BHOPAL. आटे के भाव में तेजी के नाम पर 6—7 महीने पहले जिस तरह से गेहूं का दाम गिराने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी लगी, उससे निश्चित तौर पर किसानों भारी नुकसान हुआ है। ओपन मार्केट सेल और एक्सपोर्ट बैन से आटे के भाव में कमी के जितने दावे किए थे उतनी राहत आम लोगों को मिली नहीं है, उल्टा किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कुल मिलाकर सरकार ने जिस मंशा से इस रणनीति को अपनाया उसने एक आम व्यक्ति की रसोई और किसान को कोई खास आर्थिक राहत नहीं दी है।
ओपन मार्केट सेल और एक्सपोर्ट बैन की क्यों पड़ी जरूरत
रूस—यूक्रेन युद्ध के कारण गेहूं के एक्सपोर्ट में आई तेजी से किसानों का गेहूं साल 2022 में खुले बाजार में ही 3500 रूपए प्रति क्विंटल तक बिका। जिसके कारण केंद्र सरकार अपने लक्ष्य की आधी खरीदी भी नहीं कर पाई। नतीजा यह हुआ कि बाजार में आटे के भाव में तेजी आ गई। जनवरी 2022 से जनवरी 2023 तक आटे के भाव में 40 प्रतिशत का उछाल आया। जिसे कंट्रोल करने के लिए केंद्र सरकार को ओपन मार्केट सेल और एक्सपोर्ट बैन करने की जरूरत पड़ी।
किसे हुआ फायदा और किसका हुआ नुकसान
सरकार : एक्सपोर्ट चालू होने से जहां वर्ष 2022 में सरकार लक्ष्य से आधा गेहूं भी नहीं खरीद पाई थी। वहीं गेहूं के रेट गिराने के बाद इस बार लक्ष्य का करीब 76.70 फीसदी गेहूं सरकार खरीद चुकी है। फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानी एफसीआई 74 लाख 60 हजार मैट्रिक टन गेहूं बफर स्टॉक में रखती है और 31 मई 2023 तक 261 लाख 91 हजार मैट्रिक टन गेहूं खरीद चुकी है।
किसान : किसानों को भारी नुकसान हुआ है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर गेहूं एक्सपोर्ट पर लगी रोक हट जाती तो इसका दाम 3500 प्रति क्विंटल के पार हो जाता, लेकिन सरकार ने बफर स्टॉक से अधिक खरीदी करने के लिए यह रोक लगाकर रखी। अकेले मध्यप्रदेश में ही 7 लाख 96 हजार 190 किसानों ने 2,125 समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचा।
आम लोग : सरकार ने गेहूं के रेट गिराने के पीछे का उद्देश्य आटे के भाव को कंट्रोल करना बताया था, लेकिन यह भाव कम नहीं हुए। जनवरी 2023 में खुला आटा 38 रुपए किलो मिल रहा था, जो अब 35 रुपए किलो तक मिल रहा है। वहीं पैकड ब्रांडेड आटे की बात करें तो यह जनवरी 2023 में भी 45 रूपए के आसपास था और अब भी उसी कीमत पर ग्राहकों को मिल रहा है। जो थोड़ी बहुत कमी आई है उससे थोक और फुटकर विक्रेता ने अपना प्रॉफिट मार्जिन बढ़ा लिया है।
खरीदी का लक्ष्य भी पूरा नहीं कर पाई एफसीआई
एफसीआई ने भले ही बफर स्टॉक लिमिट से ज्यादा की खरीदी कर ली हो, लेकिन वह अपने निर्धारित लक्ष्य तक की खरीदी नहीं कर पाई है। देश में निर्धारित लक्ष्य के 90 फीसदी तक गेहूं की खरीदी का टारगेट सिर्फ तीन राज्य पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश से पूरा होता है। पंजाब में इस सीजन गेहूं खरीदी का टारगेट 132 लाख मीट्रिक टन था। वहीं, मध्य प्रदेश में 80 लाख और हरियाणा में 75 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य था। 31 मई 2023 तक लक्ष्य के विरूद्ध पंजाब में 91.8 फीसदी यानी 121.17 एलएमटी, हरियाणा में 84.23 फीसदी यानी 63.17 एलएमटी और मध्यप्रदेश में 88.72 प्रतिशत यानी 70.98 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी हुई है।
पीडीएस में बंट सकता है खराब गेहूं
गेहूं की कटाई से ठीक पहले मार्च 15 मार्च से 10 अप्रैल तक बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और आंधी से बड़े पैमाने पर फसल खराब हुई। जिन किसानों की फसल इस प्राकृतिक मार से बच गई उन्होंने अपना गेहूं मंडी में 2200 से लेकर 2700 रूपए प्रति क्विंटल पर बेचा। सरकारी खरीदी केंद्रों पर अधिकांश वही किसान गया जिसकी फसल खराब हो गई थी, मतलब दाना काला पड़ गया, चमक चली गई या दाना छोटा पड़ गया। आने वाले समय में यही गेहूं अब पीडीएस दुकानों से बांटा जाएगा। कुल मिलाकर गरीबों की थाली में खराब गेहूं पहुंच सकता है। हरदा के किसान मोहन सांई बताते हैं कि अच्छी क्वालिटी के गेहूं के दाम मार्केट में समर्थन मूल्य से तो ज्यादा ही थे, इसलिए हमने अपनी फसल बाहर बेची। यहीं कारण है कि सरकार खरीदी का टारगेट भी पूरा नहीं कर सकी।