दिवाली और लक्ष्मी पूजन का पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि सच्चे मन से की गई पूजा, भक्ति और समर्पण से जीवन में सुख, समृद्धि और खुशियां पाई जा सकती हैं। पुराणों, धार्मिक ग्रंथों में देवी लक्ष्मी की महिमा और उनकी कृपा की मान्यताएं हमें सकारात्मकता, एकता और समृद्धि की ओर बढ़ाती हैं।
मान्यता है कि भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी में जब अयोध्यावासियों ने साज-सज्जा और दीप प्रज्जवलित किए थे, तब से दिवाली का पर्व मनाया जाता है। अब सवाल यह है कि जब दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम से जुड़ा है तो इस दिन लक्ष्मी पूजन क्यों होती है? इसे जानने समझने के लिए 'द सूत्र' ने विद्वानों से बात की। उनसे समझा कि दिवाली पर 'लक्ष्मी पूजा' क्यों होती है?
नवारंभ से जुड़ी यह है मान्यता
ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र शर्मा इसे काल की गणना के हिसाब से समझाते हैं। उनका कहना है कि काल गणना के मुताबिक, 14 मनुओं का समय बीतने और प्रलय होने के बाद पुनर्निर्माण और नई सृष्टि का आरंभ कार्तिक मास में हुआ था, इसीलिए नवारंभ के कारण कार्तिक अमावस्या को कालरात्रि भी कहते हैं। जीविद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को शक्ति रात्रि की संज्ञा दी गई है। महाभारत में उल्लेख है कि दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं। इस दिन उनकी पूजा करके भक्तों को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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क्या कहते हैं पुराण और ग्रंथ?
पंडित सत्यनारायण भार्गव दिवाली वाले दिन लक्ष्मी पूजा की मान्यता के पीछे कई शास्त्रों का वर्णन करते हैं। उनका कहना है कि विष्णु पुराण में देवी लक्ष्मी की भक्ति करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है, इसलिए नवारंभ पर मां की पूजन अर्चन करना फलदायी होता है। भागवत पुराण में मान्यता है कि लक्ष्मी जी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं, जब देवताओं और दैत्यों ने अमृत पाने के लिए मंथन किया था। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या ही थी। लक्ष्मी सत्य ग्रंथ देवी लक्ष्मी की स्तुति में रचित है, इसमें लक्ष्मी जी के विभिन्न रूपों का वर्णन है, जैसे धन लक्ष्मी, शिक्षा लक्ष्मी, और विजय लक्ष्मी। कार्तिक मास में इन रूपों की पूजा से भक्त समृद्धि पाते हैं।
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धरती पर आती हैं देवी लक्ष्मी
पंडित राजकिशोर कहते हैं, दिवाली का पर्व भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। जब राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। इस दिन की महत्ता लक्ष्मी के स्वागत से भी जुड़ी हुई है, क्योंकि इस अवसर पर लक्ष्मी के पूजन का प्रचलन हुआ।
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