरण विशेषज्ञ
उधर, पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि सीओपी29 समझौते में यह तय हुआ था कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किए जा रहे कार्यों की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी। 2025 तक जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जो योजनाएं शुरू की जाएंगी, उनके लिए 300 अरब डॉलर की राशि कम पड़ जाएगी। इतनी कम राशि से समय रहते मानकों को पूरा करना असंभव है।
FAQ
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक