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दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग से जुड़े POCSO ( Protection of Children from Sexual Offences ) मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल रेप साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। आरोपी, जिसे पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, को अब संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया गया।
कोर्ट ने ‘शारीरिक संबंध’ के अर्थ को किया स्पष्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और अमित शर्मा शामिल थे, ने कहा कि ‘शारीरिक संबंध’ या ‘संबंध’ शब्द को रेप के अपराध में तब्दील करने के लिए पर्याप्त सबूत होने चाहिए। केवल नाबालिग होने के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अपराध हुआ है।
POCSO अधिनियम के तहत सहमति का महत्व
हालांकि, POCSO अधिनियम के अनुसार नाबालिग की सहमति मान्य नहीं होती, लेकिन हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि शारीरिक संबंध का मतलब स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न या रेप नहीं हो सकता। अदालत ने कहा कि इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं था जो आरोपी के दोष को साबित कर सके।
संदेह का लाभ आरोपी को मिला
अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि आक्षेपित फैसले में कोई तार्किक आधार नहीं था। संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए। इस आधार पर आरोपी को बरी कर दिया गया। मामले में नाबालिग की मां ने 2017 में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी 14 वर्षीय बेटी को बहला-फुसलाकर अगवा किया गया। आरोपी को फरीदाबाद से गिरफ्तार किया गया और ट्रायल के बाद 2023 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अब अदालत ने इसे खारिज कर दिया है।
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